Hindi NewsBihar NewsBiharsharif NewsBihar Pan Farmers in Crisis Need for Storage and Market Support

पान के पत्तों के भंडारण व अन्य प्रदेशों में भेजने की हो व्यवस्था

बिहारशरीफ में पान के किसानों को भंडारण और अन्य प्रदेशों में पत्ते भेजने की व्यवस्था की आवश्यकता है। युवा पीढ़ी भी इस पुश्तैनी कारोबार में जुड़ रही है, लेकिन सरकारी मदद की दरकार है। महंगाई और खराब मौसम...

Newswrap हिन्दुस्तान, बिहारशरीफThu, 20 Feb 2025 07:52 PM
share Share
Follow Us on
पान के पत्तों के भंडारण व अन्य प्रदेशों में भेजने की हो व्यवस्था

बोले बिहारशरीफ : पान के पत्तों के भंडारण व अन्य प्रदेशों में भेजने की हो व्यवस्था पूजा की थाली और होठों की लाली देने वाला पान करोबार संकट में

युवा पीढ़ी भी जुड़ी कर रहा पुश्तैनी कारोबार, बस सरकारी मदद की है दरकार

प्रशिक्षण न अनुदान की व्यवस्था, मौसम का मार झेलने को विवश हैं किसान व कारोबारी

मगही पान की आज भी बाजार में पूरी मांग, गया समेत कई जगहों पर भेजे जाते हैं पत्ते

महंगाई किसानों को कर रही परेशान, पैदावार खराब होने पर नहीं मिलता है अनुदान

खुदागंज के 6 गांवों के 200 से अधिक किसान पान के कारोबार पर ही पूरी तरह से निर्भर

दशहरा हो, दिवाली हो या तीज-छठ जैसे हर पावन पर्व पर पान के पत्तों की जरूरत होती है। पान के कारोबारी व किसान हम तक पान के पत्तों को पहुंचाते हैं। लेकिन, ये किसान व करोबारी ही कई स्तर पर विभिन्न संकटों से गुजर रहे हैं। अच्छी फसल हुई तो बाजार का रोना, खराब फसल हुई तो अनुदान का रोना... यही पान के कारोबारियों की किस्मत बन चुकी है। पान के पत्तों के भंडारण व अन्य प्रदेशों में इसे भेजने की व्यवस्था हो, तो इन कारोबारियों के चेहरे पर मुस्कान आएगी। इनका पूरा जीवन इसी पान के कारोबार पर ही निर्भर है। पूजा की थाली और होठों की लाली देने वाला पान कारोबार आज संकटों से घिरता जा रहा है। इसके लिए प्रशिक्षण न अनुदान की व्यवस्था होनी चाहिए। पान के कारोबारी हर वर्ष मौसम का मार झेलने को विवश हैं। जबकि, मगही पान की आज भी बाजार में पूरी मांग है। बनारस, गया, नवादा, शेखपुरा समेत कई जगहों पर यहां के पान के पत्ते भेजे जाते हैं। लेकिन, सही व्यवस्था नहीं होने से इसमें काफी नुकसान भी उठाना पड़ता है। पटवन, बिजली बिल, पट्टा, खाद की महंगाई भी किसानों को परेशान कर रही है। प्रतिकूल मौसम में पान के पत्तों को बचाना किसानों के लिए चुनौती है, वहीं पैदावार खराब होने पर अनुदान नहीं मिलने का भी इन्हें मलाल रहता है। इस्लामपुर प्रखंड के खुदागंज थाना क्षेत्र के छह गांवों के 200 से अधिक किसान पान के कारोबार पर ही पूरी तरह से निर्भर हैं। यही उनकी आजीविका का मुख्य साधन है।

चार पुश्तों से पान की खेती करते आ रहे किसान आज बदहाल होते जा रहे रहे हैं। दूसरों की होठों की लाली देने वालों की कमाई लगातार कम होती जा रही है। होंठों की लाली और पूजा की थाली को सुशोभित करने वाला मगही पान के किसानों को भंडारन के साथ ही दूसरे प्रदेश में भेजने की सुविधा नहीं रहने से उनका मनोबल टुटता जा रहा है।

