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बोले मुंगेर: आम की पैकेजिंग और प्रसंस्करण की हो सुविधा

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Newswrap हिन्दुस्तान, भागलपुरSun, 16 Feb 2025 10:20 PM
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बोले मुंगेर: आम की पैकेजिंग और प्रसंस्करण की हो सुविधा

प्रस्तुति: रणजीत कुमार ठाकुर

1. जिले में लगभग 5000 एकड़ में आम की खेती होती है।

2. जिले में आम के पेड़ों की संख्या लगभग 5 लाख है।

3. जिले में लगभग 15 लाख क्विंटल आम का उत्पादन होता है।

मुंगेर जिला अपने आम उत्पादन के लिए राज्य में एक प्रमुख स्थान रखता है। जिले में लगभग 5000 एकड़ से अधिक क्षेत्रफल में आम की खेती होती है और लगभग पांच लाख आम के पेड़ हैं। वहीं, उत्पादन की बात करें तो यहां विभिन्न आमों का औसत रूप से कुल उत्पादन लगभग 15 लाख क्विंटल होता है। मुंगेर के चुरंबा का दूधिया मालदह आम देश ही नहीं विदेश में भी प्रसिद्ध है। इसके अलावा जर्दालू, बंबईया, फजली, आम्रपाली एवं आम के अन्य कई किस्मों का भी भरपूर उत्पादन होता है। यहां के उत्पादित आम की खपत ना केवल स्थानीय तौर पर भरपूर होता है और घरेलू उपभोग के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यहां का आम दूसरे जिलों एवं राज्यों के साथ-साथ विदेशों तक पहुंचता है। निर्यात बाजार में भी मुंगेर के आम की बड़ी मांग है। लेकिन, इसके उत्पादन में आज कई समस्याएं हैं और इससे अपेक्षित लाभ किसानों को नहीं मिल पाता है। किसानों द्वारा उत्पादित आम का लाभ व्यापारी उठाते हैं। ऐसे में जरूरत है कि, उद्यान विभाग एवं सरकार के द्वारा आम उत्पादक किसानों को आवश्यक सुविधाएं एवं सहायता उपलब्ध कराई जाए, ताकि वे आर्थिक रूप से समृद्ध हों और मुंगेर के अन्य लोगों को भी इसके माध्यम से रोजगार मिले।

आम के उत्पादन से लेकर विपणन तक आम किसानों के समक्ष कई चुनौतियां आती हैं। इन चुनौतियों से पार पाते- पाते इन किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो ना हो, लेकिन व्यापारी जरूर मालामाल हो जाते हैं। ऐसे में आम उत्पादक किसानों के समक्ष आने वाली कठिनाइयों को जानने के लिए हिंदुस्तान द्वारा चुरंबा में आम उत्पादक किसानों के साथ संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें किसानों ने अपनी समस्याओं एवं अपने दर्द को हमारे समक्ष रखा। संवाद में उन्होंने बताया कि, हमारे समक्ष कई चुनौतियां आती हैं, जो हम किसानों के साथ-साथ, व्यापारियों और उपभोक्ताओं के लिए भी समस्याएं पैदा करती हैं। जलवायु परिवर्तन, कीट और रोगों का प्रकोप, भंडारण एवं परिवहन की समस्याएं, बाजार में बिचौलियों की भूमिका और अंतर्राष्ट्रीय निर्यात मानकों को पूरा करने में कठिनाई जैसी समस्याएं मुंगेर में आम उत्पादन और विपणन को प्रभावित करती हैं। इन चुनौतियों को दूर किए बिना मुंगेर के किसान अपने आम उत्पादन की पूरी क्षमता का उपयोग नहीं कर सकता।

