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बोले कटिहार : अमेरिका है बड़ा खरीदार, टैरिफ से निर्यात पर पड़ सकता है असर

यूएस भारत के मखाना का सबसे बड़ा खरीदार बन गया है, जिससे कटिहार के किसान मखाना की खेती में तेजी ला रहे हैं। मखाना की खेती 4000 से बढ़कर 6000 हेक्टेयर हो गई है। हालांकि, अमेरिका में टैरिफ बढ़ने से...

Newswrap हिन्दुस्तान, भागलपुरSat, 5 April 2025 12:17 AM
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बोले कटिहार : अमेरिका है बड़ा खरीदार, टैरिफ से निर्यात पर पड़ सकता है असर

यूएस भारत के मखाना का सबसे बड़ा खरीदार है। यहां पर खपत अधिक होने की वजह से भारत आसानी से मखाना अमेरिका भेज रहा था। व्यवसायी से लेकर किसान तक मखाना की खेती करके मालामाल हो रहे थे। कटिहार के किसान धान और केला की खेती को छोड़कर अब मखाना की खेती कर रहे हैं। पहले जहां चार हजार हेक्टेयर में मखाना की खेती होती थी। अब वह बढ़कर छह हजार हेक्टेयर तक पहुंच गया है। पहले पोखर व तालाब में होता था। अब खेतों में मेड़ बनाकर किसान मखाना की खेती करने लगे है। जिले के 16 प्रखंडों में मखाना का उत्पादन हो रहा है। अमैरिकी टैरिफ से भारत के मखाना निर्यात पर असर पड़ने की आशंका व्यक्त की जा रही है।

06 हजार हेक्टेयर में होती है मखाना की खेती

25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है गुड़िया का उत्पादन

01 लाख 50 हजार लाख क्विंटल का औसत उत्पादन

मखाना व्यवसायी गुलफराज ने बताया कि पहले मखाना की खपत सबसे अधिक पाकिस्तान में होती थी। पाकिस्तान में ट्रेड बंद होने की वजह से धीरे-धीरे मखाना का बाजार यूएस की तरफ चलाया गया। अभी यूएस का बाजार इतना बढ़िया था। व्यवसायी से लेकर किसान तक मालामाल हो रहे थे। अब अगर मखाना की फसल में ट्रैफिक बढ़ा दिया गया है तो व्यवसाय पर सीधा असर पड़ेगा। हालांकि कच्चा माल पर असर कम पड़ेगा। मगर प्रोसेसिंग करके मखाना बेचने वालों को अधिक परेशानी होगी।

विदेशों में मखाना 4000 रुपए प्रति किलो तक बिका :

सीए मितेश डालमिया ने बताया कि 26 फीसदी टैरिफ से अमेरिका को मखाना निर्यात करने की लागत बढ़ जाएगी। चूंकि भारत में मखाना की खेती मुख्य रूप से बिहार और पश्चिम बंगाल (हरिश्चंद्रपुर) में की जाती है। अमेरिकी टैरिफ का मखाना पर असर पड़ सकता है क्योंकि यह एक दुर्लभ उत्पाद है और मांग की तुलना में इसकी आपूर्ति बहुत कम है। पिछले साल विदेशों में मखाना 4000 रुपये प्रति किलो तक बिका था। लगभग 40 फीसदी विश्व बाजार इस उत्पाद को जानता है, वह भी हाल के 2-3 वर्षों में और 60 फीसदी विश्व बाजार आज की तारीख में इस उत्पाद से अछूता है। इसके अलावा, टैरिफ से भारतीय निर्यात पर नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि चीन, वियतनाम और थाईलैंड जैसे अन्य देशों को अमेरिकी बाजार में इससे भी अधिक टैरिफ का सामना करना पड़ता है।

मखाना व्यवसायी के लिए और देशों का खुला दरवाजा :

