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बोले जमुई : बाजार में ट्रैफिक जाम से मिले निजात, पार्किंग की दें सुविधा

झाझा के कपड़ा दुकानदार आर्थिक अस्थिरता, तकनीकी बदलाव और ट्रैफिक जाम से परेशान हैं। ग्राहक अब ऑनलाइन खरीदारी को प्राथमिकता देने लगे हैं, जिससे बिक्री में गिरावट आई है। प्रशासनिक सहयोग की कमी और बैंक से...

Newswrap हिन्दुस्तान, भागलपुरSat, 26 April 2025 11:25 PM
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बोले जमुई : बाजार में ट्रैफिक जाम से मिले निजात, पार्किंग की दें सुविधा

झाझा के छोटे एवं मध्यम स्तर के कपड़ा दुकानदार परेशान हैं। आर्थिक अस्थिरता, प्रशासनिक उदासीनता और तकनीकी बदलावों की मार झेल रहे हैं। बाजार में रोज लगने वाले ट्रैफिक जाम, ऑनलाइन मार्केटिंग के बढ़ते चलन तथा जीएसटी की वर्तमान दर उनकी परेशानी बढ़ा रही है। ग्राहक अब बाजार आना टालते हैं जिससे व्यवसाय घटा है और मुनाफा भी कम हुआ है। वहीं प्रशासनिक सहयोग की कमी और सुलभ ऋण व्यवस्था का नहीं होना उनके व्यवसाय को और मुश्किल बना देता है। सरकार की कौशल विकास योजनाएं भी उन तक नहीं पहुंच पा रही हैं। संवाद के दौरान झाझा बाजार के व्यवसायियों ने अपनी परेशानी बताई।

50 से अधिक कपड़ा व्यवसायी हैं झाझा बाजार में

01 किलोमीटर तक फैला है झाझा बाजार, हैं सैकड़ों दुकानें

50 गांवों के ग्रामीण पहुंचते हैं खरीदारी के लिए बाजार

जिले के झाझा बाजार में अनवरत लगने वाले ट्रैफिक जाम कपड़ा और अन्य सामान के दुकानदारों के व्यापार को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। सड़क किनारे दुकानों के सामने गाड़ियों की लंबी कतार लग जाती है जिससे ग्राहकों को पैदल चलने की भी जगह नहीं मिलती। ग्राहक असुविधा के डर से बाजार आने से बचते हैं। ऑनलाइन शॉपिंग को तरजीह देने लगे हैं। कई बार दुकानदार खुद पुलिस से जाम खुलवाने की गुहार लगाते हैं परंतु कोई स्थाई समाधान नहीं निकलता। स्थानीय प्रशासन ने अब तक कोई वैकल्पिक पार्किंग या सख्त यातायात योजना नहीं बनाई है। यह न केवल व्यापार में गिरावट ला रहा है अपितु दुकानदारों की मानसिक स्थिति को भी प्रभावित कर रहा है। यदि ट्रैफिक नियंत्रण और पार्किंग व्यवस्था को लेकर ठोस पहल नहीं की गई तो छोटे व्यापारी धीरे-धीरे बाजार से गायब हो जाएंगे।

समस्या सुनने वाला कोई नहीं :

कपड़ा दुकानदारों का आरोप है कि उन्हें प्रशासन से कोई सहयोग नहीं मिलता है। ना तो उनकी समस्याएं सुनी जाती हैं और ना ही बाजार के बुनियादी ढांचे को सुधारने की दिशा में कोई कार्रवाई होती है। कई बार दुकानदारों ने ट्रैफिक एवं अतिक्रमण की शिकायत की लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। नगर परिषद एवं प्रशासन के अधिकारी कभी बाजार में दौरा नहीं करते जिससे उन्हें जमीनी सच्चाई का अंदाजा नहीं हो पाता। त्योहारी सीजन में व्यापार बढ़ता है लेकिन तब भी कोई व्यवस्था नहीं होती जिससे दुकानदारों को राहत मिले। फुटपाथ पर अवैध रूप से लगे ठेले भी दुकानों के सामने बाधा बनते हैं, लेकिन प्रशासन की कोई कार्रवाई नहीं होती। दुकानदारों को लगता है कि उनकी समस्याओं को जान-बूझकर अनदेखा किया जा रहा है।

