कैमूर के पहाड़ व जंगल में है दुर्लभ जड़ी-बूटियों का भंडार (पेज चार)
बीमार होने पर आज भी वनवासी इन जड़ी-बूटी से करते हैं उपचार बीमार होने पर आज भी वनवासी इन जड़ी-बूटी से करते हैं उपचार
बीमार होने पर आज भी वनवासी इन जड़ी-बूटी से करते हैं उपचार पूरा नहीं हुआ जड़ी-बूटी का क्रय केंद्र खोलवाने का आश्वासन कैमूर के जंगल में उपलब्ध जड़ी-बूटियां जड़ी-बूटी रोग में उपयोगी हड़जोर हड्डी टूटने पर गेठी बुखार विजया अपरस अर्जुन हर्ट चिलबिल घाव तेन कटने पर पुंजकी सिर दर्द गोरखमुंडी चेचक उंदर बेल चर्म रोग धामन दस्त अश्वगंधा तनाव गुलबहार त्वचा व मुंहासा सिंहपर्णी महिला स्वास्थ्य गुड़मार शुगर व वजन भभुआ, कार्यालय संवाददाता। कैमूर के जंगल व पहाड़ों में जड़ी-बूटियों का भंडार है। वनवासी आज भी इन जड़ी-बूटियों का उपयोग सामान्य से लेकर असाध्य रोग तक में करते हैं। यहां के गरीब वनवासियों के पास इतने पैसे नहीं होते कि वह बड़ अस्पतालों में अपनी बीमारी का इलाज करा सकें। यहां के जंगलों में गेठी, विजया, अर्जुन, चिलबिल, तेन, पुंजकी, गोरखमुंडी, उंदर बेल, धामन, अश्वगंधा, गुलबहार त्वचा, हर्रे, बहेरा, सिंहपर्णी, गुड़मार, मिमोरा, करमहला का लासा, गुरमार का पत्ता, पताल कोहड़ा सहित सैकड़ों जड़ी-बूटियां जंगलों व पहाड़ के पत्थरों पर पसरी हैं। आयुर्वेदाचार्य अखंडानंद जी बताते हैं कि कैमूर की पहाड़ी पर संजीवनी बूटी हर ओर दिख जाती है। बरसात के दिनों में यह हरी दिखती है। शेष दिनों में सूख जाती है। लेकिन, जैसे ही यह पानी के संपर्क में आती है हरी हो जाती है। यह खांसी, ज्वर, कफ, मधुमेह, प्रमेह, सांस, कमजोरी, पेट दर्द, मूत्र रोग, शुगर, पेट दर्द, रक्तचाप, हृदय रोग सहित महिलाओं की आंतरिक बीमारियों में यह बूटी काम आती है। इसकी बिक्री देश के कई हिस्सों में खूब की जाती है। वनवासी नरेश उरांव व जग्गा खरवार ने बताया कि अधौरा में हर ओर जड़ी-बूटी हैं। तस्कर उनसे सस्ती दर पर खरीदते हैं और बाजार में इसे महंगी दर पर बेचते हैं। चार साल पहले मंत्री मो. जमा खां ने जड़ी-बूटी का क्रय केंद्र खोलवाने की बात कही थी। लेकिन, आज तक नहीं खुली। अब सुन रहे हैं कि यहां की जड़ी-बूटी से दवा तैयार की जाएगी। इससे उन्हें लाभ होगा। रोजगार मिलने की संभावना बनेगी। संजीवनी बूटी अयोध्या, लखनऊ, पटना, ऋषिकेश, कोलकाता, दिल्ली जैसे शहरों में खूब बिकती है। घर पर ही कर लेते हैं उपचार अधौरा प्रखंड के महेश उरांव बताते हैं कि दो साल पहले भैंस चराते समय उनका छोटा बेटा पहाड़ के पत्थर से फिसलकर गिर गया था। उसके हाथ की हड्डी चटक गई थी। हड़जोर को पीसकर पिलाने व लेप लगाने से उसकी हड्डी जुट गई। रामनारायण खरवार ने बताया अर्जुन का छाल हर्ट की बीमारी में बेहतर काम करता है। जब बुखार लगता है तब हमलोग गेठी का उपयोग करते हैं। घाव होने पर चिलबिल के पत्ता को पीसकर लगा लेते हैं। कहीं कट जाने पर तेन के अंदर के गुद्दा को लगाकर ठीक कर लेत हैं। फोटो- 28 अक्टूबर भभुआ- 4 कैप्शन- अधौरा प्रखंड के
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