बिहार उपचुनाव : फाइनल से पहले सेमीफाइनल में जोर लगा रहीं पार्टियां, RJD और BJP की साख दांव पर
बिहार की चार विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में आरजेडी ने तीन सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं, जबकि बीजेपी दो सीटों पर चुनाव लड़ रही है। आरजेडी के सामने अपनी सीटें बचाने की चुनौती है, तो बीजेपी दोनों सीटों पर जीत दर्ज करना चाहेगी।
बिहार की चार विधानसभा सीटों तरारी, रामगढ़, बेलागंज और इमामगंज (सु.) पर हो रहे उपचुनाव में राजनीतिक दलों और दोनों प्रमुख गठबंधनों एनडीए तथा INDIA के लिए सेमीफाइनल सरीखा है। इसी के अनुरूप मैदान में मशक्कत भी कर रहे हैं। अगले ही साल बिहार में विधानसभा का चुनाव होना है। ऐसे में साल 2020 में दो सीटों पर जीता राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), एक-एक पर जीत पाने वाली सीपीआई माले और हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा (हम) के लिए अपनी सीट बरकरार रखना बड़ी चुनौती है। दोनों गठबंधन की ओर से इस चुनाव को अपने पक्ष में करने को लेकर पसीने बहाए जा रहे हैं। पूरी ताकत झोंकी जा रही है। ताकि इस चुनाव के नतीजे से आम चुनाव 2025 की राह मुश्किलों भरी न बन जाए। एनडीए ने चार में से दो सीटों पर जहां महिला प्रत्याशी उतारा है, वहीं इंडिया गठबंधन से कोई महिला मैदान में नहीं है।
चार सीटों के इस उपचुनाव में दोनों गठबंधनों के मुख्य घटक दल भाजपा और राजद की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। राजद ने जहां तीन सीट रामगढ़, बेलागंज और इमामगंज से अपना उम्मीदवार दिया है, वहीं भाजपा दो जगह तरारी और रामगढ़ के मैदान में ताल ठोक रही है। एनडीए के दो और महत्वपूर्ण दल जदयू बेलागंज तो हम इमामगंज को अपने-अपने पाले में करने में जुटे हैं। तरारी में पिछली बार जीती सीपीआई माले ने सुदामा प्रसाद के आरा से सांसद बन जाने के कारण पुराने कार्यकर्ता राजू यादव पर दांव खेला है। राजू यादव 2014 और 2019 में आरा से लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं।
बसपा ने भी रामगढ़ से सतीश यादव को जबकि तरारी से सिकंदर कुशवाहा को मैदान में उतारा है। वहीं, पहली बार विधानसभा चुनाव में शामिल एक माह पुरानी राजनीतिक पार्टी जन सुराज ने सभी चार सीटों पर प्रत्याशी दिए हैं। उसके प्रदर्शन पर राजनीतिक विश्लेषकों की खास नजर है। सभी दल और दोनों प्रमुख गठबंधन सामाजिक समीकरण को साधने की पुरजोर कोशिश में लगे हैं। इसी के तहत जहां प्रत्याशी उतारे गए हैं, वहीं जनसंपर्क में भी यह रणनीति खासतौर से देखी जा रही है।
प्रत्याशी उतारने में परिवारवाद हावी
विधानसभा उपचुनाव की चारों सीटें वहां के विधायक के सांसद चुने जाने के कारण खाली हुई हैं। दूसरी खास बात यह है कि इन चार में तीन सांसदों के परिवार के सदस्य ही उपचुनाव में उम्मीदवार बनाए गए हैं। इनमें एक हैं रामगढ़ से राजद उम्मीदवार अजीत कुमार सिंह, जो सांसद सुधाकर सिंह के छोटे भाई और राजद प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह से पुत्र हैं। दूसरे हैं बेलागंज से राजद प्रत्याशी विश्वनाथ सिंह, जो सांसद डॉ. सुरेंद्र प्रसाद यादव के पुत्र हैं। तीसरी हैं इमामगंज से हम उम्मीदवार दीपा मांझी जो केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी की बहू और राज्य सरकार में मंत्री संतोष मांझी की पत्नी हैं।
चौथी सीट तरारी से पूर्व विधायक नरेंद्र कुमार पांडेय उर्फ सुनील पांडेय के पुत्र विशाल प्रशांत भाजपा उम्मीदवार बने हैं। सुनील पांडेय तरारी से 2010 में जदयू से विधायक बने थे। 2020 में वह यहां से निर्दलीय उम्मीदवार थे और दूसरे नंबर पर रहे थे। इस तरह उपचुनाव में एनडीए और महागठबंधन दोनों ने परिवारवाद से परहेज नहीं किया है। इन सीटों के परिणाम से यह भी साफ होगा कि यहां की जनता ने परिवारवाद की राजनीति को अपना कितना समर्थन दिया।
तरारी और रामगढ़ में भाजपा रही थी तीसरे स्थान पर
तरारी और रामगढ़ उपचुनाव में भाजपा के प्रत्याशी मैदान में हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में दोनों ही सीटों पर भाजपा के प्रत्यशी तीसरे स्थान पर रहे थे। रामगढ़ में भाजपा के प्रत्याशी अशोक सिंह हैं। 2020 में भी वे भाजपा से एनडीए प्रत्याशी थे। तब उन्हें तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा था। यहां से राजद के सुधाकर सिंह को जीत मिली थी। बसपा के प्रत्याशी 198 वोट से हारे थे। तरारी विधानसभा में 2020 में भाजपा ने कौशल कुमार विद्यार्थी को चुनाव मैदान में उतारा था। उन्हें लगभग 14 हजार वोट मिले थे और वे तीसरे स्थान पर थे। 2020 में दूसरे स्थान पर रहे सुनील पांडेय के पुत्र विशाल प्रशांत को भाजपा ने इस उपचुनाव में प्रत्याशी बनाया है। बेलागंज विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में जदयू को अपनी पहली जीत का मौका है। वहीं, राजद को अपनी लगातार जीत को बरकरार रखना चुनौती है।
जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा का कहना है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में विधानसभा उपचुनाव की सभी चार सीटों पर एनडीए की जीत होगी। एनडीए उम्मीदवारों को सभी जगहों पर जनता का समर्थन मिल रहा है। विपक्षी गठबंधन और उसके नेताओं पर जनता का तनिक भी नहीं भरोसा नहीं है। महागठबंधन किसी भी सीट पर लड़ाई देने की हैसियत में नहीं है।
आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी का कहना है कि आम चुनाव के पहले यह महत्वपूर्ण चुनाव है, इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव आगामी विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा। सभी पार्टियों को जनता के बीच अपनी पकड़ का अहसास हो जाएगा। जीतने वाले को मनोवैज्ञानिक लाभ मिलेगा। मुख्य लड़ाई इंडिया गठबंधन और एनडीए के बीच है। प्रशांत कुमार के दावे की भी परीक्षा हो जाएगी।
जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर का कहना है कि दो सीटों पर प्रत्याशी बदलना चुनावी रणनीति का हिस्सा हो सकता है। पूरा देश मुझे चुनावी रणनीतिकार के तौर पर जानता है। चुनाव परिणाम के दिन दिखेगा यह मेरी रणनीति का हिस्सा है या मेरी गलती। अब नेता का बेटा ही नेता नहीं बनेगा।