बोले जमुई : सखुआ पत्ते से बने प्लेट को मिले बढ़ावा, थर्मोकॉल पर लगे रोक
दोना पत्तल बनाने की कला अब एक उभरता व्यवसाय बन गई है, जहाँ स्थानीय लोग पर्यावरण के अनुकूल विकल्प के रूप में इसकी मांग पूरी कर रहे हैं। हालांकि, सरकारी सहायता की कमी और बैंक लोन ना मिलने के कारण...
दोना पत्तल बनाने की कला सदियों पुरानी है लेकिन अब यह आधुनिक तकनीक और बाजार की जरूरत के साथ तालमेल बिठा रही है। दोना पत्तल बनाने का काम जो कभी पारंपरिक था, अब एक उभरता हुआ व्यवसाय बन गया है। स्थानीय लोग पर्यावरण के अनुकूल होने के कारण प्लास्टिक के विकल्प के रूप में दोना पत्तल की मांग पूरी कर रहे हैं। इससे उनकी आजीविका को भी बढ़ावा मिल रहा है। दोना पत्तल बनाने का काम स्थानीय लोगों के लिए रोजगार का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है। इस काम से जुड़े हुए लोगों की भी अपनी समस्या है। उन्होंने बताया कि उन्हें बैंक से लोन नहीं मिलता है। ना ही सरकार द्वारा प्रशिक्षण की ही व्यवस्था कराई जाती है।
10 हजार से अधिक लोग लगे हैं इस व्यवसाय से
02 सौ से 300 रुपये तक प्रतिदिन होती है कमाई
05 से 08 घंटे तक करते हैं पत्तल बनाने का काम
जिले के पहाड़ी इलाके में बसे हुए लोग दोना पत्तल का निर्माण कर अपनी आजीविका चलाते हैं। इस व्यवसाय में काफी संख्या में लोग जुड़े हुए हैं। दोना पत्तल बनाने में स्थानीय रूप से उपलब्ध सखुआ के पत्तों का उपयोग किया जाता है जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी लाभ होता है। हालांकि पहाड़ी क्षेत्रों में बसे हुए लोगों को दोना पत्तल बनाने का काम रोजगार का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है। दोना पत्तल, प्लास्टिक और थर्माकोल के विकल्प के रूप में देखे जा रहे हैं।
थर्मोकॉल और प्लास्टिक के प्लेट ने कम की मांग :
लक्ष्मीपुर के सुदूर वनों में छोटे-बड़े दर्जन भर गांव हैं। यहां के गांव वालों की आय का मुख्य स्रोत सखुआ पत्ता का दोना पत्तल बनाकर बाजार में बेचना है। ये दोना और पत्तल बिहार की राजधानी पटना भेजते थे। इससे जुड़े महिला पुरुष स्वयं दोना पत्तल को ट्रेन से पटना ले जाते थे। परेशानी का सामना करना पड़ता था। साथ ही समय भी बर्बाद होता था। लेकिन उस हिसाब से उसे मेहताना नहीं मिल पाता था। इसके बाद स्थानीय व्यापारी गांव-गांव जाकर पत्ता खरीदने लगे। लेकिन आधुनिक परिवेश में इसका मांग बाजार में घटने लगी। इससे लोग इस कार्य से विमुख होने लगे। लेकिन पर्यावरण की सुरक्षा के दृष्टिकोण से दोना पत्तल श्रेष्ठ हैं। बाद में थर्मोकोल और अन्य कागज के प्लेट और कटोरी को मात देने के लिए दोना पत्तल के मांग में इजाफा हुआ। लोगों ने कहा अगर सरकार कार्य से जुड़े महिला-पुरुष को प्रशिक्षण देकर दोना पत्तल बनाने की मशीन उपलब्ध कराए तो इस व्यवसाय में एक बार क्रांति आएगी। स्थाई रोजगार के अभाव में वन क्षेत्र स्थित गांव के युवा अन्यत्र पलायन को विवश हैं। हालांकि आज भी ग्रामीण क्षेत्र के लोग शौक से सखुआ पत्ता का दोना और पत्तल अपने कार्यक्रम में उपयोग में लाते हैं। खाने वाले उसकी तारीफ भी करते हैं। सखुआ पत्ता के दोना और पत्तल में खाना स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक बताया जाता है। उन्होंने कहा कि सरकार थर्मोकोल और अन्य कागज से बनने वाले दोना, प्लेट पर शत प्रतिशत रोक लगाए। इससे वन क्षेत्र में बसने वाले ग्रामीणों के लिए एक नया सवेरा की परिकल्पना की जा सकती है।