मखाना व्यवसायी प्रवीण अग्रवाल ने बताया कि मखाना व्यवसाय का हब सिर्फ अमेरिका ही नहीं है। बल्कि और भी कई देशों का दरवाजा खुला हुआ है। एक देश में परेशानी होगी तो दूसरे देश में जाकर व्यवसाय किया जाएगा। इसके लिए सरकार भी हमारी मदद करेगी। इसलिए किसान और व्यवसायियों को अधिक परेशाान होने की जरूरत नहीं है। वे अपने उत्पादन को बढ़ाये और उनके लिए कई देशों का दरवाजा खुला हुआ है। इंटरपेन्योर मीसा सिंह ने बताया कि मखाना के उत्पाद की मांग ग्लोबल लेवल पर काफी है। जिस तरह की मांग हमलोगों के पास आती है। उसके हिसाब से प्रोडक्ट बना रहे है। अमेरिका के अलावे भी कई देश है। जहां पर इस प्रोडक्ट की मांग काफी है।

छह हजार हेक्टेयर में हो रही मखाना की खेती :

जिले के किसान छह हजार हेक्टेयर में मखाना की खेती कर रहे है। यहां की खासियत है कि गुड़िया से लेकर फौड़ी तक का व्यवसाय यहां पर चल रहा है। यहां से 50 के करीब छोटे व मझौले व्यवसायी मखाना का कारोबार देश विदेश में कर रहे है। किसान दीपू कुमार सिंह ने बताया कि ट्रंप की टेरिफ का असर क्या होगा। वह बाद की बात है। मगर इतना पता है कि देश के अंदर ही सही तरीके से मखाना की बिक्री हो जाए तो फिर मुनाफा की कमी नहीं है। उन्होंने कहा कि पिछले साल की तुलना में इस बार मखाना की खेती में लगातार इजाफा किया जा रहा है।

दिल्ली स्थित भारत मंडपम में लगा कटिहार मखाना का स्टॉल :

मोसो इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक गुलफराज ने कहा, इस इवेंट में हम न केवल मखाना अवेयरनेस बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं, बल्कि मखाना एक्सपोर्ट एकल सुविधा केंद्र की जानकारी भी लोगों तक पहुँचा रहे हैं। हमारा मुख्य उद्देश्य कटिहार के मखाना को अलग-अलग फ्लेवर और बेहतरीन पैकेजिंग के साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार तक पहुंचाना है। हमारा शुरू से प्रयास रहा है कि कटिहार के मखाना को अधिक से अधिक प्रमोट किया जाए, और यही कारण है कि हम इसे वैश्विक स्तर तक ले जाने की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं। उन्होंने आगे कहा हम 20 से अधिक लाइसेंसों के साथ एक मखाना एक्सपोर्ट एकल सुविधा केंद्र विकसित कर रहे हैं, जो 30 जून 2025 तक पूरा हो जाएगा। इसके बाद कटिहार का मखाना सीधे विदेशी बाजारों में निर्यात किया जा सकेगा, जिससे स्थानीय किसानों और उद्यमियों को बड़ा लाभ मिलेगा। स्टार्टअप महाकुंभ 2025 एक राष्ट्रीय मंच है, जहां नए और उभरते हुए व्यवसायों को अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन करने का अवसर मिलता है।

सुपर फूड का स्थान ले रहा है कटिहार का मखाना:

मखाना का निर्यातक बी के भट्ट ने बताया कि बिहार के मखाना को 2022 में भौगोलिक संकेत (जीआई) का दर्जा मिला। यह मान्यता घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों बाजारों में प्रभाव शाली साबित हो रहा है। कुछ साल पहले मखाना का मूल्य प्रति किलो 4 सौ था तो आज उसी का रेट हजार को छू रहा है। मखाना तेजी से सुपरफूड के रूप में वैश्विक मान्यता प्राप्त कर रहा है। कभी भारतीय घरों में मुख्य भोजन के रूप में इस्तेमाल होने वाला यह खाद्य पदार्थ अब स्वास्थ्य खाद्य उद्योग में एक लोकप्रिय घटक के रूप में उभरा है, जो इसके समृद्ध पोषण संबंधी गुण, ग्लूटेन-मुक्त और बहुमुखी गुण शामिल है। सरकार ने मखाना उद्योग को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। देश के कुल उत्पादन में बिहार का योगदान लगभग 85 प्रतिशत है। कटिहार, मधुबनी, दरभंगा, सीतामढ़ी, सहरसा, पूर्णिया, सुपौल, किशनगंज और अररिया जैसे प्रमुख जिले केंद्र के रूप में कार्य करते हैं, क्योंकि इनमें अनुकूल जलवायु परिस्थितियां और उपजाऊ मिट्टी है, जो मखाना की बेहतर गुणवत्ता में योगदान करती है।

