बोले मुंगेर : नीलगाय से परेशान किसान छोड़ रहे खेती
मुंगेर जिले के किसान नीलगाय के आतंक से परेशान हैं। लगभग 2000 किसान प्रभावित हैं, जिससे उनकी फसलें बर्बाद हो रही हैं। किसान चाहते हैं कि नीलगाय के खात्मे के लिए त्वरित और सरल उपाय किए जाएं। अगर ऐसा...
मुंगेर जिले के गंगा पार दियारा क्षेत्र के साथ ही पहाड़ी क्षेत्र के किसान भी नीलगाय के आतंक से परेशान हैं। लगभग दो हजार से भी अधिक किसान नीलगाय के आतंक से परेशान हैं। नील गायें जमालपुर के वन्य प्राणी क्षेत्र से पहाड़ी क्षेत्र के खेतों तक पहुंच जाती हैं। सैकड़ों एकड़ में लगी फसलों को बर्बाद कर देती हैं, जिससे यहां के किसानों भारी पैमाने पर आर्थिक क्षति उठानी पड़ती है। हिन्दुस्तान से संवाद के दौरान जिले के किसानों ने बताया कि यदि नीलगायों के खात्मे की त्वरित व्यवस्था हो तो किसानों की फसलें बचाई जा सकती हैं। इसे मारने के लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई है, वह काफी कठिन है। कार्यवाही इतनी लंबी और कठिन है वे सक्रिय होने के पूर्व ही पीछे हट जाते हैं। प्रभावित किसानों का मानना है कि त्वरित कार्य करने से ही फायदा हो सकेगा।
02 हजार से अधिक किसान नील गाय के आतंक से हैं परेशान
11 सौ हेक्टेर में लगी फसलें नील गाय के आतंक से प्रभावित
12 गांव जमालपुर प्रखंड के नीलगाय के आतंक से हैं परेशान
जमालपुर व सदर प्रखंड के एक दर्जन गांवों के किसान नीलगायों के आतंक से परेशान हैं। कंतपुर, गढ़ी, महमदा, गढ़ीरामपुर, पाटम, अहरा पाटम, बरैयचक पाटम, चिरैयाबाद, उम्भी बनबरसा, रतनपुर सहित कई गांवों के किसानों ने अपनी परेशानी बताई। किसानों ने बताया कि पहाड़ से घिरे खेतों में टमाटर, गेहूं, सरसों व सब्जियां पैदा की जाती हैं। लेकिन नीलगाय किसानों की मेहनत पर पानी फेर देती है। रात के समय में झुंड में आकर किसानों की फसल को रौंद डालती हैं। फसलें इस तरह बर्बाद हो जाती हैं कि किसी काम की नहीं रह जातीं। नीलगाय के आतंक से परेशान दर्जनों किसान खेती छोड़कर रोजी-रोटी के लिए दूसरे राज्य पलायन कर गए हैं। जबकि अन्य किसान भी खेती छोड़ने का मन बना रहे हैं। अगर सरकार व प्रशासन की ओर से नीलगाय को मारने की कोई ठोस नीति नहीं बनती है, तो प्रभावित क्षेत्र के किसानों को खेती छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा।
नीलगाय के आतंक से किसानों ने छोड़ी बागवानी :
अरहर की खेती के लिए प्रसिद्ध गढ़ीरामपुर गांव के किसानों ने अपनी व्यथा साझा की। किसानों ने कहा कि पिछले कई वर्षों से हम लोग नीलगाय से परेशान हैं। अब हम लोगों ने बागवानी पूरी तरह बंद कर दी है।हमारा क्षेत्र अरहर की खेती के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। यहां के खेतों में उत्पादित सुगंधित अरहर की डिमांड दूर-दूर तक रहती है। लेकिन नीलगाय के कारण अब अरहर का उत्पादन सिमटते जा रहा है। पहले हजारों क्विंटल अरहर का उत्पादन होता था। अब 100 से 200 क्विंटल ही उत्पादन होता है। फसल तैयार होते होते नीलगायें 50 प्रतिशत हिस्से तक नष्ट कर देती हैं। ऐसे में फसल उत्पादन स्वत: आधा हो जाता है ।
नीलगाय को मारने की प्रक्रिया हो सरल :