नालंदा जिला के एक मात्र इस्लामपुर प्रखंड के खुदागंज क्षेत्र के कई गांवो में आज भी 200 से अधिक परिवार पान की पुश्तैनी खेती से जुड़े हुए हैं। यहां होने वाली मगही पान की महक और धमक काफी दूर तक है। यहां के लोग इस पान को बनारसी पान से भी अधिक पसंद करते हैं। गया, नवादा, शेखपुरा, जहानाबाद समेत कई जिलों तक यहां के पान के पत्ते भेजे जाते हैं। लेकिन, इन किसानों के लिए भंडारण, बाजार और बेराज की व्यवस्था के साथ सिंचाई की समस्या आज भी परेशान करती है। खुदागंज में आपके दैनिक अखबार हिन्दुस्तान के बोले बिहारशरीफ संवाद कार्यक्रम में पान की पुश्तैनी खेती से तीन से चार पीढ़ियों से जुटे किसानों ने अपनी समस्याएं रखीं। साथ ही कई सुझाव भी दिए।

इन किसानों ने कहा कि पान की खेती करने में हमारी कई पीड़ियां गुजर गई। आने वाली पीढ़ियों भी इसमें काफी दिलचस्पी लेती है। इस कारण यहां के लगभग 400 बिगहा में पान की खेती आज भी लहलहा रही है। इस पान की मांग अब बनारस में भी काफी है। वहां के लोग भी मगही पान के शौकिन हो चुके हैं। इसकी ब्रांडिंग कर बाजार में उतारा जाय, तो किसानों को काफी लाभ होगा।

बनारस के नवाब भी मगही पान के थे शौकिन :

यहां के पान के पत्तों में एक अलग ही कशीश है। इसके सभी दिवाने हैं। 72 वर्षीय लक्ष्मीचंद चौरसिया कहते हैं हमारे पुरखे कहते थे कि बनारस के नवाब भी इसके शौकिन थे। उनके लिए मगही पान इस्लामपुर से जाता था और वे बनारस में बड़े चाव से मगही पान का स्वाद लेते थे। मगही पान की धमक काफी पहले से है। बस इसकी ब्रांडिंग सही से नहीं हो पायी है।

गया जाकर रेल से पान भेजते थे बनारस :

किसानों ने कहा कि भंडारण की व्यवस्था नहीं होने से सबसे अधिक नुकसान हमें ही उठाना पड़ता है। यहां के चौरसिया समाज के लोग पूरी तरह से पान की खेती पर ही निर्भर हैं। तीन दशक पहले तक लोग गया जाकर इन पत्तों को बनारस व अन्य जगहों पर भेजा करते थे। लेकिन, उन जगहों से बाद में किसानों को पैसे देने में काफी परेशान किया जाने लगा। कई किसानों को पैसे तक नहीं मिले। इसके बाद लोगों ने पत्तों को बाहर भेजना बंद कर दिया। इसका असर उनके कारोबार पर आज भी पड़ रहा है। सरकारी स्तर पर इस तरह की व्यवस्था की जाती, तो किसानों को आज एक बेहतर बाजार मिलता। इस तरह के बाजारों से सामंजस्य बढ़ाकर इसका कारोबार बढ़ाने की आवश्यकता है।

पान के पत्ते सेहत के लिए भी लाभदायक :

संतन प्रसाद चौरसिया कहते हैंकि पान के पत्ते के फायदे अनंत हैं। पान के पत्ता के बिना तो भगवान भी नहीं खुश होते हैं। यह हमारे सेहत के लिए भी काफी लाभदायक है। इसके पत्ते एंटीबैक्टीरियल और एंटीसेप्टिक गुण से भरपूर हैं। इसके सेवन से पाचन बेहतर होता है। मुंह की बदबू दूर होती है और दांतों और मसूड़ों की समस्याएं कम होती है। पान के पत्ते का इस्तेमाल कई तरह से किया जा सकता है। इसके पत्तों को चबाने से जहां पाचन बेहतर होता है वहीं इससे कब्ज, एसिडिटी और अपच जैसी समस्याओं से आराम मिलता है।

मधुमेह नियंत्रण में भी यह काफी कारगर :

