देवोत्थान एकादशी का व्रत रख श्रद्धालुओं ने की पूजा-अर्चना (पेज चार की फ्लायर खबर)
कार्तिक मास की देवोत्थान एकादशी पर श्रद्धालुओं ने भगवान विष्णु की पूजा की और सरोवरों में स्नान किया। इस दिन विवाह के आयोजन शुरू हुए और भक्तों ने तुलसी के साथ भगवान शालीग्राम का विवाह कराया। दीप जलाकर...
दीप प्रज्जवलित कर चार महीने से क्षीर सागर में शमन कर रहे भगवान विष्णु को जगाया भक्तों ने सरोवरों में लगाई डुबकी, प्रभु शालीग्राम और माता तुलसी का विवाह कार्यक्रम भभुआ, कार्यालय संवाददाता। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की देवोत्थान (देवउठनी) एकादशी पर श्रद्धालुओं ने मंगलवार उपवास रख भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना कर कथा का श्रवण किया। सुबह में श्रद्धालुओं ने सरोवरों में डुबकी लगाई। मंदिरों में संगीतमय कीर्तन का आयोजन किया गया। भक्तों ने दीप प्रज्जवलित कर चार महीने से क्षीर सागर में शमन कर रहे भगवान विष्णु को भक्तों ने लोक कल्याण के लिए जगाया। देवोत्थान एकादशी पर सुअरा नदी, कर्मनाशा नदी, दुर्गावती नदी, पोखरा, तालाब आदि सरोवरों में स्नान करने के लिए महिला-पुरुष भक्तों की भीड़ लगी थी। देवोत्थान एकादशी के साथ ही शुभ कार्य शुरू कर दिए गए। कई घरों में विवाह के मंडप सजाए गए। शहनाइयां बजनी शुरू हो गई। मंदिर, ठाकुरबाड़ी, सरोवरों के घाट पर पहुंचे भक्तों में गजब की श्रद्धा दिखी। दीप मालाओं की लरियां सरोवरों में इतरा रही थीं। देवोत्थान एकादशी पर भक्तों ने तुलसी का पत्ता तोड़ने से परहेज किया। बच्चों को भी मना किया गया था। जो उपवास नहीं थे, वह सात्विक भोजन किए। चावल खाने से भी परहेज किए। पूजा-अर्चना के बाद भक्तों ने दान-पुण्य किया। विवाह संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिए केसर, केला, हल्दी का दान किया गया। भक्तों ने उपवास रख धन, मान-सम्मान और संतान सुख की प्राप्ति के लिए प्रार्थना की। भगवान विष्णु के जागने के साथ ही मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो गई। अब हर तरफ शहनाई की गूंज सुनाई देगी। शुभ कार्य में जुटे लोग महीनों से देवोत्थान एकादशी का इंतजार करने वाले लोग शादी-विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत, नामकरण, अन्नप्राशन, विवाह के अलावा नए प्रतिष्ठानों के शुभारंभ में जुट गए। भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि से शयन पर चले गए थे। इस कारण मांगलिक कार्य बंद थे। तुलसी पूजा सबसे अहम बात है कि इसी दिन भगवान शालीग्राम के साथ तुलसी मां का आध्यात्मिक विवाह भी कराया गया। लोग अपने घरों और मंदिरों में विवाह समारोह आयोजित किए गए। इस दिन तुलसी की पूजा का महत्व है। भोज दिया गया। शालीग्राम और तुलसी की पूजा से पितृदोष का शमन होता है। फोटो- 12 नवंबर भभुआ-04 कैप्शन- देवोत्थान एकादशी को लेकर मंगलवार को
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