पहाड़ी क्षेत्र के सुदूरवर्ती गांवों में नहीं पहुंच पाती हैं एम्बुलेंस
कैमूर के कई प्रखंडों में मरीजों को अस्पताल लाने के लिए एंबुलेंस नहीं पहुंच पाती है। पहाड़ी और जंगली क्षेत्रों के गांवों में स्वास्थ्य सेवाएं और सड़क सुविधा की कमी है। मरीजों को निजी वाहनों से अस्पताल...

मिट्टी मोरम की उबड़-खाबड़ सड़क से गांवों में जाकर मरीजों को अस्पताल लाने में चालकों को होती है दिक्कत गंभीर स्थिति में परिजन मरीजों को निजी व भाड़े के वाहनों से ले जाते हैं पीएचसी समय पर गर्भवती या गंभीर मरीजों को अस्पताल नहीं पहुंचाने पर होती है परेशानी भभुआ, हिन्दुस्तान प्रतिनिधि। कैमूर के कई ऐसे प्रखंड हैं, जहां के गांवों से मरीजों को अस्पताल तक लाने के लिए एंबुलेंस नहीं पहुंच पाती है। ऐसे गांवों में ज्यादातर पहाड़ी व जंगली क्षेत्रों में हैं। हालांकि मैदानी क्षेत्र के भी सुदूरवर्ती गांवों में एंबुलेंस नहीं पहुंच पाती है। ऐसी स्थिति में मरीजों को उनके परिजन खुद की सुविधा से अथवा भाड़े के वाहन से लेकर अस्पताल में पहुंचते हैं।
प्रसव पीड़ा से कराह रहीं महिलाओं व हादसे में गंभीर रूप से घायल मरीजों को ज्यादा परेशानी होती है। सरकार ने हाल के दिनों में स्वास्थ्य सेवाओं के साथ एंबुलेंस सेवा को दुरूस्त किया है। कैमूर में सरकार ने पर्याप्त एंबुलेंस उपलब्ध कराई है। लेकिन, खासकर पहाड़ी व जंगली इलाकों के गांवों तक एंबुलेंस की सुविधा नहीं मिल पाती है। अगर कोई महिला प्रसव पीड़ा से पीड़ित है, तो उसे गांव से मुख्य सड़क तक लाना पड़ता है। सड़क पर जब कोई वाहन मिलते हैं, तब उसे अस्पताल लेकर परिजन पहुंचते हैं। इस बीच अगर मरीज की परेशानी बढ़ती है तो उसका स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। जिले के अधौरा, रामपुर, भगवानपुर, चैनपुर प्रखंड के कई गांव पहाड़ व जंगल से घिरे हैं। अधौरा के अधिकांश गांवों में मोबाइल व सड़क की सुविधा नहीं है, जिससे मरीज के परिजन एंबुलेंस सेवा के लिए 102 नंबर पर डायल नहीं कर पाते हैं। अधिकतर गांवों में न तो स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हैं और ना ही गांव तक जाने के लिए अच्दी सड़क की सुविधा है। मैदानी भाग के गांवों की बात करें तो सूचना मिलने के काफी देर बाद रिस्पांस लिया जाता है। प्रखंडों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से ज्यादा दूरी पर गांव होने की वजह से एंबुलेंस समय पर नहीं पहुंच पाती हैं। ऐसे में मरीजों को अस्पताल पहुंचाने तक उनकी जिंदगी सांसत में पड़ी रहती है। सरकारी प्रावधान के तहत सूचना मिलने पर एम्बुलेंस चालक को उक्त गांव में पहुंचकर मरीज को उपचार के लिए सरकारी अस्पताल में पहुंचाना है। लेकिन ऐसा नहीं हो पाता है। जिले के भगवानपुर प्रखंड के दुबौली गांव के सीताराम दुबे उर्फ पंडित का कहना है कि गांव में किसी भी व्यक्ति की तबीयत खराब होने पर जब 102 नंबर पर कॉल की जाती है, तब कहा जाता है कि अगर रास्ता है तो