शिकायतें

1. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के जटिल नियमों, सीमा शुल्क, टैरिफ, और अन्य व्यापारिक बाधाओं से निपटना निर्यात के लिए मुश्किलें बढ़ा देती है ।

2. विकसित देशों में मखाना के गुणवत्ता के सख्त मानकों को पूरा करना पड़ता है। यह उपज पर निर्भर करता है। गुणवत्ता वाले माल की कमी रहती है।

3. विदेशों में निर्यात से माल के परिवहन में लगने वाली लागत और जोखिम, जैसे कि शिपिंग में देरी, नुकसान, या क्षति होने की संभावनाएं बढ़ जाती है।

4. बाजार में प्रतिस्पर्धा इतनी ज्यादा है कि छोटे व्यापारी को निर्यात करने में हमेशा डर लगा रहता है।

5. एमएसएमई के लिए चुनौतियां भरा काम है निर्यात करना। उत्पाद की मांग के बारे में सीमित जानकारी, विदेशी मार्केट के कामकाज से परिचित न होना और निर्यात वितरण तंत्र तक पहुंच में समस्याएं आती हैं।

सुझाव

1. मौसम, सीमा शुल्क, वाहक मुद्दे और बंदरगाह की भीड़ के कारण देरी पर पहल की जरूरत है।

2. उद्योग विभाग को छोटे और मध्यम वर्ग के व्यवसायी के लिए निर्यात के लिए सहयोग करने से एक्सपोर्टर की संख्या बढ़ेगी।

3. दूसरे राज्य के तरह बाजार रेट सरकार अपने स्तर पर तय करे। ताकि किसानों और व्यापारी को लाभ मिले।

4. विदेशी नीति पर सरकार को हस्तक्षेप करने से ही व्यापारी को लाभ पहुंचेगा। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के जटिल नियमों, सीमा शुल्क, टैरिफ, और अन्य नियम पर विचार करे।

5. किसानों को प्रोत्साहन के लिए कृषि विभाग को नई लाभकारी योजनाएं लानी चाहिए । व्यापार तभी संभव है जब किसान मखाने की खेती करेंगे और समृद्ध होंगे।

सुनें हमारी बात

इससे किसानों और व्यवसायियों की आमदनी घटेगी। कोविड के बाद से मुनाफा होना शुरू ही हुआ था। अब एक बार ट्रंप की सरकार ने ट्रैरिफ बढ़ा दिया है। इससे व्यापार पर काफी असर होगा। हालांकि अन्य देशों में भी मखाना बेचा जा सकता है।

गुलफराज, मखाना व्यवसायी

रॉ मटेरियल अगर भेजा जाएगा तो बहुत असर नहीं होगा। मगर जैसे ही उसे रोस्टेड करके भेजा जाएगा। कीमत बढ़ेगी। इसलिए मखाना के फ्लेवर के बाजार पर इसका सीधा असर पड़ेगा। इसलिए अभी बाजार के बारे में बहुत कुछ कहना सहीं नहीं होगा। बाजार टूटेगा तो सब पर इसका असर होगा।

पीयूष डोकानिया, व्यवसायी

कीमत बढ़ने पर मुनाफा जितनी तेजी से नहीं आता है। उससे अधिक तेजी से घटने पर उसका असर दिख जाता है। इसलिए इसका असर किसान और व्यवसायियों को फौरन दिखने लगेगा। लेकिन इससे किसान और व्यवसायी को घबराने की जरूरत नहीं है।

