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राहुल के OBC मंत्र की बिहार में पहली अग्निपरीक्षा, क्या कहते हैं जातीय आंकड़े और कांग्रेस के सियासी रिकॉर्ड्स

कांग्रेसी विधायकों में ओबीसी की हिस्सेदारी सिर्फ दो यानी करीब 10 फीसदी है, जबकि बिहार में उसकी आबादी करीब 63 फीसदी है। इनमें ईबीसी 27.12 फीसदी और बीसी 36.01 फीसदी है।

Pramod Praveen लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीWed, 9 April 2025 09:44 PM
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राहुल के OBC मंत्र की बिहार में पहली अग्निपरीक्षा, क्या कहते हैं जातीय आंकड़े और कांग्रेस के सियासी रिकॉर्ड्स

गुजरात के अहमदाबाद में कांग्रेस का दो दिवसीय 84वां अधिवेशन संपन्न हो गया। इस दौरान कांग्रेस पार्टी ने ना सिर्फ चुनावी रणनीति पर मंथन किया बल्कि भविष्य के चुनावी समीकरणों पर भी फोकस किया। विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक,राहुल गांधी ने सुझाव दिया है कि मुस्लिम, दलित, ब्राह्मण पर जोर देने की बजाय पार्टी को OBC वोटर्स को जोड़ने पर ध्यान देना चाहिए। सूत्रों की मानें तो बैठक में राहुल गांधी ने कहा कि हम दलित, मुस्लिम और ब्राह्मणों में उलझे रहे और ओबीसी समाज पूरी तरह हमसे दूर हो गया। उन्होंने कहा कि देश की तकरीबन 50 फीसदी आबादी OBC है और यही वोट बैंक कांग्रेस से दूर चला गया है, इसलिए उसे वापस लाने के लिए एड़ी चोटी एक करना होगा।

साफ है कि राहुल गांधी ओबीसी मंत्र के सहारे ओबीसी प्रधानमंत्री की अगुवाई वाली भाजपा को पटखनी देना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि SC-ST के साथ-साथ ओबीसी समुदाय को भी कांग्रेस अपने साथ लेकर चले। कांग्रेस इसी मुहिम में जिला स्तर से लेकर केंद्रीय स्तर तक ओबीसी समुदाय के लोगों को जोड़ने में जुट गई है। राहुल के इस ओबीसी मंत्र की पहली अग्निपरीक्षा इसी साल बिहार विधानसभा चुनाव में होने वाली है। बड़ी बात यह भी है कि उन्हें अपने इस सियासी मंत्र की सिद्धि के लिए अपने ही सहयोगी दलों अलबत्ता बिहार में राजद और उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी से सियासी बैर भी लेने पड़ सकते हैं।

बिहार में कांग्रेस की स्थिति और सामाजिक आंकलन

आंकड़ों पर गौर करें तो मौजूदा बिहार विधानसभा में कांग्रेस के 19 विधायक हैं। उनकी जातीय स्थिति का आंकलन करने से पता चलता है कि 19 विधायकों में से चार मुसलमान, चार भूमिहार, तीन ब्राह्मण, एक यादव, एक राजपूत, एक बनिया और पांच दलित हैं। स्पष्ट है कि कांग्रेसी विधायकों में ओबीसी की हिस्सेदारी सिर्फ दो यानी करीब 10 फीसदी है, जबकि बिहार में उसकी आबादी करीब 63 फीसदी है। इनमें ईबीसी 27.12 फीसदी और बीसी 36.01 फीसदी है।

2015 के बिहार विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के कुल 26 विधायक जीत कर विधान सभा पहुंचे थे। तब नीतीश, लालू और कांग्रेस ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। आंकड़े बताते हैं कि तब 26 में से पांच मुसलमान, चार भूमिहार,चार ब्राह्मण, तीन राजपूत, दो यादव, एक कुर्मी, एक कायस्थ और छह दलित विधायक जीते थे।

बिहार कांग्रेस संगठन में फेरबदल

जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी के फॉर्मूले पर ओबीसी और दलित जातियों को अधिक प्रतिनिधित्व देने के मकसद से ही कांग्रेस ने हाल ही में बिहार में प्रदेश संगठन में फेरबदल किया है, फिर भी सभा समुदायों को आनुपातिक प्रतिनिधित्व नहीं दे पाई है। इसके तहत पहले प्रदेश प्रभारी बदले गए, इसके बाद नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति हुई। दलित समुदाय से आने वाले राजेश कुमार को अब बिहार कांग्रेस की कमान सौंपी गई है। उनसे पहले भूमिहार समाज से आने वाले अखिलेश सिंह के कंधों पर यह जिम्मेदारी थी। 

अब पार्टी ने 40 में से 21 जिलों में नए जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की है। कई जगहों पर जिलाध्यक्ष के साथ-साथ कार्यकारी जिलाध्यक्ष की भी नियुक्ति की गई है। इन में सबसे अधिक छह-छह जिलों में मुस्लिम और दलित समाज को प्रतिनिधित्व दिया गया है। नए फेरबदल में भूमिहार जिलाध्यक्षों की संख्या कम की गई है। फिर भी अभी छह जिलों के कांग्रेस अध्यक्ष भूमिहार हैं। ओबीसी समुदाय से आने वाले जिलाध्यक्षों की संख्या 14 है।