इतना हीं नहीं पान के पत्ते चबाने से मसूड़ों की सूजन और गांठ जैसी समस्याओं से निजात मिलता है। इसे चबाने से मधुमेह (डायबिटीज) नियंत्रित रहता है। यह दांतों के लिए कई तरह से फायदेमंद है। इसे चबाने भर से सांस, खांसी और सर्दी-जुकाम में राहत मिलती है। जोड़ों और मांसपेशियों में होने वाले दर्द में भी आराम मिलता है। साथ ही वजन भी कम होता है। यानि पान के पत्ते सिर्फ भगवान की पूजा पाठ या शानो शौकत के लिए नहीं, बल्कि हमारी सेहत के लिए भी कई तरह से फायदेमंद हैं। इसे लोगों तक पहुंचाया जाना चाहिए। यह एक प्राकृतिक दवा के रूप में काम करता है।

पान के पत्तों में पाए जाते हैं कई पोषक तत्व :

किसान बताते हैं कि पान के पत्तों में कई पोषक तत्व पाए जाते हैं। विटामिन सी, विटामिन ए, पोटैशियम, आयोडीन, प्रोटीन, मिनरल, फाइबर पाए जाते हैं। जो हमारी सेहत के लिए काफी लाभदायक हैं। इसके अलावा इसमें कई तरह के रसायन भी मौजूद होते हैं। ये रसायन भौगोलिक रूप से भिन्न भिन्न हो सकते हैं। उसके अनुसार इसमें मौजूद रसायन एल्कलॉइड, टैनिन, सैपोनिन, फ्लेवोनोइड, पॉलीफेनोल, टेरपेन, यूजेनॉल, चैविकोल, हाइड्रोक्सीचैविकोल, कैरीओफलिन अलग अलग मात्रा में मौजूद हो सकते हैं। बावजूद ये पत्ते लोगों के स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद हैं। इसके पत्ते दांतों, मसुढ़ों, त्वचा, कब्ज, पाचनतंत्र, सिरदर्द, गले की सूजन या संक्रमण, कफ विकारों में काफी लाभकारी है।

बरेजा व घेराबंदी में सबसे अधिक लागत :

पान की खेती करने में सबसे अधिक लागत यानि खर्चा बरेजा व खेत की घेराबंद करने में आती है। एक बिगहा खेत का बरेजा और घेराबंदी में लगभग 25 से 30 हजार लगता है। इसमें बांस खरीदने में सबसे अधिक खर्च करना पड़ता है। किसानों ने बताया खेत में पान की फसल लगाने के दौरान कंधे पर घड़ा लेकर पीछे की ओर पानी गिराकर पटवन करना होता है और पान की फसल के बढ़ने के बाद मोटर या डीजल इंजन चलाकर अच्छे से पटवन करना पड़ता है। इस खेती को बड़ी शुद्धता के साथ किया जाता है। वहां फसल का पटवन हो या पान के पत्ते को तोड़ना हो, उस दौरान पान की बनी क्यारियों में जूते चप्पल पहनकर जाना वर्जित है। पान की कोठी के दरवाजे पर अपने अपने देवी देवता का स्थान देकर पूजर अर्चना करते हैं। ताकि, पैदावार ज्यादा और अच्छी हो। पान किसान प्राकृतिक आपदों को झेलते हुए पूजा की थाली और होठों की लाली को बरकरार रखने के लिए दिन रात मेहनत करते रहते हैं। इस कारण आज भी मगही पान की शानो शौकत बरकरार है।

उचित भंडारण हो तो एक माह तक पत्ते रहेंगे सुरक्षित :