बातचीत के क्रम में किसानों ने बताया कि सरकार को नीलगाय मारने की दिशा में सरल उपाय करने चाहिए। वर्तमान में नीलगाय मारने की जो प्रक्रिया बनाई गई है, उसमें काफी वक्त लग जाता है। तब तक नीलगाय फसल को पूरी तरह बर्बादी के कगार पर पहुंचा देती है। फसल की रखवाली के लिए रात भर जगे रहना पड़ता है। कभी-कभी 50 की संख्या में एक साथ नीलगायें फसल को चरना शुरू कर देती हैं। वहीं जंगली सूअर तो काफी खतरनाक होते हैं। किसानों पर हमला भी कर देते हैं।
कोई ठोस व्यवस्था करे सरकार :
नीलगाय को मारने के लिए सरकार ने शूटर को तैयार किया है लेकिन शूटर को नीलगाय तक पहुंचने में काफी समय लग जाता है जिससे किसानों को कोई फायदा नहीं मिल पाता। व्यवस्था ऐसी हो कि आवेदन मिलने के बाद 2 से 3 दिनों के अंदर शूटर पहुंच कर नीलगाय को मारने का कार्य करें। अगर ऐसा होता है तो किसानों को काफी फायदा होगा और किसानों के मन से नीलगाय का भय भी समाप्त हो पाएगा। अगर सरकार कोई ऐसी व्यवस्था करती है तो एक बार फिर से गढ़ीरामपुर, पाटम महमदा आदि गांवों के किसान खेती में दिलचस्पी ले सकेंगे और अरहर उत्पादन कर ख्याति प्राप्त कर सकेंगे ।
शिकायतें
1 . नीलगाय के आतंक से किसानों को उठाना पड़ रहा नुकसान।
2 . झुंड में नीलगायें खेत में प्रवेश कर फसल को कर कर कर देती हैं बर्बाद।
3 . एक दर्जन गांवों के 2000 से भी अधिक किसान हैं नीलगाय से परेशान।
4 . नीलगाय को मारने के लिए शिकायत करने पर भी जल्द नहीं होता सामाधान।
सुझाव
1 . नीलगाय को मारने के की शिकायत मिलने पर हो त्वरित व्यवस्था।
2 . फसल नुकसान का किसानों का मिले मुआवजा।
3 . नीलगाय के आतंक से पलायन कर गए किसानों को पुनः वापस लाने की सरकार करे व्यवस्था।
4 .नीलगाय की संख्या का सर्वेक्षण कराकर उसे ठिकाने लगाने के लिए सरकार करे स्थायी व्यवस्था।
सुनें हमारी बात
नीलगाय के आतंक से हमलोग उब चुके हैं। नीलगाय को मारने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की जा रही है। हमलोग अब खेती छोड़ने की सोच रहे हैं।
अशोक कुमार सिंह
नीलगाय को मारने के लिए त्वरित व्यवस्था होनी चाहिए, वर्तमान व्यवस्था उतनी कारगर नहीं है। आवेदन की जांच में काफी समय लग जाता है, तब तक नीलगाय फसल चर लेती है।
गीता चौधरी
नीलगाय के आतंक से अब बागवानी भी मुश्किल हो गई है। मैंने केले की खेती की है, उसे भी नीलगाय बर्वाद कर देती है। नीलगाय के आतंक से रात भर जगे रहना पड़ता है।
विश्णुदेव प्रसाद चौधरी
नीलगाय की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। रात में ज्यादा परेशान करती है। टमाटर की फसल को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है। खेती में लगी पूंजी भी नहीं लौटी।
मंटून चौधरी
नीलगाय का सर्वे कर उसे मारने की व्यवस्था सरकार को जल्द से जल्द करनी चाहिए, जिससे किसानों को राहत मिल सके। नीलगाय के कारण किसान खेती छोड़कर रोजी-रोटी के लिए पलायन करने लगे हैं।
बमबम सिंह
नीलगाय के कारण हमलोगों का उत्पादन आधा हो गया है। जबकि जितनी पूंजी खेती में लगती है, वह भी बमुश्किल लौटती है। सरकार को अविलंब व्यवस्था करनी चाहिए।
मनोज चौधरी
कई साल से हमलोग सरकार से नीलगाय की समस्या से निजात दिलाने के लिए गुहार लगा रहे हैं। कार्रवाई त्वरित होनी चाहिए, लेकिन हमलोगों की बात को सरकार अब तक नजरअंदाज करती रही है।
