स्वच्छता व प्रकृति को संरक्षित करने का मिलता है छठ पर्व (पेज चार की खबर)
छठ पर्व बिना भेदभाव के समाज के हर वर्ग की सक्रियता को दर्शाता है। यह पर्व सूर्य, उषा और प्रत्युषा की पूजा के साथ-साथ प्रकृति के संरक्षण का संदेश देता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी यह पर्व स्वास्थ्य के...
बिना किसी भेदभाव के समाज के हर वर्ग की दिख रही है सक्रियता धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक महत्व का है पर्व, उपासना से मिलती है शक्ति भभुआ, कार्यालय संवाददाता। भगवान सूर्य की शक्तियों का मुख्य स्रोत उनकी पत्नी उषा और प्रत्युषा हैं। यह एक ऐसा पर्व है, जिसमें बिना किसी भेदभाव के समाज के हर वर्ग की सक्रियता दिख रही है। यह पर्व सबको एक साथ पिरोने का कार्य करता है। व्रतियों के घरों में मिट्टी के चूल्हे पर ही प्रसाद तैयार होते हैं और एक घाट पर अमीर-गरीब अर्घ्य देते हैं। इस पूजा में किसी धार्मिक विशेषज्ञ की जरूरत नहीं पड़ती। यह धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक महत्व का भी पर्व है, जो स्वच्छता के साथ प्रकृति को संरक्षित करने का संदेश देता है। यह जानकारी भभुआ शहर के ज्योतिषाचार्य पंडित अत्रि भारद्वाज ने दी। उन्होंने बताया कि छठ एक ऐसा महापर्व है जिसका प्रकृति, सामाजिक समरसता व स्वास्थ्य से जुड़ाव है। छठ पर्व के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि यह विशुद्ध रूप से व्यक्ति का प्रकृति से जुड़ाव का पर्व है। सूर्य उपासना से जुड़े अनेक पर्व देश में मनाए जाते हैं, लेकिन छठ सबसे लोकप्रिय पर्व है। छठ में सूर्य के साथ-साथ उनकी पत्नी उषा व प्रत्युषा की शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि कमर तक पानी में रहकर सूर्य की ओर देखना स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। इससे टॉक्सिफिकेशन की प्रक्रिया होती है। इससे सूर्य की किरणों में 16 कलाएं होती हैं। मसलन रिफ्लेक्शन, रिफ्रेक्शन, डेविस्मन, स्कैटरिंग, डिस्पर्शन, वाइब्रेशन इत्यादि। लोटे से आड़े तिरछे जल की धारा से सूर्य की किरणें परिवर्तित होकर जितनी बार आंखों तक पहुंचती हैं, उससे स्नायुतंत्र जो शरीर को कंट्रोल करते हैं, सक्रिय हो जाता है। दिमाग की कार्य क्षमता बढ़ जाती है। इस पूजा के प्रभाव से चर्म रोग ठीक हो जाते हैं। भविष्य एवं मार्कण्डेय पुराण में भी ऐसा वर्णन है। सूर्य की किरणों से मिलता है विटामिन डी प्रकृति के संरक्षण के साथ-साथ पर्व के दौरान सूर्य की किरणों से हमारे शरीर को प्रचुर विटामिन डी मिलता है। गाय की घी का दीप पूरी रात जलाने से वातावरण शुद्ध होता है और हवन से जीवाणुओं का नाश होता है। इस पर्व की प्राचीनतम का साहित्यिक स्रोत जहां रामायण और महाभारत के किवदंतियों में मिलता है, वहीं पुरातात्विक साक्ष्य के रुप में कुषाण वंश के सिक्कों पर सूर्य उपासना के साक्ष्य प्राप्त होते हैं। अदरक, मूली, गाजर, हल्दी जैसी गुणकारी सब्जियों से अर्घ्य दिया जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। स्वच्छता हमें बीमारियों से बचाता है।
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