सरकार ध्यान दे, तो चल पड़ेगा काम :
दोना पत्तल बनाने में सखुआ वृक्ष के पत्ते और बांस की महीन सींक का प्रयोग किया जाता है। यूं तो दोना पत्तल बनाने का काम साल भर चलता है लेकिन दशहरा त्योहार के आस-पास अक्टूबर, नवंबर माह में यह काम बहुत आता है। चांदनी देवी, कुंदन हेंब्रम, अनिता देवी, सुनीता, शुसला देवी, पप्पू कुमार मरांडी आदि ने बताया कि हम लोगों के सामने कई समस्याएं हैं लेकिन सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है। हम लोगों को अब पहले जैसा दोना पत्तल निर्माण में फायदा नहीं हो रहा है। ऑर्डर मिलने पर दोना पत्तल का निर्माण करते हैं जिससे अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं। सरकार हमें समय-समय पर प्रशिक्षण देकर अगर लोन मुहैया कराई तो दोना पत्तल निर्माण कर अपनी आर्थिक स्थिति हम लोग मजबूत कर सकते हैं।
बेरोजगार लोग कर रहे पलायन :
प्रकृति की गोद में बसे रहकर प्रकृति को बिना नुकसान पहुंचाए अपनी रोजी-रोटी चलने वाले हम दोना पतल कामगार अब दर दर की ठोकरे खाने को विवश हैं। कभी सखुआ के पेड़ के पत्ता से अपने घर की छतों को मजबूत करने वाले दोना पत्तल कामगार अब बेरोजगार होकर पलायन करने की ओर अग्रसर हैं। लक्ष्मीपुर प्रखंड का एक बड़ा जनसमूह पहाड़ों में बसता है। विकास की होड़ में यह दोना पत्तल कामगार अछूते रह गए। स्थिति यह हो गई की पत्तल की जगह आधुनिक प्लाटों ने ले लिया है। तब इन कामगारों के समक्ष अब करने को कुछ काम नहीं बचा। गरीबी रेखा से नीचे वाले लोग बीते कई वर्षों से इस कारोबार में लगे हैं। उन्होंने कहा कि एक समय जब थर्माकोल के प्लेट का प्रचलन नहीं था तो काफी संख्या में पतल और दोना के लिए आर्डर मिलते थे। उस समय बच्चे, बूढ़े और जवान तक को पत्तल बनाने से फुर्सत नहीं मिलती थी। कौन परिवार ज्यादा पत्तल बनाकर अधिक लाभ अर्जित करता है, इसकी होड़ लगी रहती थी। यहां के बने पत्तल जिले के अन्य जगहों पर भेजे जाते थे। इसके लिए दुकानदार पहले से ही अग्रिम पैसा दे देते थे और अपना ऑर्डर बुक करवा लेते थे। लोग शादी की तारीख पक्की होते ही पत्तल का आर्डर उनका पहला काम होता था लेकिन समय के साथ सब कुछ बदल गया।
पत्तल निर्माण के लिए अनुदानित दर पर मशीन उपलब्ध कराएं
इन क्षेत्र की महिलाएं पत्तल तैयार करने के लिए सखुआ के पत्ते जंगल से तोड़कर लाती हैं। फिर दूसरे दिन सीक के सहारे पत्तल बनाकर सुखाती हैं। सूखे हुए पत्तल को बंडल बनाकर बाजार में बेचने जाती हैं। इन लोगों ने बताया कि इस काम को पूरा करने में चार दिन का समय लगता है। पुरुष लोग सिक बनाने का काम करते हैं। बाजार में प्रति बंडल आम दिनों से 10 से 15 रुपए में और शादी के समय 20 से 25 रुपया प्रति बंडल दुकानदार खरीदते हैं। यदि एक परिवार के पांच सदस्यों द्वारा