बिरेन्द्र सिंह
सरकार नीलगाय की खात्मे को लेकर मजबूत कदम उठाए, जिससे किसान निर्भीक होकर खेती कर सकें। अन्यथा किसानों को खेती छोड़कर कहीं पलायन करना पड़ेगा।
राजेश चौधरी
नीलगाय के आतंक से मैंने अरहर की खेती छोड़ दी है। जबकि हमारे यहां के अरहर की डिमांड दूसरे राज्यों में भी है। नीलगाय की समस्या खत्म हो जाये तो फिर से अरहर उपजाना शुरू कर देंगे।
छोटू सिंह
अरहर की खेती हमारे यहां की मुख्य फसल है, लेकिन नीलगाय के आतंक से उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। नीलगाय की समस्या का निदान हो जाये तो फिर से अरहर उत्पादन में इजाफा होगा।
अर्जुन कुमार
नीलगाय की संख्या लगातार बढ़ रही है। 50 से भी अधिक के झुंड में नीलगायें फसल में प्रवेश कर बर्बाद कर देती हैं। जब तक खेत पर पहुंचते हैं तब तक फसल पूरी तरह से बार्बाद हो जाती है।
संजीव चौधरी
नीलगाय की आतंक के कारण मैनें दो साल से खेती छोड़ दी है। खेती से लागत भी ऊपर नहीं हो रहा था। अगर नीलगाय की समस्या दूर होती है तो फिर से मैं खेती शुरू कर दूंगा।
प्रमोद चौधरी
एक ओर सरकार किसानों की आमदनी को बढ़ाने के लिये प्रयासरत है, लेकिन नीलगाय की समस्याके सामाधान के प्रति कोई खास कार्य नहीं किये जाने से हमलोग मायूस हैं। सरकार को अविलंब ध्यान देना चाहिए।
रंजीत चौधरी
जब तक नीलगाय की समस्या का सामाधान नहीं होगा तब तक हमलोग अपनी आमदनी को नहीं बढ़ा पाएंगे। अगर सरकार को किसानों की आमदनी बढ़ाने की चिंता है, तो सबसे पहले नीलगाय की समस्या का सामाधान करे।
छोटू चौधरी
हमारे पास खेती के अलावा रोजी रोटी के लिये कोई दूसरा उपाय नहीं है। जितनी मेहनत करता हूं उतना कमाई नहीं हो पाती है। इसका एक मात्र कारण नीलगाय की समस्या ही है। यह दूर होनी चाहिए।
कुनकुन सिंह
हाल ही में एक बीघे में लगी सरसों की फसल नीलगाय ने बर्वाद कर दी। जबकि सरसों की फसल काफी अच्छी थी। अगर नीलगाय फसल को बर्बाद नहीं करती तो उपज काफी अच्छी होती। सरकार को ठोस व्यवस्था करनी चाहिए।
सन्नी चौधरी
बोले जिम्मेदार
नीलगाय निश्चित रूप से किसानों के लिए समस्या बनी हुई है। नीलगाय झुंड में आकर फसलों को नुकसान पहुंचाती है। लेकिन किसानों को इसके लिये अब ज्यादा चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। घोरपरास (नीलगाय) को मारने के लिए किसान जैसे ही आवेदन करेंगे, वह आवेदन सीधे मुखिया के लॉगइन में चला जायेगा। मुखिया घोरपरास(नीलगाय) को मारने के लिए स्थानीय रेंजर के पास लॉगइन करेंगे। उसके बाद जांच पड़ताल के बाद घोरपरास (नीलगाय) को मारने की कार्रवाई होगी। जिले के जमालपुर तथा धरहरा क्षेत्र में आवेदन मिलने के बाद 59 घोरपरास (नीलगाय) को शूटर ने मार गिराया है। किसानों को चिंता नहीं करना चाहिए। अगर नीलगाय को मारने में ज्यादा समय लगता है, तो रबी फसल कटने के बाद ही घोरपरास को मारने के लिये आवेदन दें। जहां तक फसल मुआवजा की बात है तो वन्य जीव द्वारा फसल नुकसान पर मुआवजा का कोई प्रावधान नहीं है। किसान घोरपरास(नीलगाय) को मारने के लिये अभी से ही आवेदन कर दें, जिससे कि भदई फसलों में घोरपरास(नीलगाय) की समस्या नहीं आए।
-ब्रजकिशोर, जिला कृषि पदाधिकारी, मुंगेर
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