बोले मुंगेर : 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली और बाजार की हो उपलब्धता
संग्रामपुर प्रखंड के केन्दुआ गांव में कुम्हार समुदाय पारंपरिक मिट्टी के बर्तनों का निर्माण करता रहा है, लेकिन आधुनिकता, प्लास्टिक के बर्तनों और सरकारी उदासीनता के कारण उनका व्यवसाय संकट में है। मिट्टी...
संग्रामपुर प्रखंड में स्थित बलिया पंचायत के केन्दुआ गांव में बसे कुम्हार समुदाय का जीवन मिट्टी और चाक के इर्द-गिर्द घूमता रहा है। पीढ़ियों से यह समुदाय पारंपरिक रूप से मिट्टी के बर्तन, खपड़े, कुल्हड़ और सुराही बनाकर अपनी आजीविका चलाता रहा है। लेकिन आधुनिकता की तेज रफ्तार, प्लास्टिक और धातु के बर्तनों का बढ़ता चलन, सरकारी उदासीनता, कच्चे माल की उपलब्धता में कमी और महंगी बिजली ने इस कला और व्यवसाय को संकट में डाल दिया है। यह स्थिति केवल केन्दुआ गांव के कुम्हारों की ही नहीं है, बल्कि प्रखंड के अन्य क्षेत्रों में बसे कुम्हारों की भी है। कुम्हारों की यह व्यथा सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक भी है। हिन्दुस्तान के साथ संवाद के दौरान जिले के कुम्हार समाज के लोगों ने अपनी परेशानी बताई।
10 किलोमीटर है संग्रामपुर प्रखंड मुख्यालय से केंदुआ गांव
06 सौ की आबादी में 200 है मतदाताओं की संख्या
05 किलोमीटर दूर से मिट्टी लाते हैं समाज के लोग
प्रखंड मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर दूर केन्दुआ गांव में लगभग 40 घर कुम्हार जाति के हैं। राज्य की कुल जनसंख्या में लगभग 2 प्रतिशत के हिस्सेदारी रखने वाले कुम्हारों की जिनकी इस गांव में आबादी लगभग 600 और मतदाताओं की संख्या 200 के आस-पास है। आज यह समुदाय कई स्तरों पर चुनौतियों का सामना कर रहा है और कई समस्याओं से ग्रस्त हैं। संवाद के दौरान उन्होंने बताया कि वर्षों से मिट्टी की खुदाई के लिए प्रयोग में लाया जाने वाला कुमरगढ़िया तालाब अब माफिया लोगों के कब्जे में है। हमें अब वहां से मिट्टी नहीं लेने दिया जाता है। ट्रैक्टर से हजार रुपये देकर लोग बाहर से आकर मिट्टी ले जाते हैं, जिससे हमारे समक्ष मिट्टी की कमी हो गई है। ऐसे में, मिट्टी लाने के लिए अब हमें 5 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है, जिससे ट्रांसपोर्ट का खर्च और मेहनत दोनों बढ़ गई है। कई बार मिट्टी को लेकर विवाद और मारपीट तक की नौबत आ जाती है। कोयले के दाम में हुई भारी बढ़ोतरी और पानी की समस्या ने तो हमारे धंधे की कमर ही तोड़ कर रख दी है।
अधिक आ रहा है बिजली बिल :
बिजली बिल की बढ़ती कीमत और चाक चलाने में लगने वाली अधिक ऊर्जा भी हमारी परेशानी को बढ़ा रही है। उनका कहना था कि, क्षेत्र में कच्चे मकान की संख्या में आ रही तेजी से कमी के कारण छत में लगने वाले खपड़ों की बिक्री अब ना के बराबर हो गई है। इसके साथ ही मिट्टी की जगह प्लास्टिक और धातु के बर्तनों के उपयोग ने भी हमारे उत्पादों की मांग कम कर दी है, जिससे हमारा व्यवसाय लगभग ठप हो गया है। दीपावली जैसे त्योहारों में चीनी लाइट्स और अन्य सस्ते उत्पाद भी हमारे परंपरागत दीयों की बिक्री को बुरी तरह से प्रभावित करते हैं। इसके अलावा मिट्टी के अन्य उत्पादों की मांग में भी भारी कभी आई है। उन्होंने कहा कि, मिट्टी के उत्पादों के निर्माण में जिस हिसाब से लागत में वृद्धि हुई है, उस हिसाब से उसके मूल्य में वृद्धि नहीं हुई है। ऐसे में, लागत के अनुसार हमें लाभ नहीं हो पाता है।
समाधान की दिशा और सरकारी पहल की आवश्यकता:
कुम्हारों ने कहा कि आज हमारे समुदाय की समस्याओं का हल केवल सहानुभूति से नहीं, बल्कि ठोस सरकारी नीतियों और योजनाओं से संभव है। सबसे पहले तो हमें मिट्टी उपलब्ध कराई जाय। इसके साथ ही, हमें 200 यूनिट मुफ्त बिजली दी जाय। हमारे लिए समुचित घर पर कोयले की भी व्यवस्था हो। इसके साथ ही हमारे लिए सस्ते दर पर ऋण की सुविधा सुनिश्चित की जानी चाहिए, ताकि हम अपने व्यवसाय को आधुनिकता के साथ जोड़ सकें। सरकारी योजनाओं का लाभ एवं बैंक से ऋण प्राप्त करने में आने वाली परेशानियों को दूर करने के लिए ग्राम स्तर पर ही सहायता केंद्र या 'माटी कला सहायता समिति' का गठन किया जाय। हमारी पारंपरिक कला को संरक्षित करने के लिए राज्य सरकार को माटी कला बोर्ड का गठन कर उसका बजट कम- से- कम 200 करोड़ रुपये करना चाहिए। इसके अतिरिक्त, हमारे उत्पादों के लिए सरकारी स्तर पर बाजार की व्यवस्था हो तथा हमारी कला के संरक्षण की व्यवस्था हो। सरकार को हमारे कुम्हार-प्रजापति समाज के योगदान को सम्मान देने के लिए हमारे महापुरुषों की जयंती पर सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाना चाहिए और हमारे समाज को शासन एवं प्रशासन में भागीदारी मिलनी चाहिए।
कला को बचाना सबकी जिम्मेदारी :
केन्दुआ जैसे गांवों में आज भी परंपरा और आत्मनिर्भरता की उम्मीद बची है। यदि सरकार और समाज मिलकर इनके लिए ठोस कदम उठाएं, तो न केवल एक कला को नया जीवन मिलेगा, बल्कि सैकड़ों परिवारों की आजीविका फिर से पटरी पर लौट सकती है। मिट्टी से जुड़ी यह संस्कृति, हमारी सभ्यता की जड़ है। इसे बचाना हम सबकी जिम्मेदारी है। ऐसे में, आज जरूरत है उनके संकट को समझने, उनकी कला को संरक्षण देने और उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने की।
शिकायत
1. परंपरागत तालाब (कुमरगढ़िया) पर माफियाओं का कब्जा हो जाने से मिट्टी आसानी से एवं सस्ते में नहीं मिलती, जिससे व्यवसाय प्रभावित हो रहा है।
2. बिजली की दरें बढ़ने और चाक चलाने में अधिक ऊर्जा लगने से उत्पादन लागत बहुत बढ़ गई है।
3. ईंधन के रूप में कोयले की महंगाई और पानी की कमी ने कुम्हारों की कार्यप्रणाली बाधित कर दी है।
4. प्लास्टिक, धातु और चीनी उत्पादों के चलते पारंपरिक मिट्टी के सामान की बिक्री कम हो गई है।
5. लागत बढ़ने के बावजूद उत्पादों के दाम नहीं बढ़े हैं और मांग में भी काफी कमी आई है, जिससे लाभ नहीं मिल पा रहा है।
सुझाव:
1. सरकारी स्तर पर कुम्हारों को मिट्टी उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जाए।
2. ऊर्जा लागत कम करने के लिए सीमित मात्रा में 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली दी जाए।
3. उत्पादन लागत घटाने और व्यवसाय के आधुनिकीकरण के लिए रियायती दरों पर कोयला व ऋण मिले।
4. ग्रामीण स्तर पर ‘माटी कला सहायता समिति’ का गठन हो तथा सहायता केंद्र बनाकर सरकारी योजनाओं का लाभ आसान बनाया जाए।
5. सरकारी स्तर पर खरीद और विपणन की व्यवस्था हो। इसके साथ ही राज्य स्तर पर माटी कला बोर्ड बनाकर इनके उत्पादों के लिए सुनिश्चित बाजार उपलब्ध कराया जाए।
सुनें हमारी पीड़ा
हमारी मुख्य समस्याएं मिट्टी की कमी, बढ़ती लागत और हमारे उत्पादों की मांग में कमी हैं। इसके अलावा बाजार की कमी, सरकारी योजनाओं का लाभ न मिलना और आधुनिकता के कारण पारंपरिक व्यवसाय में गिरावट से भी हम परेशान हैं।
-विजय
मिट्टी को आकार देने वाले हम कुम्हारों की स्थिति दयनीय है। हम अपना पारंपरिक व्यवसाय छोड़कर राजमिस्त्री के साथ मजदूरी कर घर का जीवनयापन कर रहे हैं।
-भूदेव पंडित