किस जिले में किस जाति के कांग्रेस जिलाध्यक्ष

अररिया में शाद अहमद (मुस्लिम)

दरभंगा में दयानंद पासवान (दलित)

पूर्वी चंपारण- शशिभूषण राय (भूमिहार)

गोपालंगज- ओमप्रकाश गर्ग (ब्राह्मण)

कटिहार- सुनील यादव (यादव)

किशनगंज- इमाम अली(मुस्लिम)

मधेपुरा- सूर्यनारायण राम (दलित)

मधुबनी- सुबोध मंडल (अति. पिछड़ा)

मुजफ्फरपुर- अरविंद मुकुल (कायस्थ)

पूर्णिया- बिजेन्द्र यादव( यादव)

सहरसा- मुकेश झा( ब्राह्मण)

समस्तीपुर- अबू तमीम (मुस्लिम)

सारण- बच्चू प्रसाद बीरू (दलित)

शिवहर- नूर बेगम) मुस्लिम)

सीतामढ़ी- रकटू प्रसाद (अति पिछड़ा)

सिवान-सुशील कुमार यादव( यादव)

सुपौल-सर्वनायारण मेहता (अति पिछड़ा)

वैशाली- महेश प्रसाद राय (यादव)

पश्चिम चंपारण - प्रमोद सिंह पटेल (कुर्मी)

गया- संतोष कुमार कुशवाहा (कुशवाहा)

जहानाबाद- इश्तियाक आजम (मुस्लिम)

औरंगाबाद- राकेश कुमार सिंह (राजपूत)

अरवल-धनंजय शर्मा(भूमिहार)

नवादा-सतीश कुमार (भूमिहार)

जमुई- अनिल कुमार सिंह (अ. पिछड़ी)

शेखपुरा- प्रभात कुमार चंद्रवंशी (अ. पिछड़ी)

लखीसराय- अमरेश कुमार अनीस (भूमिहार)

बांका-कंचना सिंह (राजपूत)

मुंगेर- अशोक पासवान( दलित)

बेगूसराय -अभय कुमार सर्जंत (भूमिहार)

खगड़िया- अविनाश कुमार अविनाश (दलित)

भागलपुर- परवेज जमाल( मुस्लिम)

रोहतास- अमरेंद्र पांडेय( ब्राह्मण)

भोजपुर-अशोक राम ( दलित)

बक्सर -मनोज कुमार पांडेय (ब्राह्मण)

कैमूर- राधेश्याम कुशवाहा (कुशवाहा)

नालंदा- नरेश अकेला( अति पिछड़ा)

पटना शहर- शशि रंजन(यादव)

पटना ग्रामीण-1 (भूमिहार)

पटना ग्रामीण-2 (पंजाबी)

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बिहार में टॉप 12 जातियां और उनका राजनीतिक झुकाव

वोट बैंक की राजनीति में जातीय आंकड़े सबसे अहम होते हैं। सियासी दल इसी गुणा-भाग में लगी होती हैं कि किस जातीय समुदाय से उसे कितना वोट मिलेगा। ओबीसी को लुभाने की कोशिश कर रही कांग्रेस को बिहार मेंअभी लंबी दूरी तय करनी होगी क्योंकि उसका वोट बैंक छिटक चुका है। बहरहाल बिहार की टॉप 12 जातियों और उसके परंपरागत सियासी झुकाव पर भी डालते हैं-

1. यादव- 14.26 फीसदी - राजद की तरफ झुकाव रहा है। जेडीयू में भी वोट शेयर है।

2. दुसाध- 5.31 फीसदी- प्रमुखता से लोजपा का वोट बैंक।

3. रविदास- 5.2 फीसदी- अलग-अलग दलों में वोट बंटा हुआ है।

4. कोइरी- 4.2 फीसदी- जेडीयू-राजद और भाजपा के बीच वोट बंटा हुआ।

5. ब्राह्मण- 3.65 फीसदी- प्रमुखता से एनडीए का वोट बैंक

6. राजपूत- 3.45 फीसदी- प्रमुखता से एनडीए का वोट बैंक

7. मुसहर- 3.08 फीसदी- हम और राजद का वोट बैंक

8. कुर्मी- 2.87 फीसदी- प्रमुखता से जेडीयू/एनडीए का वोट बैंक

9. भूमिहार- 2.86 फीसदी - प्रमुखता से एनडीए का वोट बैंक

10. मल्लाह- 2.60 फीसदी - जेडीयू/VIP का वोट बैंक

11. बनिया- 2.31 फीसदी- प्रमुखता से BJP/एनडीए का वोट बैंक

12. कायस्थ- 0.60 फीसदी- प्रमुखता से BJP/एनडीए का वोट बैंक

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