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भागलपुर रेलवे स्टेशन परिसर बना गौरैया का आशियाना, यहां सुनिये गौरेयों का कलरव

गौरैया भले ही घरों में नहीं दिखती हो, लेकिन स्टेशन परिसर इस नन्हें परिंदों से गुलजार है। स्टेशन पोर्टिको के ठीक सामने एक छोटे से घने पेड़ में सैकड़ों गौरैयों का आशियाना बसा है। हर शाम सूर्यास्त की...

Sunil Abhimanyu भागलपुर, तरुण कुमार , Sat, 14 Sep 2019 05:22 PM
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गौरैया भले ही घरों में नहीं दिखती हो, लेकिन स्टेशन परिसर इस नन्हें परिंदों से गुलजार है। स्टेशन पोर्टिको के ठीक सामने एक छोटे से घने पेड़ में सैकड़ों गौरैयों का आशियाना बसा है। हर शाम सूर्यास्त की लालिमा के साथ पूरे स्टेशन परिसर में इसके चुनमुन से ऐसा संगीत बन जाता है, मानो उनकी आवाज से सरगम फूट रहा हो।

गौरैया खुद को घोंसले की तरह महफूज मानती
स्थानीय रेलकर्मियों की मानें तो स्टेशन परिसर के बीचोबीच बने इस गार्डेन में सजावटी पौधे लगाए गए थे, जो काफी बड़े हो गए हैं। इसकी खासियत यह है कि इसके पत्ते बहुत घने होते हैं। इसके ऊपर अमलतास की झाड़ियां भी चढ़ गई हैं। इससे यह पेड़ पर एक आवरण बन गया है, इसलिए इसमें गौरैया खुद को घोंसले की तरह महफूज मानती है। हर दिन शाम में लगभग पांच बजे दाना चुगकर इस पेड़ में सैकड़ों गौरैया समा जाती हैं। इस दौरान इसकी चीं-चीं की आवाज अलग अनुभूति कराती है। यह उप पक्षी प्रेमियों के लिए संदेश है जो यह मानते हैं कि गौरैया अब विलुप्त हो गई है। 

ये वजह हो सकते हैं स्टेशन में गौरैयों के आशियाने की

गौरैया बस रात बिताने आती है झाड़दार पेड़ों पर
पक्षी वैज्ञानिक बताते हैं कि हर शाम गौरैया वहां इसलिए आती हैं कि उसे रात बिताने के लिए झाड़ीदार पेड़ चाहिए। कई जगहों पर पीपल और घने बबूल और आम के पेड़ पर भी गौरैया आती हैं। स्टेशन पर वह पेड़ झाड़ीदार है, इसलिए आती है। 

स्टेशन के पिछले हिस्से में आसपास ग्रामीण परिवेश
इस जगह पर गौरैया की इतनी आबादी की एक बड़ी वजह है स्टेशन के दक्षिणी हिस्से में अब भी ग्रामीण परिवेश है। उस हिस्से में अभी बड़े मकान नहीं बने हैं। इसलिए भोजन के लिए उन्हें मुफीद जगह मिल जाती है। 

प्रजनन के लिए पुराने मकान माकूल
स्टेशन परिसर में और आसपास कई पुराने मकान हैं। इन मकानों में झरोखे हैं तो ऊपरी हिस्से में कुछ पुराने स्ट्रक्चर भी, जहां गौरैया प्रजनन करने में सहज होती है। 

एसएम कॉलेज के संगीत विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुनील कुमार तिवारी ने बताया कि पक्षियों से भी संगीत की उत्पत्ति मानी गई है। गौरैया और कई दूसरी पक्षियों के कलरव में, झरनों के कलकल में और प्रकृति के कण-कण में संगीत व्याप्त है। पक्षियों का अपना स्वर होता है। वे जब एक जगह इकठ्ठी होती हैं तो उनकी सामूहिक खुशी संगीत के रूप बहती है।

पक्षी विषयों के जानकार अरविंद मिश्रा ने बताया कि मैंने जाकर शाम में ही उस जगह पर गौरैया को देखा है। उसकी चीं-चीं की आवाज भी बेहद रोमांचक होती है। वह प्राकृतिक बसावट है गौरैया की। रेलवे बिना उस जगह को छेड़े गार्डेन को घना बनाए।
 
यह भी जानिये
घरेलू गौरैया दुनिया में सबसे ज्यादा इलाकों में पायी जाने वाली जंगली चिड़िया है।
भारत का यह परिंदा अंटार्कटिका के सिवा हर महाद्वीप पर पाया जाता है। 
गौरैया को अक्सर इंसानों की बस्ती के आस-पास देखा गया है।  
इस पक्षी की नस्ल सबसे पहले मध्य-पूर्व में विकसित हुई थी। यहीं से पूरे एशिया और यूरोप में फैल गई।
इस पंछी को ऑस्ट्रेलिया और उत्तरी अमरीका ले जाकर आबाद किया गया।
यूजीन शीफेलिन नाम के एक कलाकार ने अमेरिका में शेक्सपियर के नाटकों के मंचन के दौरान गौरैया को भी किरदार बनाने की कोशिश की थी।   

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