दुख सहकर सत्यकर्म पर चलनेवाले को भगवान का दर्शन होता है : सत्य प्रकाश जी
सांसारिक दुख भोगकर जो उफ नहीं करता है। दुख को अपने कर्मों का भोग समझकर सहजता से लेता है। तकलीफ में किसी का अनादर नहीं करता है। कष्ट में रहकर जीने के गुढ़ रहस्य को आत्मसात कर भगवान के भजन मे लगा रहता...
सांसारिक दुख भोगकर जो उफ नहीं करता है। दुख को अपने कर्मों का भोग समझकर सहजता से लेता है। तकलीफ में किसी का अनादर नहीं करता है। कष्ट में रहकर जीने के गुढ़ रहस्य को आत्मसात कर भगवान के भजन मे लगा रहता है, उसे ही प्रभु सच्ची भक्ति प्रदान करते हैं। उक्त बातें सत्य प्रकाश जी महराज ने लक्ष्मीनियां पुल के पास चल रहे श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन कही। उन्होंने कहा कि भक्त सुदामा ने भक्ति के मार्ग में गरीबी को आड़े नहीं आने दिया। अभाव की जिंदगी जीकर भी भागवत भजन में लीन रहकर द्वारका गये तो भगवान कृष्ण ने बिना बताये धन, समप्ति, हीरा, जवाहरात, भवन प्रदान किया।
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