मुख्य सड़क के बगल में फेंके जा रहे कचरा से हो रही परेशानी
भभुआ में नगर परिषद द्वारा फेंके गए कचरे के ढेर में ट्यूबलाइट, बल्ब, सीएफएल, खिलौनों की बैट्री, और अन्य खतरनाक सामग्री शामिल हैं। इससे स्थानीय छात्रों और राहगीरों को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का...
ट्यूबलाइट, बल्ब, सीएफएल, खिलौनों की बैट्री, प्लास्टिक, लोहा फेंका दिखे कचरे से निकलनेवाले रसायनिक और खतरनाक पदार्थ से हो सकती है क्षति (बोले भभुआ) भभुआ, कार्यालय संवाददाता। शहर की पश्चिमी सीमा पर चैनपुर-भभुआ पथ के किनारे नगर परिषद द्वारा कचरा फेंका जा रहा है। कचरे से उड़नेवाली धूल व उसकी दुर्गंध से राहगीरों, यात्रियों व कल्याण छात्रावास में रहनेवाले छात्रों को परेशानी हो रही है। गुरुवार की सुबह 9:30 बजे कचरे के ढेर में कुत्तों का झुंड भोजन तलाशते दिखा। जेसीबी से कचरे का बराबर किया जा रहा था व एक कर्मी ठेला से कचरा लाकर इस स्थल पर डंप कर रहा था। कचरा के ढेर में इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों ट्यूबलाइट, बल्ब, सीएफएल, खिलौनों की बैट्री, प्लास्टिक, लोहा जैसी अनपयोगी चीजें फेंकी हुई दिखीं। संतोष कुमार व नरेंद्र कुमार ने बताया कि अधजली सिगरेट व बीड़ी फेंकने से कचरे में आग लग जाती है। उसके धुआं से न सिर्फ छात्रावास में रहनेवाले छात्रों बल्कि इस पथ से आने-जाने वाली यात्रियों, राहगीरों, वाहन चालकों को परेशानी होती है। छात्रों ने बताया कि कचरे में कई प्रकार के विषैले पदार्थ पाए जाते हैं, जो पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। इसे सुरक्षित रखने के लिए एनजीटी द्वारा सेनेटरी लैंडिफिल विकसित करने का आदेश दिया गया है। भूगोल शास्त्र के छात्र अजय कुमार ने बताया कि एक कम्प्यूटर में लगभग 3.8 पौंड शीशा, फासफोरस, केडमियम, मरकरी जैसे घातक तत्त्व होते हैं। इसे कचरा में फेंकने पर जब जलाए जाते हैं, तो वह सीधे वातावरण में घुलते हैं। आधुनिक खिलौनों की बैट्री के घातक रसायन पर्यावरण को प्रदूषित करता है। इलेक्ट्रॉनिक चीजों को बनाने में काम आने वाली सामग्री में ज्यादातर कैडमियम, निकेल, क्रोमियम, एंटीमोनी, आर्सेनिक, बेरिलियम और पारे का इस्तेमाल किया जाता है। यह सभी पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए घातक हैं। क्या कहते हैं जानकार पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले डॉ. विनोद मिश्र बताते हैं कि कचरे का निस्तारण किया जाना जरूरी है। इसका प्रबंधन नहीं किए जाने से स्वास्थ्य और पर्यावरण प्रभावित होते हैं। कचरे में शामिल विषैले तत्त्व घातक हैं। इससे बचाव के लिए सेनेटरी लैंडफिल को जल क्षेत्र व आबादी से दूर विकसित किया जाना चाहिए। कचरे के पुनर्चक्रण के दौरान निकलने वाले घातक पदार्थों में पारे और प्लास्टिक का निस्तारण करना बेहद कठिन होता है। यह है एनजीटी का निर्देश एनजीटी से पारित आदेश का अनुपालन करने के लिए तत्कालीन मुख्य सचिव द्वारा नगर परिषद को सेनेटरी लैंडफिल विकसित करने का निर्देश दिया था। आदेश में कहा गया था कि इस इकाई को स्थापित करने के लिए अगर सरकारी भूमि उपलब्ध नहीं हो पाती है, तो बिहार नगरपालिका अधिनियम 2007 की धारा 99 के तहत भूमि की खरीदारी की जा सकती है। काफी प्रयास के बाद भगवानपुर में भूमि उपलब्ध हुई। जब पिछले माह दिसंबर में वहां इसे विकसित करने व कचरा डंप करने का काम शुरू हुआ तो स्थानीय लोग विरोध करते हुए रोड जाम कर दिए। फोटो- 30 जनवरी भभुआ- 2 कैप्शन- शहर की पश्चिमी सीमा पर सुवरा नदी के पार भभुआ-चैनपुर पथ के किनारे नगर परिषद द्वारा फेंके गए कचरे को गुरुवार को बराबर करता जेसीबी चालक।
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