विशेष शिक्षा अनुदेशकों को समायोजित करे सरकार
भागलपुर में, 6 से 14 साल के बच्चों को पढ़ाने वाले अनौपचारिक सह विशेष शिक्षा अनुदेशकों को सरकार ने बिना कारण हटाया। कई कोर्ट गए, लेकिन सैकड़ों अभी भी समायोजन का इंतजार कर रहे हैं। उनके परिवार आर्थिक...
भागलपुर। गांवों में स्कूल नहीं जाने वाले छह से 14 साल के बच्चों को पढ़ाने के लिए अनौपचारिक सह विशेष शिक्षा अनुदेशकों का चयन हुआ था। एक अनौपचारिक सह विशेष शिक्षा अनुदेशक 25 से 40 बच्चों को गांव के टोलों में पढ़ाते थे। इसके एवज में मानदेय मिलता था। तीन-चार साल पढ़ाने के बाद उन्हें हटाया गया। सरकार के इस फैसले के खिलाफ कई लोगों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट के आदेश के बाद उनमें से कुछ का दूसरे विभागों में समायोजन हो गया। लेकिन सैकड़ों लोग आज भी समायोजन की गुहार लगा रहे हैं। भूतपूर्व अनौपचारिक सह विशेष शिक्षा अनुदेशक संघर्ष समिति के पदाधिकारियों का कहना है सरकार बचे लोगों का भी समायोजन करे। ऐसा नहीं होने से परिवार का भरण-पोषण करने में काफी परेशानी हो रही है।
भूतपूर्व अनौपचारिक सह विशेष शिक्षा अनुदेशक संघर्ष समिति भागलपुर के सचिव दीपक कुमार ने बताया कि करीब 1981 से कुछ लोग अनौपचारिक अनुदेशक के पद पर काम कर रहे थे। लेकिन बिहार सरकार ने बिना कोई कारण बताये सभी लोगों को हटा दिया। कई लोगों ने 1998 तक यह काम किया। उस समय दो सौ रुपये महीने मानदेय मिल रहा था। बच्चों को पढ़ाने के लिए समय-समय पर 10 दिनों का प्रशिक्षण दिया जाता है। गांव के छह से 14 साल के वैसे बच्चे जो स्कूल दूर होने के चलते पढ़ने नहीं जाते थे। उन्हें इकट्ठा कर अनौपचारिक अनुदेशक पढ़ाते थे। कोई खुद के दरवाजे पर तो कोई सार्वजनिक स्थान पर बच्चों को पढ़ाते थे। उस समय के पढ़े बच्चों में कई आज पदाधिकारी बन गये हैं। लेकिन जिन लोगों ने ऐसे बच्चों की पढ़ाई की मजबूत नींव रखी। वह दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। उनलोगों के काम की देखरेख करने की जिम्मेदारी सुपरवाइजरों की थी। सरकार ने उन्हें नहीं हटाया। बल्कि दूसरे विभागों में समायोजित कर दिया। समायोजन के लिए लंबे समय से संघर्ष किया जा रहा है। इस दौरान कई लोगों की उम्र 60 साल से अधिक हो गयी है। कुछ लोगों की मौत भी हो गयी है। लेकिन अभी भी काफी संख्या में लोग समायोजन का इंतजार कर रहे हैं। सरकार द्वारा हटाए जाने के बाद उन्हें दूसरा कोई काम नहीं मिल रहा है। रोजी-रोटी का संकट हो गया है। आर्थिक संकट के चलते बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं दे पा रहे हैं।
भूतपूर्व अनौपचारिक सह विशेष शिक्षा अनुदेशक संघर्ष समिति के प्रदेश सचिव जीवन दास ने बताया कि उस समय बहाली के लिए कोई विशेष प्रक्रिया नहीं अपनायी गयी थी। इसके लिए जिसका चयन होता था। उसका नाम प्रखंड परियोजना कार्यालय के सूचना पट्ट पर लिख दिया जाता था। उसके बाद संबंधित व्यक्ति गांव और टोलों में जाकर बच्चों को पढ़ाने लगते थे। मानदेय की राशि बैंक के खाते या चेक के माध्यम से मिल जाती थी। कुछ लोगों को पंजी के आधार पर मानदेय मिलता था। सरकार द्वारा बिना कारण बताए हटा दिया गया। सरकार के एक निर्णय से हजारों लोग बेरोजगार होकर सड़क पर आ गये। हटाने के बाद कई लोगों ने कोर्ट में गुहार लगायी। 