एम्बुलेंस जाएगी। लेकिन, रास्ता रहने के बाद भी मरीज को अस्पताल पहुंचाने के लिए एंबुलेंस नहीं पहुंच पाती है। थक-हारकर मरीज को अपने नीजी साधन से नजदीकी अस्पताल में पहुंचाना पड़ता है। कोई ऑटो से तो कोई ठेला से मरीजों को अस्पताल ले जाता है। इन गांवों में नहीं पहुंच पाती है एंबुलेंस नक्सल प्रभावित अधौरा प्रखंड के कदहर, तूरीदाग, बड़वान कला, बड़वान खुर्द, हरभोग, डुमुरका आदि गांवों में एंबुलेंस नहीं पहुंच पाती है। क्योंकि इन गांवों में जाने के लिए सड़क नहीं है। बड़वान के मरीजों को आठ किमी. खाट पर लादकर मूरतिया मोड़ पर लाना पड़ता है। वहां से जब कोई वाहन मिलता है, तब मरीज को अस्पताल पहुंचाते हैं। कदहर, बड़वान कला, बड़वान खुर्द, हरभोग, डुमुरका की दूरी पीएचसी से 25-30 किमी. है। हालांकि तूरीदाग की दूरी 5-6 किमी. ही है। प्रसव पीड़ा से परेशान महिलाओं को हुई थी दिक्कत कदहर के बिगाऊ सिंह यादव ने बताया कि अप्रैल माह में उनके गांव की महिला का प्रसव होना था। वह प्रसव पीड़ा से परेशान थी। लेकिन, मोबाइल सेवा के अभाव में परिजन 102 नंबर की एंबुलेंस सेवा के लिए फोन नहीं कर सके। मजबूरी में गांव से उसे सड़क तक लाना पड़ा। इसके बाद पीएचसी ले जाया गया। बड़वान कला के रमेश राम ने बताया कि पिछले माह एक महिला का प्रसव होना था। छह किमी. पहाड़ की घाटी उतरकर जैतपुर पहुंचा। वहां से बस से महिला को लेकर भभुआ गए, जहां प्रसव हुआ। कोई इनसे जाने क्या होती है परेशानी सलेया के लल्लू सिंह, दहार के रामजी सिंह, मुकेश कुमार, आथन के महेंद्र सिंह, दुग्घा के संजय उरांव ने बताया कि गांव में सड़क की सुविधा है। लेकिन, किसी की तबीयत खराब होने पर मरीज या गर्भवती महिलाओं को अस्पताल ले जाना मुश्किल होता है। वह यूपी के टावर क्षेत्र में जाकर एंबुलेंस के लिए 102 नंबर पर फोन करते हैं। लेकिन, नाम-पता नोट करने के बाद भी एंबुलेंस नहीं आ पाती है। फिर मरीज को बड़ी दिक्कत से अस्पताल पहुंचा पाते हैं। हालांकि अधौरा क्षेत्र में पहले की अपेक्षा नेटवर्क सुविधा में सुधार हुई है। लेकिन, कभी-कभी यह सुविधा भी नहीं मिल पाती है। एंबुलेंस में यह सुविधाएं होनी चाहिए - ऑटोमेटिक स्ट्रेचर, जीवन रक्षक दवाएं, ब्लड प्रेशर इक्विपमेंट, स्टेथेस्कोप, ऑक्सीजन सिलेंडर, फर्स्ट एड बॉक्स जैसे बेसिक लाइफ सपोर्ट सिस्टम। - अधिकांश मामलों में मरीजों तक एंबुलेंस को पहुंचने में 30 मिनट लगते हैं। जबकि यह समय अधिकतम 10 मिनट होना चाहिए। - एंबुलेंस उपलब्ध कराकर गंभीर मरीजों की जान बचाई जा सकती है। कोट जिले में उपलब्ध 35 एंबुलेंस चालकों को सूचना मिलने पर गांवों में पहुंचकर मरीजों को अस्पताल लाने का निर्देश दिया गया है। अगर वह ऐसा नहीं करते हैं या शिकायत मिलने पर कार्रवाई की जाएगी। डॉ. चंदेश्वरी रजक , सिविल सर्जन,कैमूर फोटो- 12 मई भभुआ- 7 कैप्शन- सदर अस्पताल परिसर में मंगलवार को खड़ी एंबुलेंस। (सिंगल फोटो)
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