चार दिनों में 30 बंडल पत्तल तैयार किया जाता है तो तीन सौ रुपए या महीने में दो हजार से 25 सौ रुपए तक की आमदनी हो जाती है। पत्तल कारोबार से जुड़े कामगारों के हाथों से बनाए गए पत्तल की मांग न सिर्फ जिले में बल्कि आस-पास के जिले झारखंड सहित कई अन्य शहरों में थी। इसका कारण यह था कि काफी सस्ती दरों पर उच्च क्वालिटी का पत्तल यहां से निर्मित किया जाता था। इसके बाद धीरे-धीरे इन पत्तल कामगारों की स्थिति गिरती चली गई और अब यह व्यवसाय हाथी की दांत की तरह होता चला जा रहा है। इन लोगों को कहना है कि सरकार हमें प्रशिक्षण दे और पत्तल निर्माण के लिए अनुदानित दर पर मशीन उपलब्ध कराए तो यह रोजगार फिर से चल पड़ेगा और हम लोग की आर्थिक स्थिति भी सुधरेगी।
थर्मोकॉल और प्लास्टिक के प्लेट पर लगे रोक :
आधुनिकता की आंधी में पतल बनाने की कला भी विलुप्त होती जा रही है। लोगों ने बताया कि गांव का भी शहरीकरण हो गया है। लोग शादी के मौके पर प्लास्टिक व थर्मोकोल से बनी थाली और कटोरी का प्रयोग कर रहे हैं। इससे रोजगार पर ग्रहण लग गया है। अब पूरी बस्ती में महज 2 से 3 दर्जन ही परिवार नाम मात्र का पतल बनाते हैं। कहा कि प्लास्टिक और थर्माकोल के पत्तल बनना बंद हो जाता तो दोना पत्तल का दौर फिर से लौट आएगा।
शिकायत
1. पूंजी के अभाव में बढ़ नहीं रहा व्यवसाय।
2. अब लोग थर्मोकॉल का पत्तल ज्यादा खरीद रहे हैं जिससे परेशानी हो रही है।
3. कई पीढ़ियों से यह पुश्तैनी व्यवसाय हो रहा है, अब लागत मूल्य भी नहीं निकल रहा है।
4. अब दुकानदार दूसरी जगह से बने पत्तल मंगा रहे हैं।
5. रोजगार को बढ़ावा देने के लिए बैंक से सरलता से नहीं मिलता लोन।
सुझाव
1. रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए कौशल विकास योजनाओं का लाभ मिले।
2. पत्तल कामगारों को मार्केटिंग करने के लिए सरकार के स्तर से बाजार का प्रबंध हो।
3. किसान क्रेडिट कार्ड की तरह पत्तल कामगारों के लिए क्रेडिट कार्ड जारी किया जाना चाहिए।
4. पत्तल कामगारों को बैंक से ऋण दिलाने के लिए शिविर लगाया जाना चाहिए।
5. सामान पर लागत और मेहनत के अनुसार इसकी कीमत मिले।
सुनें हमारी बात
हम लोगों द्वारा निर्मित दोना पत्तल की बिक्री के लिए सरकार के स्तर पर बाजार उपलब्ध कराया जाना चाहिए। उसे भी दूसरे राज्यों में भेजने की व्यवस्था की जानी चाहिए, हम तभी आगे बढ़ेंगे। थर्माकोल के पत्तल बनना बंद हो जाता तो आमदनी बढ़ जाती।
- चांदनी देवी
दोना पत्तल निर्माण करना काफी मेहनत का काम है। जंगल में सखुआ के पत्तल लाने के लिए 10 से 15 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है फिर भी हम लोग के हुनर की कद्र नहीं है। थर्माकोल के पत्तल बनना बंद हो जाता तो आमदनी बढ़ जाती।
- कुंदन हेंब्रम
बरसों से इसी हुनर पर निर्भर रहे हैं लेकिन अब लग रहा है इसे छोड़ना पड़ेगा। इसका कारण यह है कि पहले की तरह कमाई रही और ना सामान की मांग है। थर्माकोल के पत्तल बनना बंद हो जाता तो आमदनी बढ़ जाता है।
- एतवारी मरांडी
पहले रोजगार बेहतर होने से काम करने में आनंद आता था। अब आर्थिक संकट है। आज नौबत यहां तक आ गई है कि उधार लेकर काम चलाना पड़ता है। थर्माकोल के पत्तल बनना बंद हो जाता तो आमदनी बढ़ जाती।