26 फरवरी 2016 के पहले जिसने भी कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, उसका समायोजन दूसरे विभागों में चतुर्थवर्गीय कर्मचारी के पद पर हो गया। वैसे लोगों का समायोजन हुआ, जो तीन साल तक काम किये थे। जिले में करीब 642 का समायोजन किया जा चुका है। जिन लोगों ने संघ के माध्यम से अपनी मांगों को सरकार के समक्ष रखा। वह आज भी सड़कों पर आन्दोलन करने को विवश हैं। सरकार ने जिस तरह से कोर्ट गये अनौपचारिक अनुदेशकों का समायोजन किया गया है। उसी तरह बचे पूर्व अनौपचारिक अनुदेशकों का समायोजन करे, ताकि आर्थिक संकट से बचा जा सके। पूर्व अनौपचारिक अनुदेशक परशुराम ने बताया कि सरकार को सभी के साथ एक तरह का न्याय करना चाहिए। 26 फरवरी 2016 के पहले कोर्ट गये लोगों की तरह ही सभी को राहत मिलनी चाहिए। बचे लोगों के काम करने की उम्र भी बहुत कम बची है। अगर सरकार तत्काल समायोजन करने का निर्णय नहीं लेगी तो अधिकांश की उम्र 60 साल को पार कर जायेगी। पूर्व अनौपचारिक अनुदेशक ब्रह्मदेव यादव और नरेश प्रसाद चौधरी ने बताया कि बिहार में करीब 15 हजार अनौपचारिक अनुदेशक थे। उनमें से करीब 6500 का समायोजन हो चुका है। संघर्ष करते-करते थक चुके हैं। अगर सरकार समायोजन का निर्णय नहीं लेगी तो आन्दोलन और तेज किया जाएगा। पहले पूर्व अनौपचारिक अनुदेशकों की भीड़ होती थी। उम्र अधिक होने या निधन होने के चलते इनकी संख्या काफी कम हो गयी है। सरकार को सहानुभूतिपूर्वक विचार करना चाहिए।
संघर्ष करने को विवश हैं पूर्व अनौपचारिक शिक्षा और विशेष शिक्षा अनुदेशक
भूतपूर्व अनौपचारिक सह विशेष शिक्षा अनुदेशक संघर्ष समिति के प्रदेश सचिव जीवन दास ने बताया कि 1994 से 1998 तक अनौपचारिक शिक्षा अनुदेशक के रूप में कार्य करने के बाद सरकार द्वारा अनौपचारिक शिक्षा को स्थगित कर दिया गया। जिसके बाद 1998 से 2001 तक अनौपचारिक शिक्षा अनुदेशक की जगह विशेष शिक्षा अनुदेशक के नाम से बहाल किया गया। जिनका कार्यकाल 1998 से 2001 तक जारी रहा। इसके बाद उन लोगों को सेवा से हटा दिया गया। उनलोगों को दो सौ रुपये मासिक मानदेय का भुगतान किया जाता था। हटा देने के बाद उनकी हालत आर्थिक रूप से दिन पर दिन दयनीय होती चली गई और परिवार के भरण-पोषण की समस्या उत्पन्न हो गई है। विभाग की दोहरी नीति के कारण जहां एक तरफ अनुदेशकों को समायोजन से वंचित रखा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर जिसके पास पर्याप्त योगयता नहीं है ऐसे व्यक्तियों का समायोजन किया जा रहा है।
दो दशक से आधे से अधिक पूर्व शिक्षा अनुदेशकों को है समायोजन का इंतजार
भूतपूर्व अनौपचारिक सह विशेष शिक्षा अनुदेशक संघर्ष समिति के जिला सचिव दीपक कुमार ने बताया कि राज्य सरकार के द्वारा बिना किसी पूर्व सूचना के अनौपचारिक शिक्षा अनुदेशक और विशेष शिक्षा अनुदेशक द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रम को बंद कर दिया गया था। जिसके कारण उन सभी अनुदेशकों को दो दशक से भी अधिक समय बीत जाने कि बाद भी दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही हैं। बेरोजगारी के कारण उनलोगों के समक्ष भुखमरी की हालत हो गयी है। जिससे बच्चों की शिक्षा के साथ घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। महंगाई तेजी से बढ़ती जा जा रही है। किसी तरह से जीवन-यापन करना पड़ रहा है। भूतपूर्व शिक्षा अनुदेशकों को मजदूरी, खेतों में काम, कपड़ों की फेरी और बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर भरण-पोषण करना पड़ता है। अगर सरकार द्वारा उनलोगों का समायोजन कर मुख्यधारा से नहीं जोड़ा गया, तो जोरदार आंदोलन किया जाएगा। सरकार को विधानसभा चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
योजना समाप्ति से पूर्व लगातार तीन वर्षों तक कार्यरत रहे अनुदेशकों का हो समायोजन