किसानों ने बताया कि, आम की खेती के प्रत्येक स्तर पर चुनौतियां हैं। आम के पौधे लगाने से लेकर आम की बिक्री तक हमें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पौधे लगाने के बाद इसके बड़े होने तक कई पौधे विभिन्न बीमारियों एवं कीटों के कारण सूख जाते हैं। जब आम के पेड़ से आम का उत्पादन होने लगता है तो इसका उत्पादन मौसम पर बहुत हद तक निर्भर करता है। अनियमित वर्षा, आंधी एवं तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाएं फसल को नुकसान पहुंचाती हैं। हाल के वर्षों में मुंगेर के मौसम में हो रहे परिवर्तन के कारण आम के उत्पादन में गिरावट देखी गई है। आम के उत्पादन को इसमें लगने वाले कीट एवं रोगों का प्रकोप भी बुरी तरह से प्रभावित करता है। मंजर आने से लेकर फलों के पकने की अवस्था तक कई प्रकार के कीट एवं रोग लगते हैं। मधुआ, फल मक्खी, मिली बग, थ्रिप्स आदि जैसे कीट तथा पाउडरी मिल्ड्यू, एंथ्रेक्नोज आदि जैसी बीमारियां फल की गुणवत्ता और उपज को प्रभावित करती हैं। वहीं, इन्हें नियंत्रित करने के लिए हम दवाओं का छिड़काव करते हैं, वह भी काफी महंगा हो गया है। दवाओं पर प्रति पेड़ लगभग 1000 रुपए खर्च आता है। वहीं, बाजार में नकली दवाएं भी बिकती हैं, जिसके छिड़काव से कभी-कभी पूरी फसल बर्बाद हो जाती है। फिर इसे समय-समय पर सिंचाई की भी आवश्यकता होती है। लेकिन, जल स्तर के नीचे चले जाने से इसका खर्च भी बढ़ गया है। आम की खेती में मजदूरों की भी आवश्यकता होती है। मजदूरी का दर भी काफी बढ़ गया है। दवा छिड़काव में मजदूर एवं मशीन पर प्रतिदिन लगभग 1300 रुपये खर्च आता है। साल भर बगीचे का रख-रखाव के लिए मजदूरों की आवश्यकता होती है। इसके बाद विभिन्न कीटों एवं रोगों से बचाव के लिए 2 से 3 बार दवाओं का भी छिड़काव करना पड़ता है। इसमें भी मजदूरों की आवश्यकता होती है। अंत में फल तोड़ने में मजदूर लगाना पड़ता है। इसकी तुड़ाई में भी प्रति बड़ा पेड़ 2 मजदूर की आवश्यकता होती है। यानी, एक पेड़ से आम की तुड़ाई में 1600 रुपए मजदूरी में खर्च करना पड़ता है। अंततः उत्पादित आम को बाजार पहुंचाने के लिए मजदूरों एवं परिवहन संबंधी खर्च करने पड़ते हैं। लेकिन,बढ़ती मजदूरी दर से उत्पादन लागत बढ़ रही है, जिससे हमें आम उत्पादन से अपेक्षित लाभ नहीं हो पाता है। मजदूरों की मजदूरी में ही अच्छा- खासा खर्च हो जाता है। आम के उत्पादन के बाद हमारे समक्ष इसके भंडारण, प्रसंस्करण एवं विपणन की समस्याएं आती हैं। उन्होंने कहा कि, आम जल्दी खराब होने वाला फल है। पकने के बाद आम 3- 4 दिन से ज्यादा नहीं रह पाता है। इसके बाद यह सड़ने लगता है। मुंगेर में आधुनिक भंडारण एवं प्रसंस्करण की सुविधा नहीं है। इसके कारण बड़ी मात्रा में आम खराब हो जाता है। हमारी पहुंच दूसरे जिलों एवं राज्यों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार तक नहीं है। सरकारी स्तर पर ना तो सीधे उपभोक्ताओं तक हम किसानों के पहुंचने की कोई व्यवस्था है और ना ही मुंगेर से आम का निर्यात बढ़ाने के लिए कोई नीति ही है। यदि पहुंच होती और निर्यात के लिए मुंगेर में सभी आवश्यक सुविधाएं होतीं तो हमें अपने आम का वाजिब कीमत मिलता। लेकिन, आम उत्पादन में आने वाले खर्च, आम की खेती में आने वाली विभिन्न तरह की समस्याएं एवं इसके विपणन की समुचित व्यवस्था नहीं होने से हम अपनी उपज का समुचित लाभ नहीं ले पाते हैं।

किसानों ने कहा कि, मुंगेर में आम उत्पादन और विपणन के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं, लेकिन कई समस्याएं इसकी पूरी क्षमता को बाधित कर रही हैं। यदि इन चुनौतियों का समाधान किया जाए, तो न केवल किसानों की आय में वृद्धि होगी, बल्कि मुंगेर के किसान आम निर्यात में भी नए कीर्तिमान स्थापित कर सकते हैं। सरकार, वैज्ञानिकों और किसानों को मिलकर इन समस्याओं के स्थायी समाधान निकालने होंगे, ताकि मुंगेर का आम उद्योग विश्वस्तरीय बन सके।