उपेंद्र कुमार सिंह, व्यवसायी

किसानों को अधिक समस्या देखने को मिलेगा। जिस तरह से किसान मखाना की तरफ झुकाव बढ़ा रहे हैं उससे लग रहा है कि आने वाले दिनों में मखाना की पैदावार और बढ़ेगी। पैदावार बढ़ने के बाद मखाना का व्यवसाय देश और विदेशों में आसानी से हो जाएगा।

अंचित मंडल, व्यवसायी

मखाना के उत्पाद की मांग ग्लोबल लेवल पर काफी है। जिस तरह की मांग हमलोगों के पास आती है। उसके हिसाब से प्रोडक्ट बना रहे है। अमेरिका के अलावे भी कई देश है। जहां पर इस प्रोडक्ट की मांग काफी है।

मीसा सिंह, इंटरप्रेन्योर

ट्रंप की टैरिफ का असर क्या होगा। वह बाद की बात है। मगर इतना पता है कि देश के अंदर ही सही तरीके से मखाना की बिक्री हो जाए तो फिर मुनाफा की कमी नहीं है। उन्होंने कहा कि पिछले साल की तुलना में इस बार मखाना की खेती में लगातार इजाफा किया जा रहा है।

दीपू कुमार सिंह, किसान व व्यवसायी

वैश्विक व्यापार में भारी गिरावट आई, जिससे महामंदी के दुष्प्रभाव बढ़ गए। हालांकि इस दिशा में ग्लोबल स्तर पर अभी चर्चा चल रही है। इसलिए सबों को अभी धैर्य रखने की जरूरत है। किसान खेती करें और व्यवसायी इंतजार।

अमित सिंघानियां, व्यवसायी

अमेरिका में टैरिफ बढ़ने से इसका असर कुछ भी मखाना व्यवसाय पर नहीं पड़ेगा क्योंकि जब 3 सौ रुपए प्रतिकिलो मार्केट रेट था तब भी खपत उतनी थी । अभी इसका रेट 9 सौ से एक हजार प्रतिकिलों है फिर भी उतनी ही मांग है। जनसंख्या बढ़ते जा रही है उसके हिसाब से डिमांड भी बढ़ता है। खाने वाले खायेंगे ही चाहे जितना रेट की वृद्धि हो जाएगी।

अभय कुमार मेहता, व्यवसायी

मोदी जी जब से कहे हैं 365 दिन मखाना खाता हूं। तब से दिल्ली और बड़े शहर में डिमांड बढ़ गई है। यहां तक कि विदेशों में भी इसकी डिमांड बढ़ गई है। कंपटीशन मार्केट होने के बावजूद इसकी बिक्री बढ़ी है। हम कटिहार जिले से मखाना खरीद कर अपना ब्रांडिंग कर दिल्ली में सप्लाई कर रहे हैं पहले भी काफी डिमांड थी। टैरिफ बढ़ने के बाद भी इसका कोई भी असर नहीं पड़ेगा।

बीके भट्ट, व्यवसायी

व्यापारियों पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। जबकि किसान पर इसका असर देखने को मिल सकता है व्यापारी कम रेट तय कर माल खरीदेंगे। कोढ़ा में 10 हजार से ज्यादा किसान मखाना की खेती करते हैं। व्यवसाई प्रोसेस करके मखाना का हब मुंबई और गुजरात भेजते हैं। वहां बड़ी-बड़ी कम्पनी पैकेजिंग कर ब्रांडिंग कर विदेशों में निर्यात करती है।

राज रमण, व्यवसायी

इसका असर कटिहार के व्यवसाय पर पड़ सकता है। अभी तो मखना खेती का समय है। उसका बिक्री का सीजन जुलाई से जनवरी तक होता है। टैरिफ के बदलाव का असर जुलाई में पता चलेगा ।

