Hindi Newsबिहार न्यूज़भागलपुरAround 93 thousand Kanwariyas went from Sultanganj for baba nagri Deoghar in midst of devotional atmosphere

बोल बम व हर हर महादेव के जयकारे के बीच सुल्तानगंज से 93 हजार कांवरिये देवघर रवाना

श्रावणी मेला क्षेत्र कांवरियों से पट गया है। दिन-रात केसरिया वस्त्र पहने कांवरिया सुल्तानगंज पहुंच रहे हैं। पवित्र उत्तरवाहिनी गंगा में स्नान और पूजा-पाठ के बाद बोल बम के जयकारे लगाते देवघर रवाना हो...

सुल्तानगंज(भागलपुर) ।निज संवाददाता Wed, 24 July 2019 12:58 PM
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श्रावणी मेला क्षेत्र कांवरियों से पट गया है। दिन-रात केसरिया वस्त्र पहने कांवरिया सुल्तानगंज पहुंच रहे हैं। पवित्र उत्तरवाहिनी गंगा में स्नान और पूजा-पाठ के बाद बोल बम के जयकारे लगाते देवघर रवाना हो रहे हैं। कृष्णगढ़ मुख्य नियंत्रण कक्ष के अनुसार मंगलवार को करीब 93 हजार कांवरिया सुल्तानगंज से देवघर रवाना हुए।
 
सुल्तानगंज से कांवरिया पथ से होकर बाबा नगरी जाने वाले कांवरिया बोल बम, हर हर महादेव आदि के जयकारे लगाते चल रहे हैं। उबर-खाबर सड़क पर खाली पैर चल रहे कांवरियों को दर्द की परवाह नहीं है। उन्हें तो बस बाबा का दर्शन करना है। इससे पूरा माहौल भक्तिमय हो गया है। लोगों ने बताया कि सावन में सुल्तानगंज एक ऐसा शहर हो जाता है, जो 24 घंटा खुला रहता है। मेला क्षेत्र सहित आसपास की दुकानें खुली रहती हैं। 

गंगा घाट अब भी खतरनाक 
गंगा नदी का जलस्तर सुल्तानगंज में स्थिर है। फिर भी कांवरियों को सबसे ज्यादा परेशानी घाट पर स्नान करने में हो रही है। कांवरिया शिवाजी सिंह कहते हैं कि गंगा घाट से पांच किलोमीटर दूर ही तिलकपुर में बस रोक दी गयी है। वहां से सामान लेकर आना काफी कष्टदायक है। उसके बाद भी गंगा घाट जाने वाली सड़क कीचड़मय है और घाट पर भी व्यवस्था ठीक नहीं है। ऐसे में श्रद्धालुओं को परेशानी हो रही है। कांवरिया श्रीकांत बम कहते हैं कि गंगा किनारे एवं रास्ते में कड़ी धूप को देखते हुए शेड की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि कांवरियों को राहत मिल सके।


डाकबम -903
पुरुष - 891 
महिला- 12
सामान्य - 91877 
पुरुष - 63565
महिला - 28312


सावन में जल चढ़ाने का अलग महत्व 
अजगैबीनाथ धाम से वर्ष भर कांवरियों का बस से या फिर पैदल जाना जारी रहता है। लेकिन सावन में कांवरियों की संख्या में काफी वृद्धि होती है। कांवरिया आते हैं और गंगाजल कांवर में लेकर अजगैवीनाथ धाम से बाबा धाम रवाना हो जाते हैं। पंडा संजीव झा बताते हैं कि समुद्र मंथन के दौरान निकले हलाहल (जहर) भोलेनाथ ने जगत के उद्धार के लिए अपने कंठ में रख लिया। उस समय से उनका नाम नीलकंठ हुआ। इसलिए सावन मास में जलाभिषेक किया जाता है। उन्होंने उत्तरवाहिनी गंगा का महत्व बताते हुए कहा कि इसका जल विशेष ठंडक प्रदान करता है। यह औषधि युक्त जल है। शास्त्रों के अनुसार जब शरीर रोग से ग्रस्त हो जाये तब जाह्नवी का जल औषधि के समान माना गया है।

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