बैंक लोन देने में करते हैं आनाकानी :

बैंक लोन देने में आनाकानी करते हैं। सरकार छोटे व्यापारियों को एमएसएमई योजना मुद्रा योजना और स्टार्टअप इंडिया के तहत सस्ते और बिना गारंटी ऋण देने का दावा करती है, लेकिन जमीनी सच्चाई इससे अलग है। कपड़ा दुकानदारों का कहना है कि बैंक ऋण देने से कतराते हैं या फिर इतने कागजात मांगते हैं कि एक सामान्य दुकानदार के लिए उसे पूरा करना मुश्किल होता है। जिनके पास पक्की दुकान नहीं है उन्हें कोई भी ऋण नहीं देता। कई दुकानदारों को मजबूरी में महाजनों से ब्याज पर कर्ज लेना पड़ता है जो उन्हें आर्थिक रूप से और कमजोर कर देता है। यदि उन्हें समय पर आसान शर्तों पर ऋण मिल जाए तो वे अपने काम का विस्तार कर सकते हैं, आधुनिक डिजाइन ग्राहकों के लिए पेश कर सकते हैं। सरकार की योजनाओं का लाभ जमीन पर कैसे पहुंचे इसके लिए निगरानी और मार्गदर्शन की व्यवस्था जरूरी है।

ई-कॉमर्स कंपनी का बढ़ता वर्चस्व :

ई-कॉमर्स कंपनी के बढ़ते वर्चस्व ने स्थानीय कपड़ा दुकानदारों की कमर तोड़ दी है। ग्राहक अब एक क्लिक में दर्जनों प्रकार एवं ब्रांड के कपड़े देख सकते हैं, छूट एवं कैशबैक पा सकते हैं जबकि स्थानीय दुकानदार ऐसी प्रतिस्पर्धा में खुद को असहाय पाते हैं। ग्राहक दुकान पर जाकर कीमत पूछते हैं और फिर ऑनलाइन खरीद लेते हैं। ऐसी स्थिति से कपड़ा दुकानदार परेशान हैं।

पारंपरिक दुकानों की बिक्री हो रही है प्रभावित :

कपड़ा व्यवसाय से जुड़े छोटे दुकानदार आज बाजार की तेज प्रतिस्पर्धा में धीरे-धीरे पिछड़ते जा रहे हैं। ये व्यापारी केवल कपड़े बेचते हैं लेकिन उनके पास डिस्प्ले, ग्राहक सेवा और डिजिटल बिक्री जैसी आधुनिक व्यापारिक कौशल की भारी कमी है। बड़े मॉल, ब्रांडेड शोरूम और ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफार्म से मिल रही चुनौतियों ने इन पारंपरिक दुकानों की बिक्री को बुरी तरह प्रभावित किया है। सरकार द्वारा चलाए जा रहे कौशल विकास कार्यक्रमों में कपड़ा दुकानदारों के लिए विशेष प्रशिक्षण का अभाव है। इन दुकानदारों को ऑनलाइन डिजिटल मार्केटिंग, ग्राहक प्रबंधन, स्टॉक हैंडलिंग, ई-कॉमर्स, सोशल मीडिया प्रमोशन और व्यापार में टेक्नोलॉजी के उपयोग जैसे विषयों में प्रशिक्षण की जरूरत है। यदि उनके बच्चों को ऐसे कोर्स उपलब्ध कराई जाए तो यह पारंपरिक फुटपाथी और छोटी दुकानों को नए दौर के अनुरूप ढाल सकते हैं। स्थानीय स्तर पर व्यावसायिक प्रशिक्षण शिविर, मार्केटिंग सहायता और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर व्यापार को लेकर सरकार को सक्रियता दिखानी होगी।