भूतपूर्व अनौपचारिक सह विशेष शिक्षा अनुदेशक संघर्ष समिति के सदस्य नरेश प्रसाद चौधरी ने बताया कि चयन होने के बाद प्रखंड परियोजना कार्यालय के सूचनापट्ट पर नाम लिख दिया जाता था। इसके बाद अनौपचारिक अनुदेशक गांव और टोलों में जाकर छह से 14 साल के स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों को पढ़ाते थे। सरकार द्वारा अचानक योजना को बंद करने से हजारों लोग सड़क पर आ गये। सरकार को सभी अनौपचारिक अनुदेशकों का समायोजन करना चाहिए। वर्तमान में 26 फरवरी 2016 तक कोर्ट की शरण में गये अनौपचारिक अनुदेशकों को ही समायोजित किया गया है। लंबे समय से आन्दोलन किया जा रहा है। सरकार पूर्व अनौपचारिक अनुदेशकों का तत्काल दूसरे विभागों में समायोजन करे।
समायोजन नहीं होने से परिवार में आर्थिक संकट
भूतपूर्व अनौपचारिक सह विशेष शिक्षा अनुदेशक संघर्ष समिति की सदस्य बबीता कुमारी ने बताया कि सरकार द्वारा योजना स्थगित किए जाने के बाद अब तक करीब आधे अनौपचाचिक शिक्षा अनुदेशकों का समायोजन कर दिया गया। लेकिन उन लोगों का समायोजन अभी तक नहीं किया गया। उनलोगों के समक्ष परिवार के भरण-पोषण की समस्या उत्पन्न हो गई है। सरकार तत्काल उन लोगों को नौकरी दे, ताकि उनके बच्चों का भविष्य बन सके। काम से हटाये जाने के बाद मेहनत-मजदूरी कर परिवार का भरण-पोषण किया जा रहा है। समायोजन के लिए कई बार सरकार और जिला प्रशासन को संघ के माध्यम से आवेदन दिया गया। लेकिन अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है।
अनौपचारिक शिक्षा अनुदेशकों के समक्ष रोजगार और परिवार के भरण-पोषण की समस्या उत्पन्न हो गई है। सरकार द्वारा योजना स्थगित किए जाने के बाद कोर्ट जाने वाले करीब आधे अनौपचाचिक शिक्षा अनुदेशकों का समायोजन कर दिया गया। लेकिन अभी तक उन लोगों का समायोजन नहीं किया गया।
ओम प्रकाश मंडल
शिक्षा अनुदेशक बढ़ती उम्र के साथ बेरोजगारी के चलते आर्थिक संकट झेल रहे हैं। कोर्ट की शरण में जाने के बाद भी वर्षों से उन लोगों को केवल आश्वासन ही मिल रहा है। आज तक किसी भी विभाग में सेवा समायोजन नहीं किया गया।
ब्रह्मदेव यादव
नौकरी के इंतजार में कई अनुदेशकों का निधन हो चुका है। कई की उम्र 60 वर्ष से अधिक हो गई है। अभी भी सैकड़ों पूर्व अनौपचारिक अनुदेशक समायोजन का इंतजार कर रहे हैं। बढ़ती उम्र के कारण निजी क्षेत्र में भी काम मिलने में काफी दिक्कत होती है।
शैलेन्द्र कुमार चौधरी
शिक्षा अनुदेशकों के साथ पहले भी अन्याय हुआ था और आज भी हो रहा है। सरकार से समायोजन की मांग को लेकर दर-दर भटकना पड़ रहा है। अगर उनकी मांग पूरी नहीं हुई तो आन्दोलन को तेज किया जाएगा। न्याय के साथ जीवन जीने का अधिकार सभी को है।
निरंजन कुमार पंडित
संघर्ष समिति के साथ पिछले कई वर्षों से जुड़कर काम कर रहे हैं। लेकिन अभी तक उन लोगों का समायोजन नहीं हुआ है। सरकार उनके पुराने साथियों की तरह ही बचे हुए सभी शिक्षा अनुदेशकों का समायोजन करे, ताकि परिवार का भरण-पोषण किया जा सके।
मुनमुन कुमारी
बिना कारण बताये सरकार ने काम से हटा दिया। काम से हटाने के बाद दूसरे विभागों में समायोजन नहीं किया गया। सभी पूर्व अनौपचारिक अनुदेशकों को किसी विभाग में समायोजित करने की जिम्मेदारी सरकार की थी। आज भी सैकड़ों लोग सड़क पर आन्दोलन कर रहे हैं।
सुनैना कुमारी
सरकार ने वैसे लोगों को दूसरे विभाग में समायोजित किया। जो लगातार तीन साल काम किये थे और 26 फरवरी 2016 के पहले कोर्ट गये थे। बचे लोगों के बारे में सरकार कोई निर्णय नहीं ले रही है। इसके चलते घर चलाने में परेशानी हो रही है।
रामवरण प्रसाद सिंह
अनौपचारिक शिक्षा अनुदेशकों को दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो पा रही है। अगर भविष्य में कोई घटना अनुदेशकों के साथ होती है, तो इसकी जिम्मेदारी सम्बन्धित विभाग की होगी। क्योंकि अनुदेशक आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं।
