जीवन में गुरु का होना परम आवश्यक है : देवी मीरा
फोटो है : श्रीश्री 108 महावीर मंदिर में आयोजित हो रही नौ दिवसीय

भागलपुर, हिन्दुस्तान प्रतिनिधि। यह धरा धाम है, यहां पर हमें अपने पाप-पुण्य को भुगतना पड़ता है। अपने प्रारभ्य के रूप में। श्री राम जैसा आदर्श केवल राम ही हो सकते हैं। श्री राम क्षत्रिय हैं। क्षत्रिय का कार्य सबकी रक्षा करना है। चार तरह के वर्ण होते हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र। हमारा मुख मंडल ब्राह्मण, वक्ष स्थल क्षत्रिय, उदर वैश्य और उसके नीचे का भाग सेवक का होता है। वैश्य का कार्य पालन करना। धन दौलत के द्वारा। श्री राम ने कहा क्षत्रिय का धर्म है, वह ब्राह्मण की रक्षा करे, गौ माता की रक्षा करे, देश की रक्षा करे।
यह प्रसंग मंगलवार को प्रयागराज से पधारे हुए मां कामाख्या उपासक नीरज स्वरूप महाराज जी की कृपा पात्र शिष्या एवं कथा वाचिका देवी मीरा किशोरी जी मां कामाख्या उपासक ने कही। देवी मीरा चंपानगर के तुलसी मिश्रा लेन स्थित श्री श्री 108 महावीर मंदिर आयोजित श्री राम कथा के पांचवें दिन बोल रही थीं। कथा वाचिका ने हम सबों के जीवन में गुरु का होना परम आवश्यक है। बिना गुरु दीक्षा लिए, बिना गुरु मंत्र लिए कितने भी अनुष्ठान, पूजन, पाठ इत्यादि कार्य कर लें तो उसका फल प्राप्त नहीं होगा। अगर चाहते हैं जो हम धर्म का कार्य कर रहे हैं, पुण्य का कार्य कर रहे हैं, नित्यकर्म में जो पूजा कर रहे हैं। यदि चाहते हैं कि उसका फल मिले तो गुरुमंत्र अवश्य लें। कथा में प्रभु श्री राम के धनुष यज्ञ और विवाह का वर्णन किया। साथ ही भगवान श्रीराम द्वारा धनुष भंग, परशुराम, लक्ष्मण संवाद एवं श्रीराम विवाह की रोचक प्रसंगों से श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया। उन्होंने कहा कि विश्वामित्र ने सम्पूर्ण उत्तर भारत को दुष्टजनों से श्रीराम द्वारा मुक्त करा लिया और फिर जनकपुर धनुष यज्ञ सीता स्वयंवर में श्री राम लक्ष्मण के सहित पहुंचे। श्री राम और माता सीता के स्वयंवर विवाह का प्रसंग सुनने के बाद प्रवचन के दौरान मौजूद श्रद्धालु झूम रहे थे। प्रसंग के दौरान भगवान का विवाह संपन्न हुआ। श्री राम सीता के विवाह उत्सव को श्रवण कर पूरा पंडाल झूम उठा। लोग जय श्री राम और जय श्री सीता राम के का जयकारा लगा रहे थे। प्रवचन से पूर्व यजमान भवेश कुमार झा द्वारा वेदी पूजन किया गया। आरती के पश्चात प्रवचन शुरू हुआ। इस मौके पर इस दौरान कामख्या उपासक गुरुदेव नीरज स्वरूप जी महाराज सहित प्रवेश राजहंस, सजय कुमार झा, शरत चंद्र मिश्र, प्रशांत झा, राजीव झा, परिमल ठाकुर, प्रियरंज झा, जीवन झा, गोपाल रजक, कृष्णा मिश्र, राजकृष्ण मिश्र, राजू राजहंस, राकेश कुमार, शुभम झा आदि मौजूद थे।
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