फसल अवशेष जलानेवाले 476 किसानों के आईडी लॉक (पेज चार की लीड खबर)
कैमूर जिले में कृषि विभाग ने फसल अवशेष जलाने वाले 476 किसानों के आईडी लॉक कर दिए हैं। ऐसे किसानों को अगले तीन वर्षों तक कृषि योजनाओं का लाभ नहीं मिलेगा। यह कार्रवाई वायु गुणवत्ता बनाए रखने और प्रदूषण...
वायु गुणवत्ता को बनाए रखने, प्रदूषण रोकने एवं मिट्टी की उर्वरा शक्ति को और बेहतर बनाने के लिए की जा रही है कार्रवाई जिले के एक किसान पर सीआरपीसी की धारा 133 के तहत हुई कार्रवाई अब ऐसे किसानों को कृषि विभाग की योजनाओं का नहीं मिलेगा लाभ भभुआ, कार्यालय संवाददाता। फसल अवशेष जलानेवाले कैमूर जिले के 476 किसानों के आईडी लॉक कर दिए गए हैं। पिछले वर्ष 250 किसानों पर ऐसी कार्रवाई की गई थी। अब इन किसानों को अगले तीन वर्षों तक कृषि विभाग की योजनाओं का लाभ नहीं मिल सकेगा। वायु गुणवत्ता को बनाए रखने, प्रदूषण रोकने एवं खेतों की मिट्टी की उर्वरा शक्ति को और बेहतर बनाने के लिए कृषि विभाग द्वारा ऐसी कार्रवाई की जा रही है। हालांकि जिले के एक किसान पर सीआरपीसी की धारा 133 के तहत कार्रवाई की गई है। जिस किसान पर इस धारा के तहत कार्रवाई की गई है, उन्हें एसडीएम कोर्ट का चक्कर लगाना पड़ेगा। जिला कृषि पदाधिकारी ने बताया कि पिछले दिनों जिले की पंचायतों में किसान चौपाल लगाकर कृषि विभाग के अधिकारी व कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक द्वारा किसानों से खेतों में पराली नहीं जलाने की अपील की थी। उन्हें बताया गया था कि ऐसा करने से फसल की उपज बढ़ाने वाले मित्र कीट मर जाते हैं और मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है, जिससे उपज कम होती है। किसानों को यह भी बताया गया था कि पराली जलाने के बाद निकलनेवाले धुआं से पर्यावरण प्रदूषित होता है। इसका सीधा असर मानव, जानवर, पक्षी के जीवन पर पड़ता है। प्रदूषण बढ़ने के कारण ही जलवायु परिवर्तन हो रहा है, जिससे असमय बारिश, मौसम परिवर्तन देर से होने जैसी समस्याएं आ रही हैं। फिर भी जिले के किसान पराली जलाने से बाज नहीं आ रहे हैं। कृषि विभाग के अधिकारी बताते हैं कि पराली जलानेवाले किसान कार्रवाई से बच नहीं सकते हैं। उनकी पहचान सेटेलाइट के माध्यम से भी की जा रही है। इलाके में कृषि सलाहकार, कृषि समन्वयक, प्रखंड कृषि पदाधिकारी भी भ्रमण कर ऐसे किसानों को चिन्हित करने का काम कर रहे हैं। सिर्फ खरीफ ही नहीं, रबी फसल की कटनी करने के बाद भी जिले के किसान फसल अवशेष को खेतों में जलाते रहे हैं। ऐसे कई किसानों पर विभाग की ओर से कार्रवाई की जा चुकी है। पहले की अपेक्षा प्रदूषण का दबाव बढ़ा पहले की अपेक्षा कैमूर में प्रदूषण का दबाव बढ़ा है। वर्ष 2023 के नवंबर माह में जिले का एक्यूआई 133 था। 21 दिसंबर 2024 को एक्यूआई 175 है, जिसे सामान्य माना जाता है। इस तरह कैमूर के वायु गुणवत्ता सूचकांक में 42 की वृद्धि हुई है। फिर भी यह तीन सिगरेट पीने के बराबर है। जिले में पीएम 2.5 वायु गुणवत्ता पूर्वानुमान 80 यूजी/एम 3 है। हालांकि कैमूर में वायु गुणवत्ता माप करने का यंत्र नहीं लगा है। सड़कों पर वाहनों की संख्या बढ़ने, जेनरेटर का उपयोग करने, निर्माण कार्य में सावधानी नहीं बरतने, गंदगी लगने, पराली व कचरा जलाने आदि से प्रदूषण बढ़ रहा है। क्या कहते हैं भूगोल शास्त्री भूगोल शास्त्र के प्राध्यापक सोनू सिन्हा कहते हैं कि हवा को प्रदूषित बनाने में ओजोन का अहम रोल है। वाहन, बिजली संयंत्र, औद्योगिक बॉयलर, रिफाइनरियां, रासायनिक संयंत्रों और अन्य स्रोतों से उत्सर्जित होकर सूर्य के प्रकाश से प्रतिक्रिया करता है और हवा को प्रदूषित बना देता है। इस वजह से सांस लेने में कठिनाई होती है। अस्थमा के मरीज, बच्चे और बुजुर्ग के साथ बाहर काम करने वालों के लिए यह खतरनाक होता है। क्या कहते हैं कृषि वैज्ञानिक कृषि वैज्ञानिक डॉ. अमित बताते हैं कि कैमूर में धान की कटनी लगभग पूरी हो गई है। जिन किसानों के खेतों में कृषि अवशेष रह जाते हैं, उन्हें उसे भूलकर भी नहीं जलाना चाहिए। पराली जलाने से वायु प्रदूषण बढ़ने, उपज कम होने, मिट्टी की उर्वरा शक्ति का हा्रस होने का खतरा ज्यादा रहता है। किसानों को चाहिए कि जब खेतों में डंठल हो, तो वह उसकी जुताई कर उसमें पानी भर दें। कुछ दिनों में वह सड़-गलकर खाद बन जाएगा। इससे खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी और वायु प्रदूषण का खतरा भी नहीं रहेगा। क्या कहते हैं चिकित्सक सदर अस्पताल के उपाधीक्ष डॉ. विनोद कुमार सिंह ने बताया कि हवा में प्रदूषण की मात्रा बढ़ने से श्वसन तंत्र प्रभावित होता है। आंखों में खुजली और जलन, नाक में सूखापन और खुजली, गले में खराश, खांसी, दमा या सांस लेने में परेशानी, टीबी, क्रोनिक ब्रोन्काइटिस, फेफड़े के ऊतकों को नुकसान, किडनी के डैमेज का खतरा, लिवर के टिश्यू को नुकसान, कार्डियोवस्कुलर डिजीज और यहां तक की कैंसर का खतरा हो सकता है। प्रदूषण का खतरनाक स्तर नाक, कान के जरिए हमारे ब्लड तक पहुंचता है। यह फेफड़े, हार्ट और सांस के लिए खतरनाक है। कोट खेतों में फसल का अवशेष जलाने वाले 476 किसानों का निबंधन बंद किया गया है। एक किसान पर सीआरपीसी की धारा 133 के तहत कार्रवाई की गई है। पिछले वर्ष भी 250 किसानों का निबंधन रद्द हुआ था। इन्हें तीन वर्षों तक कृषि योजनाओं का लाभ नहीं मिल सकेगा। रेवती रमण, जिला कृषि पदाधिकारी फोटो- 21 दिसंबर भभुआ- 1 कैप्शन- रामपुर प्रखंड के पसाईं गांव के बधार स्थित खेत में शुक्रवार की रात जलाई जा रही पराली।
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