नगर परिषद करे स्थायी दुकानों की व्यवस्था :

नगर परिषद को इन दुकानदारों के लिए बाजार क्षेत्र में व्यवस्थित और स्थाई दुकानों की व्यवस्था करनी चाहिए। आज कई दुकानदार संकरी गलियों में दुकान चलाते हैं जिससे न सिर्फ बिक्री प्रभावित होती है अपितु ग्राहकों को भी असुविधा होती है। कपड़ा व्यापारियों का कहना है कि 5 प्रतिशत जीएसटी दर से उनका व्यापार प्रभावित है। खासकर छोटे दुकानदार जो थोक में कपड़े खरीद कर खुदरा में बेचते हैं उन्हें टैक्स भरने के बाद इतना मुनाफा नहीं होता कि घर का खर्च ठीक से चल सके। उपभोक्ता जब ऑनलाइन से बिना जीएसटी के बिल पर कपड़े खरीदते हैं तो छोटे दुकानदारों को नुकसान उठाना पड़ता है। वे या तो बिना बिल के सामान बेचने को मजबूर होते हैं या फिर ग्राहक को छूट देकर मुनाफा घटा लेते हैं। इस टैक्स दर को लेकर कई बार व्यापार मंडलों में सरकार से मांग की है कि कपड़े पर जीएसटी की दर को 5 प्रतिशत से घटा कर 2 प्रतिशत किया जाए लेकिन अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई। अगर कर दर तर्क संगत नहीं बनाई गई तो यह क्षेत्र और भी तेजी से सिकुड़ता जाएगा।

शिकायत

1. बाजार में ट्रैफिक जाम लगने से ग्राहक दुकान तक नहीं पहुंचते।

2. प्रशासनिक अधिकारी दुकानदारों की समस्याएं सुनने को तैयार नहीं होते।

3. बैंक बिना गारंटी के लोन नहीं देते जिससे व्यवसाय आगे नहीं बढ़ता।

4. ऑनलाइन कंपनियां भारी छूट देकर ग्राहक खींच लेती हैं और हमारा सामान नहीं बिकता।

5. पांच प्रतिशत जीएसटी बहुत है। इससे मुनाफा नाम मात्र का रह जाता है।

6. मुद्रा योजना या एमएसएमई लोन का खूब प्रचार-प्रसार किया जाता है लेकिन आसानी से लोन नहीं मिल पाता है। इससे व्यवसाईयों को अपने व्यापार को बढ़ाने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

सुझाव

1. बाजार में ट्रैफिक नियंत्रण और पार्किंग की व्यवस्था को दुरुस्त की जाए।

2. दुकानदारों के लिए आसान शर्तों पर लोन देने के लिए अलग से नीति बनाई जाए।

3. ऑनलाइन कंपनियों के मुकाबले में स्थानीय दुकानों को डिजिटल प्लेटफॉर्म और प्रशिक्षण दिया जाए।

4. कपड़े पर वर्तमान जीएसटी दर 5 प्रतिशत को घटाकर दो प्रतिशत किया जाए।

5. दुकानों के सामने अवैध ठेले लगाने वाले लोगों पर प्रशासन सख्त कार्रवाई करें।

सुनें हमारी बात

मैंने अपने बेटे को दुकान में मदद के लिए जोड़ा है ताकि वह व्यापार सीख सके। सरकार इस व्यापार को प्रोत्साहन दे तो अगली पीढ़ी भी इस व्यवसाय से जुड़ सकती है।

-सुभाष कुमार

शिव बाजार में नगर परिषद का स्थाई नाला नहीं रहने के कारण अस्थायी नाला का बदबूदार पानी रोड पर आता है। दुकानदार, ग्राहक एवं आम जनों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हमारी दुकानदारी भी प्रभावित होती है।

-पवन केशरी

हमारी दुकान मेन मार्केट में है। पहले यहां बहुत रौनक रहती थी लेकिन अब हालात यह है कि ट्रैफिक और अतिक्रमण के कारण ग्राहक दुकान तक पहुंच ही नहीं पाते। कई बार ग्राहक फोन करके ही पूछते हैं की रास्ता साफ है या नहीं।

