अधौरा के दर्जनों गांवों की गर्भवती दो माह पहले छोड़ देती हैं घर
उत्तर प्रदेश के अधौरा प्रखंड में गर्भवती महिलाओं को स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। गांवों की दूरी, खराब सड़कों और आवागमन की सुविधाओं के अभाव के कारण महिलाएं प्रसव के...

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से गांव की दूरी ज्यादा होने, आवागमन की अच्छी सुविधा नहीं रहने और खराब सड़कें हैं वजह पहाड़ की घाटी की चढ़ व उतरकर आने-जाने में गिरने का बना रहता है डर यूपी के राबर्टसगंज, खलियारी, भभुआ, भगवानपुर व अधौरा में लेती हैं शरण (सर के ध्यानार्थ) उमाशंकर सिंह अधौरा, एक संवाददाता। जंगल व पहाड़ से घिरा अधौरा प्रखंड नक्सल प्रभावित है। वन क्षेत्र होने की वजह से अधिकतर गांवों में जाने के लिए पक्की सड़क नहीं है। वन विभाग ने मिट्टी मोरम की सड़क बनाई है। लेकिन, बरसात में पानी की धार से सड़क में गड्ढे बन जाते हैं। तब काफी दिनों बाद इसकी मरम्मत हो पाती है। कई गांव ऐसे हैं, जहां के लोगों को घाटी उतर व चढ़कर आना-जाना पड़ता है। जब अस्पताल से गांव की दूरी 20-30 किमी. हो तो जाहिर है प्रसव पीड़ा के दौरान उन्हें पीएचसी में समय पर पहुंचाना आसान नहीं होगा। यही कारण है कि जच्चा-बच्चा का जीवन बचाने के लिए अभिभावक घर की गर्भवती महिलाओं को दो माह पहले किसी रिश्तेदार के घर पहुंचा देते हैं या किराए के कमरे में रखते हैं। ग्रामीण यशवंत सिंह बताते हैं कि अधौरा का क्षेत्रफल काफी लंबा-चौड़ा है। गर्भवती महिलाओं का प्रसव उत्तर प्रदेश के राबर्टसगंज व खलियारी के अलावा भगवानपुर एवं भभुआ के अस्पतालों में होता है। अस्पताल के आसपास रहने वाले रिश्तेदार के घर गर्भवती को पहुंचा देते हैं। गर्भवती के साथ घर की एक महिला भी रहती हैं। जिन महिलाओं के रिश्तेदार अस्पताल के आसपास में नहीं रहते हैं, उन्हें किराए का कमरा लेकर रहना पड़ता है। अगर गर्मी के मौसम में प्रसव होना होता है, तब महिलाओं की परेशानी ज्यादा बढ़ जाती है। क्योंकि पहाड़ी क्षेत्र में गर्मी में जल संकट उत्पन्न हो जाता है। इस दौरान पशुपालक भी मैदानी भाग की ओर चले जाते हैं। तब गांव में पुरुष सदस्यों की संख्या कम हो जाती है। ऐसे में गर्भवती को अस्पताल पहुंचाना और मुश्किल होता है। इन गांवों की गर्भवती छोड़ देती हैं घर-परिवार अधौरा प्रखंड के बड़गांव खुर्द, बड़गांव कला, कदहर, बड़ाप, पिपरा, टोड़ी, बानोदाग, श्रवणदाग, सारोदाग, आथन, दुग्घा, लोहरा, पंचमाहुल, चटहास, बड़वान कला, बड़वान खुर्द, विनोबानगर, करर, कतरोर, मुड़ेहरा, गुदरी, जमुनीनार, दहार, सिकरी, सिकरवार, कोल्हुआ, दीघार, डुमनकोन, बघौता, कान्हानार, कुरुआसोत, पिपरा, पिपरी आदि गांवों की गर्भवती महिलाएं प्रसव होने से दो माह पहले घर-परिवार छोड़कर रिश्तेदार के घर या किराए के कमरे में रहने चली जाती हैं। केस 1 बड़गांव खुर्द के सदन यादव की बेटी निशा देवी प्रसव फरवरी माह में हुआ था। इनके गांव से अधौरा पीएचसी की दूरी 16 किमी. है। गांव से निकलने पर मिट्टी मोरम की चार किमी. सड़क खराब है। इसलिए वह रिश्तेदार के घर अधौरा में बेटी को रखकर पीएचसी में प्रसव कराया। केस 2 खामकला के रामएकबाल की पत्नी का प्रसव पिछले माह अधौरा पीएचसी में हुआ। गांव से पीएचसी की दूरी 20 किमी. है। खामकला से मुख्य सड़क तक आने में छह किमी. मिट्टी मोरम की बनी सड़क खराब हो गई है। परेशानी से बचने के लिए पत्नी को अधौरा में रख प्रसव करवाया। केस 3 कदहर से अधौरा की दूरी 30 किमी. है। चार किमी. घाटी की चढ़ाई कर पैदल चलने के बाद सड़क मिलती है। प्रसव होने से तीन माह पहले कदहर के चेखुर खरवार ने अपनी बहू को अधौरा लाकर रख दिया। डेढ़ माह पहले प्रसव हुआ। 20 दिन पहले उसे अपने गांव लेकर गए। केस 4 बड़वान कला गांव पहाड़ पर बसा है। वहां के लो चार किमी. घाटी उतरकर ही कहीं आ-जा सकते हैं। बालेश्वर सिंह की पत्नी का प्रसव भभुआ के सदर अस्पताल में दो माह पहले हुआ। घाटी उतरने में गिरने का भय बना रहता है। वह भभुआ में बहू को रख कर उसका प्रसव करवाए। केस 5 बंधा गांव अधौरा से 25 किमी. की दूरी पर है। इसमें 10 किमी. मिट्टी मोरम की सड़क है। बिफन अगरिया की बहू गर्भवती हुई तो परिजनों की चिंता बढ़ी। डेढ़ माह पहले उसे अधौरा लेकर पहुंचे। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में 15 दिन पहले प्रसव हुआ। चार-पांच दिनों में वह गांव लौटेगी। फोटो- 05 मार्च भभुआ- 4 कैप्शन- अधौरा के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में बुधवार को प्रसव के लिए झड़पा गांव से आई गर्भवती करिश्मा देवी।
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