उन्होंने कहा कि, सरकारी स्तर पर हमारे लिए सब्सिडी पर अच्छी दवाइयों की व्यवस्था हो, मुंगेर में आम के पैकेजिंग एवं गुणवत्ता जांच व्यवस्था हो, प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना हो, उत्पादित आम के विपणन के लिए सरकारी स्तर पर विभिन्न बाजारों में हम किसानों की पहुंच की व्यवस्था हो, मुंगेर से आम के निर्यात की व्यवस्था हो, भंडारण की समुचित व्यवस्था हो तथा अन्य आवश्यक सरकारी सहायता मिले तो मुंगेर आम उत्पादन एवं इससे संबंधित विभिन्न तरह के व्यवसाय का हब बन सकता है। इससे मुंगेर में रोजगार के नए अवसर बन सकते हैं और हम आम किसानों के साथ-साथ आम लोग भी समृद्ध हो सकते हैं।

समस्याएं:

1. अनियमित वर्षा, आंधी और तूफान जैसी आपदाओं से आम की फसल को भारी नुकसान होता है।

2. मधुआ, फल मक्खी, मिली बग, थ्रिप्स जैसी कीटों और पाउडरी मिल्ड्यू, एंथ्रेक्नोज जैसी बीमारियों से फसल प्रभावित होती है।

3. दवाइयों, मजदूरी, मशीनरी एवं परिवहन पर होने वाला खर्च लगातार बढ़ रहा है, जिससे किसानों को उचित लाभ नहीं मिल पाता।

4. आम जल्दी खराब होने वाला फल है, लेकिन मुंगेर में आधुनिक भंडारण और प्रसंस्करण सुविधाएं नहीं हैं।

5. किसानों को अपनी उपज का सही दाम नहीं मिल पाता, क्योंकि मुंगेर को छोड़कर अन्य बाजारों तक उनकी सीधी पहुंच नहीं है और यहां से निर्यात की भी उचित व्यवस्था नहीं है। मजबूरन उन्हें स्थानीय व्यापारों के हाथों अपने आम को बेचना पड़ता है।

सुझाव:

1. किसानों को सब्सिडी पर अच्छी गुणवत्ता वाली दवाएं और अन्य संसाधन उपलब्ध कराए जाएं।

2. मौसम में हो रहे परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए किसानों को उचित वैज्ञानिक तकनीक अपनाने के लिए प्रशिक्षित किया जाए।

3. मुंगेर में आधुनिक भंडारण और प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना की जाए।

4. सरकार किसानों को सीधा बाजार से जोड़ने और अंतरराष्ट्रीय निर्यात बढ़ाने की नीति बनाए।

5. किसानों को नई कृषि तकनीकों, कीट नियंत्रण उपायों और बाजार से जुड़ने की ट्रेनिंग दी जाए।

हमें आम की पैदावार के दौरान कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इनमें रोग और ऊपर से मौसम की मार झेलनी पड़ती है। हमें सरकारी सहायता की दरकार है।

मुर्शीद आलम, किसान

बहुत अधिक ठंड या गर्मी से आम की पैदावार प्रभावित होती है। पानी की बहुत बड़ी समस्या है। ये सुलभ हो सके तो हम खुशहाल होंगे।

- मोहम्मद तसलीम

आम का सही दाम नहीं मिल पाता है। महंगे दरों पर कीटनाशक दवा खरीदनी पड़ती है। इससे कई बार हमे नुकसान उठाना पड़ता है।

- मोहम्मद कलीम

आम के लिए स्थानीय स्तर पर मंडी की व्यवस्था होनी चाहिए। इससे यहां के आम की फसल पैदा करने वालों को सही दाम मिल सकेगा।

- मोहम्मद जाकिर

जल स्तर नीचे चले जाने से पानी आम के बगीचे की सिंचाई ठीक से नहीं हो पाती। कीटनाशक दवा भी महंगी मिलती है। कीमत सही नहीं मिलने से नुकसान की आशंका बन जाती है।