-प्रशांत अग्रवाल

हम ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं है और ना ही बैंकिंग की उतनी समझ है। फिर भी हमने सरकारी योजनाएं देख कर लोन लेने की सोची। लेकिन जब बैंक गए तो इतनी अड़चन आई कि पीछे हटना पड़ा।

-पंकज भरती

ऑनलाइन कंपनियों की वजह से हम बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। वह भारी छूट देती हैं, फ्री होम डिलीवरी और रिटर्न पॉलिसी भी। लोकल दुकानदारों के लिए कोई ई-कॉमर्स पोर्टल बनाएं और उसे पर प्रचार-प्रसार की सुविधा दें।

-मंटू अग्रवाल

छोटे दुकानदारों के लिए सबसे बड़ी परेशानी अनियमित आमदनी है। जब हम इनपुट टैक्स भरते हैं और ग्राहक से वसूली नहीं हो पाती है तो नुकसान होता है। जीएसटी रिटर्न भरना भी हमारे लिए एक जटिल प्रक्रिया है।

-साहिल केशरी

हमारी दुकान में काम करने वाले स्टाफ पहले बड़े उत्साह से काम करते थे। अगर सरकार छोटे दुकानदारों को कर्मचारी योजनाएं दे तो हम अपने कर्मचारियों को बनाए रख सकते हैं। व्यापार अकेले नहीं चलता।

-रविंद्र कुमार

पहले हम लोगों की दुकानों के सामने एक सिलाई मशीन लेकर दर्जी रहा करते थे। इसके चलते हम लोगों की भी बिक्री ठीक-ठाक हो जाती थी। परंतु आज स्थिति अलग है। दर्जी के नहीं बैठने से बिक्री प्रभावित होती है।

-कृष्णा गुप्ता

त्योहारों में पहले जैसी बिक्री अब नहीं होती। दीपावली, ईद, होली ये सब अवसर अब ऑनलाइन कंपनियों के लिए कमाई का मौका बन गए हैं, हमारे लिए नहीं। ऊपर से ट्रैफिक की वजह से लोग बाजार ही नहीं आते। आसपास के बाजार चले जाते हैं।

-केशव कमार

प्रशासनिक अधिकारी कभी भी बाजार का दौरा नहीं करते। हम कई बार मिल कर ज्ञापन दे चुके हैं कि बाजार में जो नाले हैं, कम अंतराल पर सफाई होती रहे ताकि दुकानदारों के साथ-साथ ग्राहकों को भी सहूलियत हो।

-विनोद बरनवाल

मैंने अपनी दुकान के विस्तार के लिए एक बैंक से ऋण लेने की कोशिश की लेकिन इतनी जटिल प्रक्रिया और दस्तावेजों की मांग की गई कि मेरा मन ही टूट गया। बैंक वाले कहते हैं गारंटर लाओ, संपत्ति गिरवी रखो। अब हम जैसे साधारण दुकानदार कहां से इतना सब जुटा पाएं।

-विकास गुप्ता

यदि सरकार छोटे दुकानदारों को भी डिजिटल पेमेंट और क्रेडिट सिस्टम से जोड़ने की सुविधा दे तो हम आधुनिक सुविधाओं के साथ मुकाबला कर सकेंगे। हमें फाइनेंशियल सुविधाओं की ट्रेनिंग भी मिलनी चाहिए।

-सुरेश छापड़िया

कपड़े का व्यापार अच्छे डिजाइन या टिकाऊपन से नहीं, बल्कि ब्रांड और डिजिटल प्रजेंस पर निर्भर हो गया है। बड़े ब्रांड टीवी पर विज्ञापन देते हैं, सेल चलाते हैं। डिजिटल दौर में बिना पहचान के टिकना मुश्किल है।

