आ रहे चमकी का इलाज कराने निकल रहे ऑटिज्म के मरीज
- विश्व ऑटिज्म यानी स्वलीनता या आत्मलीनता (दो अप्रैल) पर विशेष साल 2024 में ऑटिज्म

भागलपुर, वरीय संवाददाता। ऑटिज्म यानी स्वलीनता या आत्मलीनता की बीमारी जन्मजात होती है। भागलपुर में इसके मामले आए दिन डॉक्टरों के क्लीनिक से लेकर अस्पतालों में मिल रहे हैं। वहीं पूर्वी बिहार, कोसी-सीमांचल के सबसे बड़े अस्पताल मायागंज में भी अब इसके मामले मिलने लगे हैं। शिशु रोग विशेषज्ञों की मानें तो ऑटिज्म की बीमारी का इलाज कराने के लिए लोग नहीं आते हैं। बल्कि अभिभावक अपने बच्चों में आ रही चमकी की बीमारी का इलाज कराने के लिए आते हैं। यहां पर बातचीत में पता चलता है कि ये चमकी बच्चे को ऑटिज्म की बीमारी के कारण आ रही है।
मायागंज अस्पताल में साल 2024 में मिले 63 ऑटिज्म के 63 बीमार
मायागंज अस्पताल के पीजी शिशु रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. अंकुर प्रियदर्शी बताते हैं कि शिशु रोग के ओपीडी में हर माह औसतन छह से सात बच्चे ऑटिज्म का शिकार मिलते हैं। बीते साल 2024 में ऑटिज्म के शिकार 63 बच्चे मिले। बकौल डॉ. प्रियदर्शी, ऐसा नहीं है कि बच्चों के मां-बाप ऑटिज्म को पहचान कर इसका इलाज कराने के लिए अस्पताल आते हैं। बल्कि कुल ऑटिज्म के शिकार बच्चों में से 32 प्रतिशत बच्चों में चमकी यानी कन्वर्जन की समस्या पाई गई और इसका इलाज कराने के लिए मां-बाप अस्पताल पहुंचे। यहां पर अभिभावकों से हुई बातचीत में पता चला कि बच्चा लोगों से बात नहीं करता है या फिर बात करते वक्त नजर नहीं मिलाता है। तब जाकर जांच में पता चलता है कि बच्चा ऑटिज्म की जद में है। अगर चमकी को छोड़ दें तो ये भी आशंका है कि ऑटिज्म से होने वाली समस्याओं को अभिभावक सामान्य समझ लेते हैं, इसलिए ऑटिज्म की सही तस्वीर सामने नहीं आ पा रही हो।
अपनों से दूरी और खिलौने में मस्त रहे बच्चा तो अलर्ट हो जाएं
मायागंज अस्पताल के पीजी शिशु रोग विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राकेश कुमार कहते हैं कि अगर कोई बच्चा दिनभर खिलौनों से ही खेलता है और किसी व्यक्ति से बात करना तो दूर नजदीक तक बैठना नहीं चाहता है, तो इसे हल्के में न लें। बच्चे का गुमशुम रहने के साथ बेजान चीजों से लगाव रखना, उसे ऑटिज्म होने की तरफ इशारा करता है। क्योंकि ऑटिज्म से शिकार बच्चा दुनिया से अलग रहकर अकेला व अलग रहना पसंद करता है। आसपास होने वाली किसी भी गतिविधि से उसे कोई सरोकार नहीं होता है। ऑटिज्म को मेडिकल की भाषा में स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर कहते हैं। इसमें पीड़ित को बातचीत, लिखने-पढ़ने में समाज में लोगों से मेलजोल बनाने में परेशानी आती है। यहां तक बच्चा अपने माता-पिता से भी लगाव या जुड़ाव नहीं रखता है। वह हमेशा अकेले या फिर खिलौने, मेज-कुर्सी से खेलता है या फिर उसी से बात करते दिखता है।
इन लक्षणों पर दें ध्यान
- बच्चे का हमेशा अकेला व शांत रहना।
- बच्चे की खिलौने व निर्जीव वस्तुओं में रुचि।
- एक ही काम को बार-बार करना।
- एक ही जगह पर घंटों बैठे रहना।
- बातचीत के दौरान नजरें न मिलाना।
अभिभावक रखें इन बातों का ख्याल
- बच्चे को अकेले नहीं छोड़े, हमेशा ध्यान रखें।
- बच्चे के साथ धीरे-धीरे और साफ आवाज में बात करें।
- लक्षण दिखें तो तुरंत डॉक्टर से मिलें।
- बच्चे के सोने का समय तय करें।
- ऐसे शब्दों का प्रयोग करें, जिसे बच्चा आसानी से समझ लें।
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