आज भी हमारे समाज के काफी लोग पुश्तैनी कारोबार पर बहुत हद तक निर्भर हैं। हमारे समाज के बच्चों को सही शिक्षा नहीं मिल पा रही है।
-श्याम सुंदर पंडित
चाइनीज और प्लास्टिक सामान ने हमारे रोजगार पर ग्रहण लगा दिया है। इसलिए चाइनीज सामान की बिक्री पर प्रतिबंध लगना चाहिए।
-साजन
महंगाई के इस दौर में हमारे सामानों की सही कीमत नहीं मिल पा रही है। अनुदानित दर पर हम लोगों को मिट्टी और संसाधन उपलब्ध होना चाहिए।
-चिंतामणि पंडित
बाजार भाव नहीं मिलने से कभी-कभी लागत पूंजी भी नहीं निकल पाती है। ऐसी स्थिति में हम लोगों को मिट्टी उपलब्ध करा दी जाए तो अच्छा होगा।
-महादेव
हमारे रोजगार को भी स्थायी बाजार चाहिए, ताकि हमारे सामान की सही कीमत मिल सके। सरकार को इस तरफ ध्यान देने की जरूरत है।
-बैकुंठ पंडित
केन्दुआ बांध पर चारों तरफ से अतिक्रमण कर लोग घर बनाकर रह रहे हैं और अब मिट्टी नहीं लेने दे रहे हैं। मिट्टी के लिए कभी-कभी यहां मारपीट भी हो जाती है। अब हमें 5 किलोमीटर दूर से मिट्टी मंगानी पड़ती है, जिससे लागत बढ़ गई है।
-अजय पंडित
हम कुम्हार जातियों के पास अपनी जगह-जमीन नहीं है। हम लोग भूमिहीन हैं। हमें भी पर्चा मिलना चाहिए।
-पप्पू कुमार पंडित
अपने ही पारंपरिक पोखर से मिट्टी लाने पर अतिक्रमणकारी परेशान करते हैं। अब दूर से मिट्टी लानी पड़ती है।
-फंटूश पंडित
पोखर के चारों तरफ सरकारी जमीन पर कुछ लोग अतिक्रमण कर घर बना लिए हैं। अब मिट्टी लेने से मना करते हैं।
-विनय कुमार
कुम्हार जातियों को सस्ती दरों पर ऋण की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि वे अपने व्यापार को और आगे बढ़ा सकें।
-दिलीप पंडित
सरकारी योजनाओं से हमारी जातियों को वंचित रखा जाता है, जबकि वर्षों से हम अभी तक कच्चे मकान में ही रह रहे हैं। पक्का मकान अब तक नसीब नहीं हुआ है।
-नेपाली पंडित
हम लोगों को 5 किलोमीटर दूर से मिट्टी लानी पड़ रही है, जबकि पास में पहले मिट्टी आसानी से मिल जाती थी। लेकिन, अतिक्रमण के कारण अब लोग मिट्टी निकालने नहीं देते हैं।
-कुंती देवी
कुम्हारों को सरकारी जमीन से निःशुल्क मिट्टी खुदाई की अनुमति दी जाए तथा उद्यमी योजना के तहत दस लाख रुपये तक का ऋण दिया जाए।
-सुनीता देवी
मिट्टी कला आयोग का गठन किया जाए, जिससे कुम्हारों को अनुदान, ऋण और सरकारी योजनाओं का लाभ प्राप्त करने में सुविधा हो।
-ओम प्रकाश पंडित
बोले जिम्मेदार
कुम्हार जाति को मिट्टी निकालने से अगर कोई व्यक्ति मना करता है, तो वे लोग आकर शिकायत कर सकते हैं। कुम्हरगढ़िया पोखर अतिक्रमण को लेकर ग्रामीणों और हम लोगों ने मिलकर दो साल पूर्व आवेदन दिया था, लेकिन अंचलाधिकारी द्वारा अब तक अतिक्रमण को मुक्त नहीं करवाया गया है।
-सारिका सिंह, मुखिया
कुम्हारों के लिए कई सरकारी योजनाएं संचालित की जा रही है। वे विश्वकर्म योजना के तहत प्रशिक्षण और 100000 रुपए तक का ऋण प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए प्रशिक्षण के लिए फॉर्म भरते वक्त ही उन्हें ऋण का भी आवेदन देना होगा। इसके अलावे प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के तहत विवेक अनुदानित दर पर ऋण प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें आगे आना होगा और आवेदन करना होगा। जानकारी के लिए वह जिला उद्योग कार्यालय आकर संपर्क कर सकते हैं। यहां उन्हें ऋण के लिए सभी आवश्यक सहायता दी जाएगी।
-विंध्याचल कुमार, जिला उद्योग विस्तार पदाधिकारी, मुंगेर
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।