बिहार के पूर्व DGP डीपी ओझा का निधन, शहाबुद्दीन और लालू की नाक में दम कर दिया था
- बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक डीपी ओझा का निधन हो गया है। डीजीपी रहते लालू यादव और शहाबुद्दीन की नाक में दम कर देने वाले ओझा कुछ समय से बीमार चल रहे थे।
बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) डीपी ओझा का निधन हो गया। डीजीपी कार्यकाल के दौरान राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और सीवान के सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन की नाक में दम कर देने वाले ओझा कुछ समय से बीमार चल रहे थे। स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से पीड़ित ओझा भारतीय पुलिस सेवा की नौकरी से वीआरएस लेने के बाद से पटना में ही रह रहे थे। लालू यादव ने मुख्यमंत्री राबड़ी देवी की सरकार में डीपी ओझा को डीजीपी बनाया था क्योंकि वो राजनीतिक रूप से सवर्ण (भूमिहार) की नाराजगी कम करना चाहते थे। ओझा ने सार्वजनिक रूप से तब राबड़ी देवी सरकार को लेकर कहा था कि सत्ता लफंगों के हाथों में चली गई है। उसके बाद सरकार ने उनको दिसंबर 2003 में पद से हटा दिया था।
राजनीतिक हलकों में तब चर्चा थी कि शहाबुद्दीन ने लालू यादव से वारिस हयात खान को डीजीपी बनाने की पैरवी की थी लेकिन लालू ने सबसे सीनियर होने के आधार पर ओझा को डीजीपी बना दिया। डीजीपी बनने के बाद डीपी ओझा ने शहाबुद्दीन पर इतनी सख्ती दिखा दी कि लालू, राजद और राबड़ी सरकार के लिए एक-एक दिन भारी पड़ने लगा। पद पर रहते सरकार को लेकर खुले तौर पर नेगेटिव बात करने की वजह से रिटायरमेंट से दो महीना पहले डीपी ओझा को हटा दिया गया। उनकी जगह डीजीपी बनाए गए वारिस हयात खान जिनकी पैरवी पहले शहाबुद्दीन ने की थी। पद से हटाने के बाद ओझा ने वीआरएस ले लिया था और कहा था कि इस सरकार के अंदर वो एक मिनट काम नहीं कर सकते।
शहाबुद्दीन पर 2003 में डीपी ओझा ने कसा शिकंजा
शहाबुद्दीन पर ऐक्शन को लेकर लालू यादव और राबड़ी देवी सरकार की आंखों की किरकिरी बन गए डीपी ओझा को राजद विरोधी वोटरों के बीच लोकप्रियता मिली। इस लोकप्रियता को भुनाने के लिए डीपी ओझा ने 2004 में भूमिहार बहुल बेगूसराय लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा लेकिन उनकी जमानत जब्त हो गई। डीपी ओझा को महज 6000 से भी कम वोट मिले थे। इस चुनाव में जेडीयू के ललन सिंह ने कांग्रेस की कृष्णा शाही को लगभग 20 हजार वोट के अंतर से हराया था।