- अब्दुल जब्बाज

पहले हम लोग आम बेचकर एक बेटी की शादी अच्छे से कर लेते थे। लेकिन अब पैदावार में कमी आने से बड़े आयोजन नहीं हो पाता है।

- तारक

व्यापारी हम लोगों से आम सस्ते दामों पर खरीदते हैं और दूसरे राज्यों में जाकर महंगे दामों पर बेच देते हैं। ऐसे में सही दाम हम लोगों को नहीं मिल पाता है।

- मोहम्मद समीर

पिछले वर्ष आम में कीड़े लग गए थे, जिस कारण नुकसान झेलना पड़ा थी। आम के टिकाले झड़ने से काफी नुकसान देखने को मिला था।

- अशफाक, किसान

: लाल मिट्टी होने की वजह से चुरंबा का मालदा आम काफी मशहूर होता है। यहां से देश-विदेश आम जाते हैं लेकिन तेज हवा के कारण फसल बर्बाद हो जाती है।

- मोहम्मद शमशाद

आम में कीट लगने से मंजर झड़ जाते हैं, सरकार को अच्छे क्वालिटी के कीटनाशक दवा उपलब्ध करनी चाहिए। इसपर हमें सब्सिडी मिलनी चाहिये।

- सोहिनू शेख, किसान

आम में फल झड़ने की समस्या गंभीर है इसके रोकथाम के लिए कृषि विभाग द्वारा हमलोगों को जानकारी देनी चाहिए। सही ट्रेनिंग देने पर हमें फायदा मिलेगा।

--मोहम्मद साहब, किसान

उद्यान विभाग को चुरंबा के आम उत्पादकों को बेहतर आम की पैदावार की ट्रेनिंग देनी चाहिये। ताकि हम वैज्ञानिक तरीके से आम का बेहतर और ज्यादा उत्पादन कर सकें।

मोहम्मद सिकंदर रजा, किसान

आम के फलों का झड़ना एक आप समस्या है। कृषि वैज्ञानिकों को इस ओर और विकास करना चाहिये ताकि कम से कम नुकसान हो।

- महरुन्निशा, किसान

पानी की बहुत बड़ी समस्या है जल स्तर भी नीचे चला गया है आम के पेड़ों में पानी नहीं दे पाती हूं। इसके लिये सरकारी मदद मिलनी चाहिये।

- मोहम्मद साजिद, किसान

उत्तम किस्म के कीटनाशक दवा की व्यवस्था होनी चाहिए। अभी हमलोग महंगे दामों पर कीटनाशक खरीदते हैं।

- काजी वकास, किसान

दूसरे जिले या राज्यों का मंडी के बारे में हम लोगों को जानकारी मिलनी चाहिए ताकि हम लोग अच्छे दामों में आम का व्यापार कर सके। हमें इसकी सुविधा मिलनी चाहिये।

-- शहाबुद्दीन, किसान

बोले जिम्मेदार

जिले में आम की खेती के लिए कई योजनाएं संचालित हैं। किसान आम की फसल लगाकर इसका लाभ ले सकते हैं। विभाग की ओर से यदि योजनाएं चलाई जाएंगी तो उन्हें निश्चित रूप से इसका लाभ यहां के आम उत्पादक किसानों को दिया जाएगा। इस फसल के लिए कोल्ड स्टोरेज की आवश्यकता नहीं होती है। कोल्ड स्टोरेज में रखने पर आम खराब हो जाते हैं और स्वाद भी बिगड़ जाता है। रही बात विपणन की सरकारी व्यवस्था की तो यह एक नीतिगत मामला है। इस संबंध में सरकार ही कुछ कर सकती है। हालांकि, विभिन्न मंडियों को जोड़ने की योजना सरकार के पास है। आशा है कि, शीघ्र ही यह मुंगेर में शुरू होगा। प्रसंस्करण इकाई स्थापना के लिए यहां के लोगों को आगे आना होगा। इसके लिए इच्छुक व्यक्ति को सब्सिडी पर लोन भी दिया जा रहा है। जहां तक गुणवत्ता जांच एवं निर्यात इकाई जिले में स्थापित करने की बात है तो इसका निर्णय भी सरकार ही लेगी।

-- डॉ सुपर्णा सिन्हा, सहायक निदेशक,

उद्यान, मुंगेर

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