पान के पत्ते कई खासियत से भरे हुए हैं। एक तरफ यह हमारी सेहत के लिए काफी लाभदायक है। वहीं दूसरी तरफ इन पत्तों को पेड़ से अलग होने के बाद भी लगभग एक माह तक सुरक्षित रखा जा सकता है। यह मगही पान की सबसे बड़ी खासियत है। ही रहता है यह मगही पान की सवसे वडी खासियत है। यही पान किसानों के लिए सबसे बड़ी परेशानी भी है। क्योंकि, भंडारण की व्यवस्था नहीं होने से वे इसे औने पौने दामों पर बेचने को बाध्य होते हैं। पहले तो गया से फिर इस्लामपुर से इन पत्तों को बुक कर अन्य जगहों पर भेजते थे। लेकिन, नटेशर तक रेलवे लाइन की बढ़ोतरी होने से किसानों को दूसरे प्रदेश में भेजने में परेशानियां काफी बढ़ गयी है। इन किसानो की मांग है कि खुदागंज से एक ट्रेन का परिचालन होना चाहिए। जो, सीधे इन पत्तों को बनारस या अन्य बाजारों तक पहुंचा सके। इससे किसानों को काफी राहत होगी। साथ ही इसकी खेती का रकबा भी बढ़ेगा।

सालों बरेजा लगे रहने के कारण नहीं हो सकती दूसरी खेती :

पान किसानों ने बांस की बढ़ती किमत और अनुदान की राशि कम मिलने से कोई फायदा नहीं मिल पाता हैं। जबकि पान की फसल को एक साल में मात्र दो ही बार पत्तों को तोड़ा जाता है। पान की खेत में बरेजा स्थायी रूप से लगा रहने से अन्य फसलों की खेती नहीं की जा सकती है। एक खेत में कई आतर होता है। इसमें प्रत्येक आतर में पान की फसल लगाने में सात से आठ हजार रुपया खर्च आता है। किसानों का मनोबल बढ़ाने के लिए उचित मुआवजा के साथ ही बनारस तक पान के पत्ते को कम लागत में पहुंचाने की व्यवस्था की जाए। ताकि, किसानो को राहत के साथ पत्तों का उचित मुल्य भी मिल सके। तभी पान की खेती करने वाले किसान खुशहाल हो पाएंगे।

सुझाव :

1. पान के पत्तों के भंडारण की व्यवस्था होनी चाहिए। इससे तैयार पत्तों को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

2. इन पत्तों को दूर के बाजार में भेजने की व्यवस्था होनी चाहिए।

3. बाजार की सही व्यवस्था की जाय। इससे पत्तों का सही दाम भी मिलेगा।

4. पान के कारोबार के लिए अच्छे बीज व कलम की व्यवस्था होनी चाहिए। इससे पैदावार अधिक होगा।

5. पटवन की व्यवस्था होनी चाहिए। समय पर सिंचाई होने से लत्तरों में तेजी से वृद्धि होगी। इससे अधिक पत्ते भी आएंगे।

6. मिट्टी जांच की पूरी व्यवस्था होनी चाहिए। ताकि किसान आवश्यकता के अनुसार खेतों में खाद पानी दे सकें। इससे उनकी लागत भी कम होगी।

7. खेतों में आकर फसलों को देखकर कृषि विभाग के अधिकारी लोगों को आधुनिक तकनीक की जानकारी दें।

8. पान के किसान आज भी पारंपरिक तरीके से ही खेती कर रहे हैं। ्पि्ररंकल जैसी व्यवस्था इसमें काफभ् मददगार साबित हो सकती है। इसके लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

समस्याएं :

1. पान के पत्तों के भंडारण की व्यवस्था नहीं। इस कारण तैयार पत्ते बर्बाद होते हैं।

2. दूर बाजार में भेजने की कोई व्यवस्था नहीं।

3. बाजार की सही व्यवस्था नहीं मिलने से पत्तों का सही दाम नहीं मिलता है।

4. पान के कारोबार के लिए अच्छे बीज व कलम की कमी।

5. सिंचाई की समस्या। समय पर पटवन नहीं होने से पत्ते खराब होते हैं। लत्तर की पूरी तरह से वृद्धि नहीं हो पाती है। इस कारण पैदावार भी प्रभावित होता है।

6. मिट्टी जांच की पूरी व्यवस्था नहीं।

7. खेतों तक आकर कृषि विभाग के अधिकारी लोगों को आधुनिक तकनीक की जानकारी नहीं देते हैं।

8. मशीनीकरण का अभाव। हाल ही में वहां पान के पत्ते का रस निकालने की मशीन लगी। वह भी काम नहीं कर रही है। इससे किसानों की आमदनी काफी कम होती है। इस कारण किसान इसमें रुचि नहीं ले रहे हैं।

