दोस्तों के संपर्क में आकर टीबी के गिरफ्त में आ रहे मासूम
भागलपुर में चार से 12 साल के बच्चों में फेफड़ों की टीबी के मामले बढ़ रहे हैं। 2022 तक हर सप्ताह सात से आठ मामले आते थे, अब यह संख्या 10 से 12 हो गई है। बच्चे अक्सर अन्य समस्याओं के लिए अस्पताल जाते...

चार साल से लेकर 12 साल तक के बीच के बच्चों में ज्यादा मिल रही बीमारी 2022 तक सप्ताह में सात से आठ मामले मिलते थे, अब 10 से 12 मिल रहे
भागलपुर, वरीय संवाददाता
अपने साथियों के साथ खेल से लेकर पढ़ाई में मशगूल बच्चों को फेफड़े की टीबी (लंग्स टीबी) हो रही है। खेल व पढ़ाई के दौरान संक्रमित बच्चों के संपर्क में आकर मासूम बच्चे फेफड़े की टीबी की बीमारी का शिकार हो रहे हैं। इसकी जानकारी न तो परिजनों को होती है और न ही बच्चों को। लेकिन जब फेफड़े की टीबी के कारण होने वाली अन्य समस्याओं का इलाज कराने के लिए बच्चे अस्पताल पहुंचते हैं, तब जाकर लोगों को पता चलता है कि उनका लाडला फेफड़े की टीबी का शिकार हो चुका है।
जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल यानी मायागंज अस्पताल के पीजी शिशु रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. अंकुर प्रियदर्शी कहते हैं कि अस्पताल में साल 2022 तक हर सप्ताह लंग्स टीबी के सात से आठ मामले मिलते थे। लेकिन इन दिनों हर सप्ताह लंग्स टीबी के दस से 12 मरीज मिलने लगे हैं। ये बच्चे फेफड़े की टीबी का इलाज कराने के लिए नहीं आते हैं बल्कि तेज बुखार, बुखार चढ़ना-उतरना, भूख न लगने, वजन की कमी, सुस्ती व कमजोरी या फिर खांसी के ठीक न होने की बीमारी का इलाज कराने के लिए लाए जाते हैं। जहां जांच में ये बच्चे लंग्स टीबी के बीमार मिलते हैं। चार साल से लेकर 12 साल तक के बीच के बच्चों में टीबी ज्यादा मिल रही है। ये बच्चे न केवल भागलपुर, बल्कि बांका, मुंगेर, खगड़िया से लेकर पूर्वी बिहार, कोसी-सीमांचल के जिलों के होते हैं। बड़ी बात ये है कि इन बच्चों के परिवार में कोई टीबी का मरीज नहीं होता है, बल्कि ये बच्चे अपने स्कूल या साथ खेलने वाले बच्चों के संपर्क में आकर लंग्स टीबी का शिकार हो रहे हैं।
जेएलएनएमसीएच का टीबी विभाग खुद हो गया है बीमार, सीनियर डॉक्टर ही नहीं
जेएलएनएमसीएच यानी मायागंज अस्पताल का टीबी एंड चेस्ट विभाग बीते एक अगस्त 2024 से बिन विशेषज्ञ चिकित्सक के चल रहा है। इस विभाग को एक चिकित्सा पदाधिकारी व करीब आधा दर्जन पीजी, जूनियर रेजीडेंट इंटर्न डॉक्टर चला रहे हैं। इन लोगों पर टीबी वार्ड, एमडीआर वार्ड से लेकर टीबी एंड चेस्ट की नियमित ओपीडी व अस्थमा क्लीनिक चलाने का जिम्मा है। जबकि ओपीडी में हर रोज 60 से 65 मरीज इलाज के लिए आते हैं। जबकि इंडोर में 30 बेड का टीबी वार्ड संचालित हो रहा है। ऐसे में डॉक्टरों की कमी एमडीआर व टीबी के मरीजों के इलाज में बड़ी बाधा बना हुआ है।
एक्सरे, त्वचा व खांसी के श्राव टेस्ट से होती है टीबी की जांच
वरीय फिजिशियन डॉ. विनय कुमार झा कहते हैं कि खून या त्वचा का टेस्ट कराकर टीबी का पता लगाया जा सकता है। इसके अलावा एक्सरे कराकर फेफड़े की टीबी का पता चलता है तो वहीं खांसी के श्राव या पेट के श्राव की जांच करके टीबी के बैक्टीरिया का पता लगाया जाता है। साथ ही अगर किसी बच्चे में टीबी का होना पाया जाता है तो घबराएं नहीं। इसका पूरा व बेहतरीन इलाज व दवा उपलब्ध है। बस इलाज का कोर्स पूरा करना होगा और किसी भी सूरत में टीबी के इलाज को अधूरा नहीं छोड़ना है। इससे टीबी के बैक्टीरिया और मजबूत होकर बच्चे को एमडीआर टीबी का शिकार बना सकते हैं।
बच्चों में फेफड़ों की टीबी के ये रहे लक्षण
- हाई ग्रेड का बुखार होना, विशेषकर शाम के समय।
- दो से तीन सप्ताह से ज्यादा समय से खांसी होना। जो खून या बलगम के साथ हो सकती है।
- बिना किसी वजह के बच्चे के वजन में कमी होना।
- बच्चे को सुस्त या कमजोरी महसूस होना।
- सांस लेने में परेशानी या तेज सांस लेना।
- सीने में दर्द या बेचैनी आना व रात में ज्यादा पसीना आना।
टीबी से बचाव के लिए ये करना होगा
- टीबी के पीड़ित बच्चे या व्यक्ति के संपर्क में आने से बचें।
- अगर घर में किसी में टीबी होना मिलता है तो बच्चे की कराएं जांच।
- हाथ धोना, साफ-सफाई का ध्यान रखना चाहिए।
- टीबी को लेकर खुद सजग-सतर्क रहें और बच्चों को जागरूक करें।
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