नट परिवार के घर में चार-पांच दिनों के लिए बच गई है खर्ची (पटना का टास्क/पेज तीन की फ्लायर खबर)
लॉकडाउन के दौरान बेलांव के नट समुदाय के गरीबों को नहीं मिल रहा है काम, दुकान से मिले सरकारी अनाज को 15-20 दिनों में खा जाते हैं परिवार के...
लॉकडाउन के दौरान बेलांव के नट समुदाय के गरीबों को नहीं मिल रहा है काम
दुकान से मिले सरकारी अनाज को 15-20 दिनों में खा जाते हैं परिवार के लोग
ग्राफिक्स
04 परिवार को मिलता है सरकारी राशन
03 परिवार का नहीं बना है राशन कार्ड
रामपुर। एक संवाददाता
बेलांव बाजार से चंद दूरी पर नट समुदाय के लोग निवास करते हैं। उनकी बस्ती में सभी गरीब हैं, जिन्हें दो वक्त की रोटी का प्रबंध करने के लिए जद्दोजहद करना पड़ता है। अभी कोरोना काल चल रहा है और इसमें काम मिलना मुश्किल हो रहा है। क्योंकि खेतीबारी का काम बंद है। भवन निर्माण कार्य भी धीमी गति से चल रहा है। माल ढुलाई का काम भी लगभग बंद है। ऐसे में इस परिवार के समक्ष रोजी-रोटी का सवाल खड़ा हो गया है।
हालांकि सरकारी स्तर पर उन्हें ही खाद्यान्न मिलता है, जिनके पास राशन कार्ड है। लेकिन, इस बस्ती में कई वैसा भी परिवार है जिनके नाम से राशन कार्ड निर्गत नहीं किया गया है। अगर काम मिला और जेब में पैसे आए तो चूल्हे जले, अन्यथा चना-चबेनी फांककर भी रात काट लेते हैं। इनके पास खेती करने के लिए न भूमि है और न कोई बिजनेस। मजदूरी ही आस है। लेकिन, फिलहाल काम भी नहीं मिल रहा है। उक्त बस्ती के लोगों ने कहा खेती के दिनों में वह किसानों के यहां काम करते हैं और अन्य दिनों में कोई ट्रैक्टर चलाता है तो आसपास में भवन निर्माण का काम करता है, जिससे उनके घर का चूल्हा जलता है।
बेलांव की इस बस्ती में कुल सात नट परिवार रहता है, जिसमें चार लोगों को सरकारी अनाज मिलता है। लेकिन, तीन परिवार का राशन कार्ड नहीं बना है। इस वजह से उन्हें सरकारी राशन से भी महरुम रहना पड़ता है। हालांकि जिन्हें सरकारी अनाज मिलता है उससे वह 15 से 20 दिनों तक पेट भरते हैं। शेष दिनों के लिए अनाज का प्रबंध मजदूरी के बल पर करना पड़ता है। उनका कहना है कि पीएम आवास योजना का लाभ मिला है। उज्जवला योजना से गैस कनेक्शन मिला है। लेकिन, इतने पैसे ही नहीं जुट पाते हैं कि वह सिलेंडर में गैस भरवाएं।
चूल्हे भी रह जाएंगे उपवास
विजय नट ने अपने घर का राशन दिखाते हुए कहा कि बस इतना ही चावल बचा है। इससे चार-पांच दिन भोजन पक सकेगा। आटा तो पहले से ही खत्म है। अब सुनने में आ रहा है कि डीलरों की भी हड़ताल हो गयी है। घर का चूल्हा कैसे जलेगा इसकी चिंता लगी है। अप्रैल माह का अनाज मिला था। अगर मई माह का अनाज चार-पांच दिनों में नहीं मिला तो घर का चूल्हा भी उपवास रह जाएंगे।
अपना हाल बयां करते संजय नट, अजय नट, भीम नट, गुड्डू नट, शत्रुध्न नट, अर्जुन नट, शांति देवी, पाना कुंवर, लक्ष्मी देवी, आशा देवी, गुड़िया देवी ने बताया कि कोरोना काल में वह भी लॉकडाउन में परिवार का खर्च चलाना काफी मुश्किल हो गया है। बड़े शहरों में तो कई तरह की व्यवस्थाएं हैं। कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं भी मदद करती हैं। लेकिन, छोटे बाजार और ग्रामीण परिवेश होने की वजह से यहां न तो काम मिल रहा है और ना ही खाने के लिए अनाज। उनसे कोई भी यह पूछने नहीं आता है कि घर में अनाज है या नहीं? तुम्हारे बच्चे कैसे खाएंगे?
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कैप्शन- बेलांव की नट बस्ती में गुरुवार को अपने घर में बचे अनाज को दिखाता विजय नट।
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