बोले जिम्मेदार :

पान की खेती में शुद्धता, सफाई और पानी का काफी ख्याल रखा जाता है। इसके बेराज बनाने में भी काफी खर्च आता है। इसकी खेती के लिए सालोंभर खेत की अच्छी तरह से निगरानी की जाती है। बेराज लगा होने के कारण इसमें कोई अन्य खेती नहीं की जा सकती है। इस कारण ये खेत एकफसली होते हैं। चौरसिया समाज के लोगों के आजीविका का यह एकमात्र साधन है। इसी की कमाई से इनका पूरा परिवार चलता है। अच्छी ऊपज होने पर पान के पत्तों को समय पर बाजार भेजना चुनौती है। इसके लिए निजी वाहन की व्यवस्था की गयी है। परिवहन करे व्यवस्थित करने का प्रयास किया जा रहा है।

लक्ष्मीचंद चौरसिया

शादी विवाह से लेकर पूजा पाठ तक में पान के पत्तों का भरपूर उपयोग होता है। एक खिल्ली पान खाते ही आप रोआब झाड़ने लगते हैं। लेकिन, ये पत्ते कितनी परेशानियों से होकर आपके पास पहुंचते हैं, इसका अंदाजा नहीं है। बेराज में नंगे पांव जाकर पत्तों को सावधानी से तोड़ना भी एक कला है। तोड़ते वक्त दूसरे पत्तों को बचाना पड़ता है। इसमें काफी मेहनत लगता है। तोड़ने के बाद जब पत्ते नहीं बिक पाते हैं। तब दुख होता है। गांव के छोटे वाहन से इन पत्तों को गया व अन्य बाजार में भेजा जाता है। बाजार बढ़ने से किसानों को लाभ होगा। बेराज बनाने में अनुदान की व्यवस्था हो, तो इसका लाभ किसान ले सकेंगे।

पिंटू कुमार

पान के पत्तों का भंडारण की सुविधा मिलने से किसानों को काफी लाभ होगा। फिलहाल इस तरह की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। खेतों से पत्ते टुटने के बाद इसे बाजार में भेजने की व्यवस्था है। इस व्यवस्था को और बेहतर बनाने का प्रयास किया जा रहा है। पत्ता तोड़ने में सावधानी बरतनी चाहिए। एकदम हरा और तैयार पत्ते ही बाजार में भेजने चाहिए। इसका भाव भी अधिक मिलता है। पीला होने पर पत्ते अधिक समय तक नहीं रह सकेंगे। पत्तों को तोड़कर करीने से सजाकर व सुरक्षित भेजना भी एक कला है। इसके लिए युवाओं को प्रशिक्षित किया जाता है।

सुगनचंद चौरसिया

पान की खेती बहुत ही मुश्किल भरा काम है। बचपन से ही हम इस कारोबार को देखते आ रहे हैं। बाप दादा के साथ जाकर खेतों में भी काम किया है। पहले इतना तापमान नहीं रहता था। इसलिए खेती थोड़ी आसान होती थी। बेराज को ठंडा रखकर काम चल जाता था। चार से पांच दिनों में पटवन करनी पड़ती थी। अब गर्मी के दिनों में पछुआ हवा चलने पर एक दिन नागा कर पटवन करनी पड़ती है। खेतों की सिंचाई इसमें बहुत ही मायने रखता है। सस्ती सिंचाई की व्यवस्था करवाने का प्रयास किया जाएगा। इसके लिए हाकिमों से मिलकर हम अपनी बातों को उनके सामने रखेंगे।

संतन प्रसाद चौरसिया

हमारी भी सुनिए :

इस्लामपुर में पान के पत्तों के भंडारण की व्यवस्था होनी चाहिए। ताकि बेमौसम में भी तैयार पत्तों को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सके। अधिक पैदावार होने पर वहां उसे रखा जा सकेगा।

रवीश कुमार

बाजार की सही व्यवस्था नहीं होने व परिवहन में परेशानी के कारण पत्ते बर्बाद होते रहते हैं। समय पर तैयार पत्तों को तोड़ना मजबूरी है। ऐसे में इन पत्तों को दूर के बाजार में भेजने की व्यवस्था की जानी चाहिए।

