कैसी-कैसी झेली पीड़ा, क्वारंटाइन से निकला तो सब हो गया ठीक (मनोचिकित्सक से)
चांद प्रखंड का अमरेश बिंद मुंबई में इडली बेचने का कारोबार करता था। उसकी ट्रेन मुगलसराय तक थी। जून का महीना था। मुगलसराय से अपने सात साथियों के साथ धरौली होते हुए अपने गांव आ गया। उसने बताया कि उसके...
चांद प्रखंड का अमरेश बिंद मुंबई में इडली बेचने का कारोबार करता था। उसकी ट्रेन मुगलसराय तक थी। जून का महीना था। मुगलसराय से अपने सात साथियों के साथ धरौली होते हुए अपने गांव आ गया। उसने बताया कि उसके आने पर परिजन खुश हो गए। मैं दोस्तों से मिलने गया। लेकिन, कोई बात करने को तैयार नहीं था। कुछ साथियों ने दूर से ही कहा क्वारंटाइन सेंटर चले जाओ, फिर साथ बैठकर बात करेंगे। जनप्रतिनिधि भी इसी तरह की राय दिए। मेरे गांव लौटने की सूचना प्रशासन तक पहुंच गई। अगले दिन मुझे क्वारंटाइन कर दिया गया। जेब पांच-छह सौ रुपए बचे थे। घर में खर्च के लिए पैसा नहीं था। घर में एटीएम रख दिए थे। लेकिन, किसी को पैसा निकालने नहीं आता था। घर में जरूरी चीजें खत्म हो गई। पैसों की जरूरत पड़ी। पत्नी का फोन आने लगा कैसे खर्च चलाएं। लॉकडाउन में कोई उधार नहीं दे रहा है। कर्ज देने को भी कोई तैयार नहीं है। पांच वर्षीय बेटे को बुखार आ गया। दवा तक के लिए घर में पैसे नहीं थे। क्वारंटाइन सेंटर में कहा तो बोला गया सरकारी अस्पताल में बच्चे को दिखा लो। वहीं दवाएं भी मिल जाएंगी। परिवार से दूर रहने और परिजनों की जरूरतें पूरी करने, बच्चे के स्वस्थ होने, खुद के स्वास्थ्य आदि को लेकर मैं चिंतित हो उठा। जैसे-तैसे 14 दिन बीता और घर लौटा तब सबकुछ धीरे-धीरे ठीक हुआ।
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