हर साल वायरस बदल रहा चेहरा, इस बार फेफड़े पर अटैक
नौ से 12 महीने में ही वायरस म्यूटेशन करके अपना व्यवहार बदल रहा ओपीडी
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भागलपुर, वरीय संवाददाता। साल दर साल मौसम के व्यवहार में हो रहे बदलाव का असर अब बदलते मौसम में होने वाली शारीरिक समस्याओं में भी बदलाव दिख रहा है। वायरस भी अपना व्यवहार बदल रहा है। हर साल लोगों को अलग-अलग तरह का शारीरिक व मानसिक कष्ट दे रहा है। चिकित्सकों की मानें तो हर तरह का वायरस समय-समय पर म्यूटेशन करके अपना लक्षण व व्यवहार बदलता है। हाल के सालों में तो हर नौ से 12 महीने में ही वायरल का वायरस म्यूटेशन करके अपना व्यवहार बदल रहा है। इस साल बदला वायरस लोगों के फेफड़े पर अटैक कर रहा है, जो चिकित्सकों के लिए चिंता का विषय है। बड़ी बात ये कि पोस्ट वायरल इफेक्ट के तहत जीबी सिंड्रोम के मामले भी जांच में मिल रहे हैं। हालांकि इसके मरीजों की संख्या कम ही है।
ओपीडी में हर तीसरा मरीज फेफड़े की समस्या से जूझ रहा
जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (मायागंज अस्पताल) के मेडिसिन ओपीडी, टीबी एंड चेस्ट ओपीडी में मरीजों की संख्या बढ़ गई है। रोजाना 55 से 60 वायरल के मरीज, उसमें भी फेफड़ों की समस्या को लेकर इलाज के लिए आ रहे हैं। अनुमानों की मानें तो अभी होली और इसके कुछ दिनों बाद भी इसी तरह के मरीजों की संख्या ओपीडी में बढ़ी रहेगी। इसमें क्रॉनिक बीमारी या फिर धूम्रपान करने वालों में सांस लेने की दिक्कत ज्यादा मिल रही है।
बीते तीन साल में इस तरह के वायरल के वायरस ने बदला अपना चेहरा
फरवरी 2023 में वायरल के वायरस का म्यूटेशन हुआ था तो सबसे ज्यादा मरीज इन्फ्लूएंजा जुकाम के मिल रहे थे। इसमें सात से दस दिन तक जुकाम ठीक नहीं होता था। मेडिसिन के कुल मरीजों में से करीब 45 प्रतिशत इसी तरह की समस्या को लेकर आ रहे थे। वहीं फरवरी 2024 में वायरल के वायरस म्यूटेड किया तो वायरल के मरीजों में बेतहाशा वृ़द्धि हुई थी। इस तरह के मरीजों में सर्दी, खांसी व जुकाम के साथ-साथ जोड़ों में दर्द, शरीर पर लाल चकत्ते पड़ने की समस्या का सामना करना पड़ा था। अब जबकि फरवरी 2025 बीत चुका है। इन दिनों वायरल के वायरस का फिर म्यूटेशन हो चुका है।
मायागंज अस्पताल के मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राजकमल चौधरी कहते हैं कि ये बदला हुआ वायरस लोगों को सर्दी, जुकाम, बदन दर्द व खांसी का दर्द दे रहा है। फेफड़े में संक्रमण देकर लोगों को सांस का बीमार बना रहा है। ऐसे में ओपीडी में आने वाले वायरल के हर तीसरे मरीजों की सांस फूल रही है। अगर सीओपीडी या अस्थमा का मरीज है तो उसे इसका अटैक आ सकता है। या फिर किडनी, हृदय रोग का मरीज है तो उसकी बीमारी और गंभीर हो सकती है।
पोस्ट वायरल के मरीजों के न्यूरो सिस्टम को प्रभावित कर रहा बुखार
मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर सह मायागंज अस्पताल के अधीक्षक डॉ. हेमशंकर शर्मा बताते हैं कि सर्दी, जुकाम व बुखार के लक्षण से शुरू हुआ इस बार का वायरल इंफेक्शन संक्रमित होने के तीन से चार दिन में मरीज के फेफड़े को संक्रमित करके उसे सांस की समस्या देने लग रहा है। कई मरीजों में तो ऑक्सीजन लेवल (एसपीओ2) तक कम मिल रहा है। हालांकि इस तरह के मरीजों में से करीब 99 प्रतिशत मरीजों को भर्ती करने की नौबत नहीं आ रही है। लेकिन सीओपीडी, अस्थमा समेत अन्य क्रॉनिक बीमारी से जूझ रहे लोगों या फिर बुजुर्गों को अस्पताल में भर्ती होने तक की नौबत आ जा रही है। यहां तक पोस्ट वायरल के मरीजों के न्यूरो सिस्टम को बुखार बहुत हद तक प्रभावित कर रहा है।
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