राधिका देवी

पान के पत्तों की बाजार में बारहों मास मांग रहती है। बाजार की सही व्यवस्था नहीं होने का खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ता है। इसका समाधान होना चाहिए।

प्रमोद कुमार

कई बार गुणवत्तापूर्ण कलम नहीं मिलने से पैदावार प्रभावित होती है। पान के कारोबार के लिए अच्छे बीज व कलम की व्यवस्था की जानी चाहिए। साथ ही इसकी पहुंच किसानों तक हो।

पारस चौरसिया

मिट्टी जांच की पूरी व्यवस्था होनी चाहिए। इससे खेतों में आवश्यकता के अनुसार पोषक तत्व डाल पाएंगे। इससे हमारी लागत भी कम होगी और मुनाफा बढ़ेगा।

संतन चौरसिया

खेतों में लगी फसलों को देखने कोई अधिकारी नहीं आते हैं। कृषि विभाग के अधिकारी खेतों में आकर किसानों की परेशानियों को समझें और इसका समाधाप करें।

सुरेश कुमार

पान के किसान आज भी पारंपरिक तरीके से ही खेती कर रहे हैं। पुरानी विधियों से ही खेतों की पटवन की जा रही है। जबकि, इसमें ्पि्ररंकल जैसी व्यवस्था काफी लाभदायक सिद्ध हो सकती है।

संतोष कुमार

्प्रिरंकल पटवन के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। साथ ही समय समय पर नई तकनीक की जानकारी दी जानी चाहिए।

दुर्गेश प्रसाद

धान चावल या धनिया की तरह पान के पत्तों को ष्घरों में नहीं रखा जा सकता है। पत्तों को तोड़ने से पहले इसे भेजने की व्यवस्था करनी पड़ती है। परिवहन पर काफी खर्च करना पड़ता है। इसकी व्यवस्था होनी चाहिए।

पिंटू चौरसिया

बाजार की सही व्यवस्था नहीं होने का खामियाजा किसानों को उठाना पड़ता है। कई बार समय पर बाजार नहीं पहुंच पाने के कारण काफी नुकसान उठाना पड़ता है।

रविश प्रसाद

इसमें भी शोध की काफी गुंजाइश है। नई प्रजातियों के आने से पान की ऊपज भी बढ़ेगी। इसका लाभ किसानों को मिलेगा। पान के कारोबार के लिए अच्छे बीज व कलम की व्यवस्था होनी चाहिए।

राजेश चंद्रवंशी

पान की खेती में समय पर पटवन बहुत ही आवश्यक है। एक दिन आगे पीछे होने का भी असर इसकी खेती पर पड़ता है। इसमें काफी पैसे लगते हैं। समय पर सस्ती सिंचाई की व्यवस्था की जानी चाहिए।

जितेंद्र चौरसिया

हमारी परेशानियों को कोई सुनने वाला नहीं है। न ही इसके लिए किसी विशेष प्रशिक्षण की व्यवस्था है। इस पुश्तैनी कारोबार से आज भी हमारी युवा पीढ़ी जुड़ी हुई है। उन्हें प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

अशोक कुमार

नालंदा जिला के सिमित इलाके में पान की खेती होती है। लेकिन, इसकी खेती पूरी तरह से किसान अपने बलबुते कर रहे हैं। इसमें भी सरकारी अनुदान व प्रशिक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिए।

राजन मालाकार

पान की खेती हमारे लिए आजीविका का साधन है। सालभर इसे तैयार करने में लगे रहते हैं। मेहनत और लागत कि हिसाब से आमदनी नहीं होती है। खुद के दम पर ही बाजार भी भेजना पड़ता है।

अजय चौरसिया

अधिक ठंड और अधिक गर्मी दोनों ही इस खेती के लिए नुकसानदायक है। पटवन कर हम तापमान को बनाए रखने का प्रयास करते हैं। बेराज बनाने में भी काफी खर्च है। इसमें अनुदान मिलनी चाहिए।

रामदेव मालाकार

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।

अगला लेखऐप पर पढ़ें