- सोनिया देवी
यह हम लोगों का पुश्तैनी कार्य है। इस व्यवसाय को आगे बढ़ना चाह रहे हैं लेकिन इसके लिए पूंजी का अभाव है। पूंजी की व्यवस्था होनी चाहिए।
-अनिता देवी
थर्माकोल का पत्तल बनना बंद हो जाता तो आमदनी बढ़ जाती। दोना पत्तल निर्माण में लगे लोग सरकारी योजनाओं से वंचित है। राशन कार्ड के अलावा कोई लाभ नहीं मिल रहा है।
- सुनीता देवी
विभाग या प्रशासन को नि:शुल्क स्वास्थ्य जांच शिविर का आयोजन समय-समय पर करना चाहिए। हम लोगों की स्वास्थ्य जांच होनी चाहिए।
- सुशमा टूडू
पहले की तरह अब ऑर्डर नहीं मिलता है। थर्मोकोल का पत्तल बनना बंद हो जाता तो आमदनी बढ़ जाता । बच्चों की शिक्षा के लिए आर्थिक मदद, बेटी की शादी में सहायता राशि मिलती तो परिवार को लाभ पहुंचता।
- साजो देवी
हम लोगों के रोजगार को बढ़ाने के लिए बैंक से लोन की व्यवस्था सस्ते दर पर की जानी चाहिए। ताकि फिर से दोना पत्तल के रोजगार को जीवित किया जा सके।
-बबीता देवी
हम लोगों के दोना पत्तल के पुश्तैनी रोजगार को आगे बढ़ाने के लिए बैंकों से सरल प्रक्रिया के तहत लोन भी नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में विशेष योजना लाकर लोन दिलाने और उसमें अनुदान की व्यवस्था की जानी चाहिए।
- पप्पू कुमार हेंब्रम
कठिन परिश्रम के बावजूद अपेक्षित मजदूरी नहीं निकल पाती है जिससे परिवार चलाने में बहुत परेशानी होती है। मूल्य का निर्धारण किया जाना चाहिए।
- फूल देवी
अब थर्मोकोल का पत्तल बाजार में आ जाने के कारण लोग सखुआ के पत्ते से बने पत्तल नहीं खरीद पा रहे हैं। इसके कारण बाजार में मांग भी घटी है। प्लास्टिक पत्तल बंद हो।
- सुनीता देवी वन
परिवार के सभी सदस्य इस काम में लगे रहते हैं लेकिन अब इस पेशे से घर चलना मुश्किल हो गया है। दोना पत्तल खरीदने वाले भी कम हो गए हैं।
- सुरेंद्र मरांडी
इससे न्यूनतम मजदूरी भी नहीं निकल पाती है जिससे जीवन यापन कठिन हो गया है। सरकार को लोन देकर हमारा कारोबार बढ़ाना चाहिए।
-यासमीन सोरेन
दोना पत्तल रोजगार को बढ़ावा देने के लिए बैंक से सरल प्रक्रिया में लोन देने की व्यवस्था की जानी चाहिए। समय-समय पर प्रशिक्षण भी मिलना चाहिए।
- फूलवा देवी
सरकार द्वारा हम लोगों को पत्तल निर्माण के लिए मशीन उपलब्ध नहीं कराई गई है। खुद हाथ से ही पत्तल तैयार कर बाजार में बेजते हैं।
-परमेश्वर कुमार
बोले जिम्मेदार
सरकार की कई योजना है। मुद्रा योजना के तहत भी छोटे-छोटे कारोबार करने वालों को लोन मिल रहा है। इसके अलावा अन्य कई प्रकार की योजनाएं है जिसमें सरकार से अनुदान भी प्राप्त होता है। ग्रामीण क्षेत्रों के अनुदान भी ज्यादा है। ऑनलाइन भी अवेदन कर योजना का लाभ ले सकते हैं। मुख्यमंत्री उद्यमी योजना के तहत सरकार सहायता दे रही है। इसके अलावा पीएमईजीपी योजना के तहत भी लाभ ले सकते हैं। पोर्टल पर आवेदन कभी भी कर सकते हैं। इसमें अनुदान भी देने का प्रावधान है।
-मितेश कुमार शाण्डिल्य, महाप्रबंधक, जमुई जिला उद्योग केंद्र
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