-मनोज गुप्ता

हमारी दुकान पुरानी है लेकिन धीरे-धीरे ग्राहक घटते जा रहे हैं। हम ब्रांडेड और नॉन ब्रांडेड दोनों विकल्प रखते हैं लेकिन ग्राहक सीधे पूछते हैं ऑनलाइन पर तो इससे सस्ता है। यह सुन कर हमें दुख होता है।

-लालू केसरी

हमारी दुकान ऐसी गली में है जहां ट्रैफिक की वजह से गाड़ी लेकर ग्राहक नहीं आ सकते। कई ग्राहक फोन करके मंगवाने को कहते हैं लेकिन होम डिलीवरी के लिए हमारे पास साधन नहीं।

-उज्ज्वल केसरी

हमारी दुकान छोटे स्तर की है और हमारे ग्राहकों की संख्या भी सीमित है। जब भी कोई ग्राहक हमारी दुकान पर आते हैं तो कीमत को लेकर ऑनलाइन रेट दिखाते हैं और कहते हैं कि वहां सस्ता मिल रहा है।

-सुनील केसरी

बोले जिम्मेदार

मुख्यमंत्री उद्यमी योजना के तहत सरकार सहायता दे रही है। इसके अलावा पीएमईजीपी योजना के तहत भी लाभ ले सकते हैं। पोर्टल पर आवेदन कभी भी कर सकते हैं। इसमें अनुदान भी देने का प्रावधान है। किसी भी तरह की परेशानी होने पर या जानकारी लेने के लिए कार्यालय आ सकते हैं।

-मितेश कुमार शांडिल्य, महाप्रबंधक, जिला उद्योग केंद्र, जमुई

बोले जमुई फॉलोअप

अब तक डैम निर्माण नहीं हुआ पूरा

जमुई। कुंड घाट जलाशय योजना की नींव रखी गई थी, तब इस प्रखंड क्षेत्र के आसपास रहने वाले किसानों में उम्मीद जगी थी। ग्रामीणों को लगा था कि आने वाले नए साल में किसानों के खेतों तक पानी पहुंच जाएगा। लेकिन हर नया साल कोई ना कोई समस्या लेकर आया। 16 साल हो गए डैम का निर्माण कार्य पूरा नहीं हो सका। हर साल डैम का कार्य लटकता रहा। इससे क्षेत्र में रहने वाले किसानों को काफी निराशा हुई। बता दें कि नदी में डैम नहीं रहने के कारण प्रत्येक वर्ष बाढ़ आने पर करीब दो लाख क्यूसेक से अधिक पानी बर्बाद हो जाता था। इस महत्वपूर्ण परियोजना का शिलान्यास 24 दिसंबर 2008 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा किया गया था। लेकिन प्रशासनिक स्वीकृति 18 मार्च 2010 को मिली थी। स्वीकृति मिलने के बाद वन विभाग एवं पर्यावरण विभाग के पेच को लेकर 5 वर्षों तक कार्य बाधित रहा। इस परियोजना का कमांड एरिया 5030 एकड़ है। वर्ष 2015 में 45 करोड़ की लागत से विशिष्टा कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड बजरा हिल्स हैदराबाद को काम करने दिया गया। बताया जाता है कि प्राक्कलित राशि कम होने के कारण ठेकेदार ने काम छोड़ दिया। इसके बाद विजेता प्रोजेक्ट एंड इन्फ्राट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड रांची जलाशय निर्माण कार्य करने की स्वीकृति दी गई। जिसका पहला एग्रीमेंट 55 करोड़ 71 लाख 52 हजार में शुरू हुआ। इस बीच विजेता प्राइवेट इन्फ्राट्रक्चर व पेटी कांट्रेक्टर के बीच विवाद हो गया। पेटी कांट्रेक्टर ने हाईकोर्ट में गुहार लगाई। नतीजतन एक बार फिर काम रोक दिया गया। एक माह पूर्व हाईकोर्ट के आदेश आने पर 28 अगस्त को कार्य प्रारंभ किया गया है। सिंचाई विभाग के अनुसार अभी तक 72 करोड़ की खर्च हो चुकी है।

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