ओमप्रकाश चौधरी, व्यवसायी

कटिहार से मखाना का निर्यात डायरेक्ट विदेश नहीं होता है। मुंबई और गुजरात के मखाना व्यापारी रेलवे रैक से लेकर जाते हैं। प्रोसेस फूड के माध्यम से विदेशों में सप्लाई करते हैं । रही बात टैरिफ के असर की तो हो सकता है कि इसका असर व्यापार पर पड़े । लेकिन लोग मखाना खाना कहा बंद कर देते हैं । 2 साल पहले आधे से भी कम रेट पर मिलता था तो भी उतनी बिक्री थी। अभी पिछले साल के अपेक्षा बिक्री बढ़ी ही है।

बिरेंद्र सिंह बॉबी सिंह, व्यवसायी

मखाना व्यवसाय का हब सिर्फ अमेरिका ही नहीं है। बल्कि और भी कई देशों का दरवाजा खुला हुआ है। एक देश में परेशानी होगी तो दूसरे देश में जाकर व्यवसाय किया जाएगा। बिक्री घटेगी तो देश के किसान और व्यवसायी पर इसका सीधा असर पड़ेगा। पांच हजार बोरा जहां बिकता था वहां पर एक हजार बेरा देगा।

प्रवीण अग्रवाल, एक्सपोर्टर

अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप को किसानों के हित में काम करना चाहिए था। यह तारीफ किसान विरोधी साबित होगा। देश के प्रधानमंत्री को इस पर ध्यान देने की जरूरत है।

राकेश कुमार ठाकुर

अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा टैक्स बधाई जाने से देश के मखाना व्यवसाईयों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। जब व्यापारियों से टैक्स वसूला जाएगा तो वैसी स्थिति में इसका असर सीधा किसानों के कच्चे माल पर पड़ेगा किसानों का माल सही दर पर नहीं बिक्री हो पाएगा। व्यापार पर इसका भारी बुरा असर पड़ेगा।

अवधेश कुमार मेहता

अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ के आसर से व्यापारी और किसान तीनों बर्बाद हो जाएंगे।टैरिफ के असर से गुड़िया क्रेताओं पर काफी दबाव बढ़ेगा। मखाने के दर में भारी गिरावट होगी।

मनोज कुमार सिंह उर्फ चुन्ना सिंह

अमेरिका द्वारा लगाए गए नए टैरिफ भारतीय मखाना किसानों के लिए एक बड़ा झटका है। इससे उनके उत्पाद की प्रतिस्पर्धात्मकता कम होगी, निर्यात घटेगा और उनकी आय पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। सरकार और निर्यातकों को अब इस स्थिति से निपटने के लिए रणनीतियाँ बनानी होंगी, जिसमें नए बाजारों की तलाश और घरेलू खपत को बढ़ावा देना शामिल हो सकता है।

मृत्युंजय कुमार, व्यवसायी

ट्रेरिफ का असर स्थानीय स्तर ही नहीं बल्कि पूरे देश के व्यवसायियों पर पड़ेगा। कीमत घटेगा तो उसका असर देशी से छोटे और मझौले व्यवसायी और किसान को पड़ेगा। हालांकि अमेरिका के अलावे भी कई देश है। जहां पर मखाना की मांग है।

सुनील बूबना, व्यवसायी

बोले विशेषज्ञ

पिछले साल विदेशों में मखाना 4000 रुपये प्रति किलो तक बिका था। लगभग 40 फीसदी विश्व बाजार इस उत्पाद को जानता है, वह भी हाल के 2-3 वर्षों में और 60 फीसदी विश्व बाजार आज की तारीख में इस उत्पाद से अछूता है। इसके अलावा, टैरिफ से भारतीय निर्यात पर नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा।

मितेश डालमिया, सीए

बोले जिम्मेदार

मखाना पर लगे टेरिफ का जिले में कोई खास प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है। जिले में मखाना उत्पादन में वृद्धि हो रही है। इस बार मखाना के रकबा में 25 फीसदी वृद्धि की संभावना है। किसानों में मखाना उत्पादन को लेकर काफी उत्साह है। इस साल 8 हजार हेक्टेयर तक रकबा आने की संभावना है।

मिथिलेश कुमार, जिला कृषि पदाधिकारी, कटिहार

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