चौठचंद्र पर्व आज: जानिए नियम और निष्ठा के साथ मनाए जाने वाले इस लोक पर्व की कहानी
चौठचंद्र पर्व आज मनाया जायेगा। इसकी तैयारी शुरू हो गयी है। यह पर्व मिथ्या कलंक से बचने के लिए मनाया जाता है। इस दिन हाथ में फल लेकर चंद का दर्शन किया जाता है। श्रद्धालु पर्व के दिन नए मिट्टी...
चौठचंद्र पर्व आज मनाया जायेगा। इसकी तैयारी शुरू हो गयी है। यह पर्व मिथ्या कलंक से बचने के लिए मनाया जाता है। इस दिन हाथ में फल लेकर चंद का दर्शन किया जाता है।
श्रद्धालु पर्व के दिन नए मिट्टी के बर्तन में नियम निष्ठा से दही जमाकर चन्द्र को अर्पण करते हैं और शंख जल से चन्द्रदेव को अर्घ्य देते हैं और डालिया या सूप भी चढ़ाते हैं। डालिया में नारंगी, सेब, केला, दही का छांछ आदि भरा जाता है। व्रती काफी निष्ठा से यह पर्व करती हैं। पूजा के लिए शाम 6.10 से सात बजे तक शुभ समय है।
हाथ में जिस फल को लेकर चन्द्र को देखा जाता है उस फल को कहीं दूसरे जगहों पर फेंकने पर मिथ्या कलंक से बचा जा सकता है। इसके कारण कई बार आसपड़ोस के लोगों के बीच कहासुनी भी हो जाती है। बूढ़ानाथ के पंडित भूपेश मिश्रा ने बताया कि श्रद्धालुओं के बीच यह सिर्फ एक भ्रम है। उन्होंने बताया कि दही का अर्पण करने, शंख जल से अर्घ्य करने व स्यमन्तकों पाख्यान करने से मिथ्या कलंक नहीं लगता है।
भगवान श्रीकृष्ण पर लगा था दोष
पंडित भूपेश मिश्रा ने बताया कि द्वारिकापुरी में सत्राजित को भगवान सूर्य से स्यमंतक मणि प्राप्त हुआ था। भगवान कृष्ण ने सत्राजित से कहा कि यह मणि आप राजा उग्रसेन को दे दो। सत्राजीत ने उनकी बात नहीं सुनी। एक दिन सत्राजित के भाई प्रसेन मणि को लेकर वन में शिकार करने जाते हैं तो वहां सिंह के द्वारा उसकी मौत हो जाती है। सिंह के मुंह में मणि देख जांबवंत सिंह को मारकर मणि ले लेता है। इधर अफवाह फैली कि श्रीकृष्ण ने ही प्रसेन को मारकर मणि ले लिया। उनपर मिथ्या कलंक लगा। चौठ के चंद्र को देखने से उनपर मणि चोरी का कलंक लगा था। उसके बाद भगवान चन्द्रदेव को प्रसन्न करने के लिए श्रीकृष्ण ने पूजा-अर्चना की।
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