भुगतान के इंतजार में बैठे चीनी मिल मजदूरों पर नई आफत, अब एग्जिट सेटलमेंट प्लान की राशि पर भी खतरा
गन्ना कर्मियों और मजदूरों के एग्जिट सेटलमेंट की राशि जिलाधिकारी के खाते में वर्षों से पड़ी है। भुगतान नहीं होने के पीछे किसकी लापरवाही है। इस संबंध में चीनी मिल मजदूरों की लड़ाई लड़ने वाले अघ्नु यादव कहते हैं कि चीनी निगम के अधिकारियों-कर्मचारियों की मिलीभगत से ऐसा हो रहा है।
राज्य की बंद चीनी मिल के मजदूरों को एग्जिट सेटलमेंट प्लान के तहत होने वाले भुगतान की राशि लौटने का खतरा मंडरा रहा है। पिछले महीने गन्ना उद्योग विभाग के प्रधान सचिव की अध्यक्षता में हुई समीक्षा बैठक में इस पर चर्चा भी हुई थी। राशि लौट जाने के बाद कर्मचारियों का भुगतान लंबित रहने की आशंका है।
गन्ना उद्योग विभाग की अगस्त में हुई बैठक में प्रधान सचिव नर्मदेश्वर लाल ने इस संबंध में विस्तृत रिपोर्ट मांगी थी। उन्होंने बिहार राज्य चीनी निगम, संयुक्त ईखायुक्त को निर्देश देते हुए कहा है कि कई वर्षों से भुगतान के लिए एक बड़ी राशि का शेष रहना चिंताजनक है। कहा कि कितना भुगतान लंबित है, इसकी विस्तृत रिपोर्ट पीपीटी में लाएं। साथ ही एग्जिट सेटलमेंट प्लान के लिए जो राशि जिलाधिकारी को आवंटित की गई है, यदि निकट भविष्य में उसका भुगतान संभव नहीं है तो उसे संबंधित खाता या निधि में जमा कराने के लिए वित्त विभाग से सलाह लें।
दरअसल, विभाग की ओर से नौ बार सूचना देने के बाद भी दावा आवेदन नहीं आ रहे हैं। प्रधान सचिव के निर्देश के बाद विभाग अब इस पर विचार कर रहा है कि पूरी राशि लौटा दी जाए या फिर कुछ दिनों तक और रखी जाए। कारण एक बार एग्जिट सेटलमेंट प्लान की राशि लौट जाने के बाद उसे वापस पाना टेढ़ी खीर है।
भुगतान नहीं होने के पीछे लापरवाही
गन्ना कर्मियों और मजदूरों के एग्जिट सेटलमेंट की राशि जिलाधिकारी के खाते में वर्षों से पड़ी है। भुगतान नहीं होने के पीछे किसकी लापरवाही है। इस संबंध में चीनी मिल मजदूरों की लड़ाई लड़ने वाले अघ्नु यादव कहते हैं कि चीनी निगम के अधिकारियों-कर्मचारियों की मिलीभगत से ऐसा हो रहा है।
पूरा रिकॉर्ड उनके पास है, ऐसे में मजूदर किस आधार पर अपना बिल बनाकर देंगे। आखिर सरकार ने 294 करोड़ किस आधार पर जारी किया था। उसी आधार पर भुगतान कर दिया जाए। बता दें कि अव भी 5015 कर्मचारियों का 72 करोड़ 40 लाख रुपये जिलाधिकारियों के खाते में पड़े हैं।
इन मिलों के मजदूरों को मिलना है मानदेय
90 के दशक में जिन चीनी मिलों को बंद किया गया था उसमें, रैयाम, लोहटा, सकरी, समस्तीपुर, गोरौल, बनमनखी, वारिसलीगंज, बिहटा, गुरारु, न्यू सावन, मोतीपुर, मीरगंज(हथुआ), सीवान, लौरिया और सुगौली शामिल है। इन मिलों को शुगरकेन अंडरटेकिंग्स एक्ट 1976 और बिहार राज्य चीनी उपक्रम (अर्जन) अध्यादेश 1985 के तहत बंद किया गया है। इनके मजदूरों को 2015 के कट ऑफ डेट और सीजनल- कैजुएल कर्मियों को 1997 तक मानदेय भुगतान के लिए आवेदन करना था।
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