छठी मइया व्रतियों व परिजनों के जीवन में ला देती हैं बदलाव (छठ/बॉटम की खबर)
छठ पूजा एक ऐसा त्योहार है जो न केवल नि:संतान महिलाओं को संतान देता है बल्कि बेरोजगारों को भी रोजगार के अवसर प्रदान करता है। व्रतियों का अनुभव बताता है कि यह पर्व जीवन में अनुशासन, सादगी और प्रकृति के...
नि:संतानों की जहां गोद भर देती हैं, वहीं बेरोजगारों को देती हैं रोजगार जिले में वर्षों से व्रत करनेवालों ने ‘हिन्दुस्तान संग बांटा अपना अनुभव भभुआ, कार्यालय संवाददाता। छठी मइया व्रतियों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं। कहते हैं सच्चे मन से आराधना करने वालों की मुराद पूर्ण करती हैं। यह एक ऐसा पर्व है, जिसमें हर एक उपयोगी चीज प्रकृतियुक्त होती है। कहते हैं कि छठ पूजा करने से हमारी नि:संतान बहू, बेटियों व बहनों को संतान की प्राप्ति होती है। छठ पूजा एक मात्र, ऐसी पूजा और त्योहार है जो पूरी तरह से प्रकृति को समर्पित है। रोगी निरोग की कामना के साथ व्रत करते हैं, तो अन्य लोग विभिन्न तरह की जरूरतें पूरी करने की प्रार्थना करते हैं। वर्षों से व्रत करनेवाले व्रतियों से छठ के अनुभव, समर्पण, बदलाव, मनोबल, सादगी आदि बिंदुओं पर बातचीत की गई। शहर के वार्ड 12 की सुमन देवी ने कहा कि व्रत के दौरान भूख-प्यास, थकान महसूस नहीं होता। गजब की ऊर्जा मिलती है। उन्होंने छठी मइया व सूर्यदेव से जो मांगा वह पूरा हुआ। व्रत के प्रति न सिर्फ व्रतियों बल्कि अन्य लोगों में भी समर्पण की भावना दिखती है। कौशल्या देवी बताती हैं कि वह 25-26 साल से छठ व्रत करती आ रही हैं। वर्ष 1995 में उन्होंने औरंगाबाद के देव से छठ व्रत तब शुरू किया था, जब छठी मां ने शादी के कई वर्षों बाद उनकी सूनी गोद को हरी की थीं। बेटा जन्म लेने के बाद देव में घाट तक सष्टांग दंडवत करते गईं और लौटीं भी। तब से लगातार छठ व्रत करती आ रही हूं। वृद्धों को सम्मान करना सिखाता है छठ कौशलेंद्र पांडेय कहते हैं वेद पुराणों में संध्याकालीन अर्घ्य को संभवत: इसलिए प्रमुखता दी गयी है, ताकि संसार को यह ज्ञात हो सके कि जब तक हम डूबते सूर्य अर्थात बुजुर्गों को आदर सम्मान नहीं देंगे, तब तक उगता सूर्य यानी नई पीढ़ी उन्नत और खुशहाल नहीं होगी। संस्कारों का बीज बुजुर्गों से ही प्राप्त होता है। बुजुर्ग जीवन के अनुभव रूपी ज्ञान के कारण वेद पुराणों के समान आदर के पात्र होते हैं। यही शाम के अर्घ्य का तात्पर्य है। अध्यात्मिकता के ज्यादा करीब हो जाते हैं व्रती अयोध्या पाठक का कहना है कि पूरे चार दिनों तक पूरी आस्था और विश्वास के साथ छठ करते हैं। अक्सर छठ व्रत के दौरान घरेलू काम भी पूरी जिम्मेदारी के साथ ही करते हैं। छठ हमें जीवन में अनुशासन सिखाता है। चारों ओर पॉजिटिव ऊर्जा महसूस होती है। प्रकृति के प्रति लगाव का अहसास होता है। व्रती अध्यात्मिकता के ज्यादा करीब हो जाते हैं। हर ओर स्वच्छता, पवित्रता और परस्पर सहयोग की भावना होती है। परिजन व पड़ोसियों से बढ़ता है मनोबल उदय सिंह ने बताया कि परिजन, नाते-रिश्तेदार, पड़ोसी, समाजसेवी व्रत के दौरान सहयोग कर व्रतियों का मनोबल बढ़ाते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि जल में खड़े होकर आराधना करने के दौरान सूर्य की सीधी रोशनी मिलने से भी ऊर्जा प्राप्त होती है। सूर्य देवता सृष्टि के महत्वपूर्ण आधार हैं। सूर्य की किरणों को आत्मसात करने से शरीर और मन स्फूर्तिवान होता है। नियमित सूर्य को अर्घ्य देने से हमारी नेतृत्व क्षमता में वृद्धि होती है। बल, तेज, पराक्रम, यश एवं उत्साह बढ़ता है, जिससे व्रतियों का विकास होता है। सादगी जीवन का राह दिखाता है व्रत रामेश्वर प्रसाद सिंह कहते हैं कि छठ व्रत सादगी जीवन जीने की राह दिखाता है। व्रत के दौरान मन, जुबान, रहन-सहन, खान-पान सबकुछ को नियंत्रित करना होता है। इंद्रियों को संयमित करना होता है। बिस्तर व कपड़े तक अलग व शुद्ध रहते हैं। इससे बेटा-बेटी, परिवार की सुख, समृद्धि, शांति मिलती है। उपासना से तन-मन के साथ ही घरों का वातावरण भी शुद्ध हो जाता है। शुद्धिकरण के बाद ही विधि-विधान से घरों में छठ मैया का आह्वान किया जाता है। दंडवत करते हुए घाट तक जाना भी तप है।
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