सुभाष चन्द्र भारती
छह से 14 साल तक के 25 से 40 बच्चों को खोजकर पढ़ाने के लिए अनौपचारिक अनुदेशकों ने कड़ी मेहनत की। लेकिन सरकार द्वारा उसका कोई महत्व नहीं दिया जा रहा है। कई सालों से लोग सड़क पर उतरकर समायोजन की मांग कर रहे हैं।
नंदकिशोर पासवान
सरकार द्वारा दो सौ रुपये मानदेय पर चयन किया गया था। बैंक चेक और अन्य माध्यमों से मानदेय का भुगतान होता था। अनुदेशक के रूप में चयनित व्यक्ति का नाम प्रखंड परियोजना कार्यालय के शिलापट्ट पर अंकित कर दिया जाता था।
बेचन हरिजन
सरकार द्वारा उनलोगों को समय-समय पर 10-10 दिनों का प्रशिक्षण दिया गया था। काम और प्रशिक्षण मिलने से संबंधित प्रमाण पत्र भी उनलोगों को मिला है। अनुभव प्रमाण पत्र और प्रशिक्षण प्रमाण पत्र होने के बावजूद समायोजन नहीं किया जा रहा है।
जितेन्द्र कुमार चौधरी
समाज के जो बच्चे स्कूल नहीं जा रहे थे, उनको खोजकर पढ़ाया गया। वैसे बच्चों में आज कई पदाधिकारी बन गये हैं। लेकिन उनको बनाने वालों की हालत आज बदहाल है। परिवार चलाना भी मुश्किल हो गया है। सरकार जल्द समायोजन पर निर्णय ले।
संजय कुमार दास
समस्या
1.पूर्व अनौपचारिक शिक्षा अनुदेशकों का किसी विभाग में समायोजन नहीं होने से आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है।
2.बच्चों को पढ़ाने के दौरान सरकार द्वारा कई बार 10-10 दिनों का प्रशिक्षण दिया गया। इसके बावजूद सरकार समायोजन नहीं कर रही है।
3.16 फरवरी 2016 तक कोर्ट गये पूर्व अनौपचारिक अनुदेशकों का सरकार ने विभिन्न विभागों में समायोजन किया। बचे अन्य के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया जा रहा।
4.सरकार द्वारा बिना किसी पूर्व सूचना के अनौपचारिक शिक्षा अनुदेशक और विशेष शिक्षा अनुदेशक द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रम को बंद कर दिया गया।
5.समाज से ढ़ूंढ़कर विद्यालय से वंचित बच्चों को पढ़ाने का कार्य करने के बावजूद सरकार समायोजन पर विचार नहीं कर रही है।
सुझाव
1.शिक्षा विभाग द्वारा प्रशिक्षण और अनुभव प्राप्त अनौपचारिक शिक्षा अनुदेशकों को प्राथमिकता के आधार पर समायोजित करना चाहिए।
2.जिन लोगों को बिना सूचना के काम से हटा दिया गया। उसको परिवार के भरण-पोषण के लिए आर्थिक मदद मिले।
3.कोर्ट जाने वाले और तीन वर्ष की सेवा पूरी करने वाले अनौपचारिक शिक्षा अनुदेशकों को समायोजित किया गया, बचे अनुदेशको को भी इसी आधार पर समायोजित किया जाए।
4.सरकार पूर्व अनौपचारिक अनुदेशकों के बच्चों की पढ़ाई और परिवार के बीमार लोगों के इलाज की नि:शुल्क व्यवस्था करे।
5.सरकार आर्थिक रूप से कमजोर पूर्व अनौपचारिक अनुदेशकों को सरकार की योजनाओं का लाभ दे, ताकि वह परिवार का भरण-पोषण कर सकें।
बोले जिम्मेदार
26 फरवरी 2016 को जो भी पूर्व शिक्षा अनुदेशक तीन साल की सेवा के साथ कोर्ट में पिटीशनर हैं, वैसे पूर्व अनुदेशकों का समायोजन ही किया जा सकता है। जिन्होंने तीन साल की नियमित सेवा और कोर्ट में पिटीशन दाखिल नहीं किया उनके समायोजन के लिए विभाग में कोई प्रावधान नहीं है। नियमावली के अनुसार इस मामले पर जिला स्तर से कुछ भी करना संभव नहीं है। आगे भी मुख्यालय के स्तर से शिक्षा विभाग को यदि कोई नया निर्देश प्राप्त होगा तो उसपर नियमानुसार अमल किया जाएगा। स्थानीय स्तर पर इस मामले में कुछ भी नहीं किया जा सकता।
नितेश कुमार, जिला कार्यक्रम पदाधिकारी, (साक्षरता) शिक्षा
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