धान-गेहूं की तरह अधौरा में जड़ी-बूटी क्रय केंद्र खोले सरकार
अधौरा प्रखंड के किसान जड़ी-बूटी की खेती करते हैं, लेकिन उचित मूल्य नहीं मिल पाता। अब वे सरकार से जड़ी-बूटी के लिए क्रय केंद्र खोलने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि इससे उनकी आर्थिक स्थिति सुधरेगी और...

बोले वनवासी, हमारे खेत में जो उपजता है उसका क्रय करने से सुधरेगी माली हालत, चिरौजी तैयार करने की यूनिट खुले सिंचाई का पुख्ता प्रबंध नहीं होने से मारी जाती है खरीफ व रबी फसल कर्ज लेकर करते हैं बेटा-बेटी की शादी और बीमार सदस्यों का इलाज (पेज चार की बॉटम खबर) अधौरा, एक संवाददाता। नक्सल प्रभावित अधौरा प्रखंड के जंगल व पहाड़ी इलाके के किसान धान-गेहूं के अलावा जड़ी-बूटी की भी खेती करते हैं। वह जड़ी-बूटी व अन्य वन संपदा बेचकर अपने परिवार की परवरिश करते हैं। लेकिन, उन्हें उसका उचित मूल्य नहीं मिल पाता है। ऐसे में अब वनवासी धान-गेहूं की तरह जड़ी-बूटी के लिए भी क्रय केंद्र खोलने की मांग सरकार से करने लगे हैं।
उनका कहना है कि यहां सिंचाई के अच्छे साधन नहीं हैं। वर्षा पर निर्भर रहकर वह खेती करते हैं। अगर सरकार जड़ी-बूटी का क्रय केंद्र खोलवा देती तो अच्छा रहता। गम्हरिया के बाबूलाल व ललन खरवार ने बताया कि बड़गांव के भरुआट, लोहरा के रोह, बड़वान के कंजियारी खोह, गुल्लू, पंचमाहुल, आथन, सारोदाग, सड़की, मड़पा, डुमुरका, चाया, चफना आदि गांवों के जंगल व पहाड़ में काफी संख्या में पियार के पेड़ हैं। लेकिन, बारिश के पानी की धार से मिट्टी के कटाव होने से कुछ इलाकों के पियार के पेड़ सूखने लगे हैं। किसानों का कहना है कि अगर सरकार क्रय केंद्र खोलती है, तो काफी किसान अपने खेतों में जड़ी-बूटी की खेती करना शुरू कर देंगे, जिससे वह आर्थिक रूप से समृद्ध हो सकते हैं। जल संरक्षण के लिए काम करने वाले डॉ. वीके मिश्रा कहते हैं कि पहाड़ी क्षेत्र में छोटे-छोटे पोखरा, चेकडैम बनाकर पानी को स्टोर करने का काम किया जा सकता है। इससे सिंचाई, जलस्तर बरकरार रखने, मिट्टी के क्षरण को रोका जा सकता है। उपज बढ़ाने के लिए आमिल्यता को भी दूर करनी होगी। हालांकि यहां के किसान ऊंची भूमि में ज्वार, मड़ुआ, मूंगफली, मकई आदि की खेती करने की दिशा में पहल कर रहे हैं। इसके अलावा सागवान, शीशम, सखुआ, गमहार के पौधे भी अपने खेतों में लगाते हैं। यहां के किसान जलवायु परिवर्तन के कारण प्रभावित हो रहे हैं। अधौरा के जंगल में यह उपजती है जड़ी-बूटी अधौरा के जंगल व किसानों के खेतों में महुआ, पियार, चिरौजी, केंदू पत्ता, तेन, भेला, जौगी, हर्रा, बहेरा, लासा, भेला, संजीवन बूटी आदि जड़ी-बूटियां उपजती हैं। कारोबारी इनके सस्ती दर पर इसकी खरीदारी कर बाजारों में उंचे दामों पर बेचते हैं, जिससे वनवासियों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता है। अगर यहां जड़ी-बूटी क्रय केंद्र खुलेगा तो इसकी कीमत अच्छी मिलेगी, जिससे वह आर्थिक रूप से समृद्ध हो सकते हैं। अगर कोईिकसान व्यापारी से भी इन चीजों की बिक्री करना चाहे, तो क्रय केंद्र खुलने पर वह ज्यादा दाम दे सकते हैं। सिंचाई का प्रबंध किया जाना जरूरी झड़पा के रामेश्वर पासवान, दिनेश पासवान, अधौरा के रामदुलार यादव, शोभनाथ सिंह, बड़गांव में बैजनाथ सिंह, चोरपनिया में विरेंद्र सिंह का कहना है कि अगर सिंचाई का स्थाई प्रबंध हो तो इस पहाड़ी क्षेत्र में भी धान-गेहूं, दलहन व तेलहन की अच्छी खेती हो सकती है। अधौरा प्रखंड के किसान करीब चार हजार हेक्टेयर धान की रोपनी और दो हजार हेक्टेयर में गेहूं की खेती करते हैं। लेकिन, यह तब संभव है जब समय पर बारिश हो और पहाड़ी नदियों एवं चेकडैम व बांध से पानी मिले। जबकि जड़ी-बूटी की खेती कम पानी में भी की जा सकती है। हालांकि कुछ किसान कृषि विज्ञान केंद्र की मदद से धान की सीधी बुआई करते हैं। इसमें पानी की जरूरत कम पड़ती है। कोट मैंने इस संबंध में मुख्यमंत्री जी को आवेदन दिया हूं। छह माह पहले इस मुद्दे पर बात भी हुई है। उन्होंने आश्वासन दिया है कि अधौरा में जड़ी-बूटी क्रय केंद्र खोलने की दिशा में पहल की जाएगी। मो. जमा खां, मंत्री, अल्पसंख्यक कल्याण विभाग फोटो- 02 मई भभुआ- 6 कैप्शन- अधौरा प्रखंड के बड़गांव खुर्द गांव के बधार में लगा महुआ का पेड़। (फोटो सिंगल)
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