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तेघड़ा व्यवहार न्यायालय में संसाधनों की कमी से फजीहत

लीड ::::::::::नहीं हो सका अपना भवन संसाधनों के अभाव में सुनवाई के दौरान अधिवक्ताओं को घंटों रहना पड़ता है खड़ा फोटो नं. 11, तेघड़ा अनुमंडल कार्यालय परिसर में बनाया गया व्यवहार न्यायालय। तेघड़ा,...

Newswrap हिन्दुस्तान, बेगुसरायThu, 13 Feb 2025 07:55 PM
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तेघड़ा व्यवहार न्यायालय में संसाधनों की कमी से फजीहत

तेघड़ा, निज प्रतिनिधि। निचली अदालतों की स्थापना इसलिए की गई थी कि छोटे-मोटे विवादों को स्थानीय स्तर पर फैसला हो सके। इससे स्थानीय लोगों को न्याय मिलना सुलभ हो सकेगा लेकिन संसाधनों की कमी के चलते यह उद्देश्य समुचित रूप से पूरा नहीं हो पा रहा है। तेघड़ा में व्यवहार न्यायालय की स्थापना के बाद अनुमंडल के लोगों में उम्मीद जगी थी कि अब उन्हें किसी तरह का विवाद को सुलझाने एवं न्याय पाने के लिए दूर नहीं जाना पड़ेगा। उन्हें तेघड़ा में ही सभी तरह के न्याय मिल जाएंगे। लेकिन, अब तक व्यवहार न्यायालय में बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही हैं। इससे वादियों की कौन कहे, अधिवक्ताओं और न्यायिक अधिकारियों को भी कई तरह की परेशानियों से जूझना पड़ रहा है। वर्ष 2016 में तेघड़ा अनुमंडल कार्यालय परिसर में ही व्यवहार न्यायालय की स्थापना की गई। उसके बाद से आज तक व्यवहार न्यायालय को अपना भवन नसीब नहीं हो सका है। इस वजह से आज भी अनुमंडल कार्यालय के भवन में ही व्यवहार न्यायालय का काम संचालित किया जा रहा है। बताया जाता है कि बिहार में सबसे अधिक लंबित मामलों की नजर से तेघड़ा व्यवहार न्यायालय दूसरे नंबर पर है। भवन के अभाव में मामलों से संबंधित रिकॉर्ड को रखने तक की व्यवस्था नहीं है। छोटे से कमरे में जैसे-तैसे रखे रिकॉर्ड के नष्ट होने की हरदम आशंका बनी रहती है। न्यायिक अधिकारियों के रहने के लिए सरकारी स्तर से आवास की सुविधा भी अब तक उपलब्ध नहीं हो सकी है। प्रतिदिन उन्हें बेगूसराय या अन्य स्थलों से तेघड़ा आना पड़ता है। वहीं, अधिवक्ताओं ने का कहना है कि न्यायिक अधिकारियों की कमी के कारण वादियों को सुनवाई के लिए दो से तीन माह का वक्त लिया जाता है। इससे मामलों के निष्पादन में वर्षों लग जाते हैं। अधिवक्ताओं ने बताया कि कैदियों को रखने की व्यवस्था नहीं रहने से प्रतिदिन उन्हें बेगूसराय से लाना और ले जाना पड़ता है। सड़क मार्ग से लाने में हमेशा कैदियों की सुरक्षा को लेकर बड़ी संख्या में पुलिस बल को तैनात करना पड़ता है। अधिवक्ता रामप्रवेश सिंह, अशोक कुमार सिंह, प्रमोद सिंह, शशिभूषण भारद्वाज आदि ने बताया कि कमरे के अभाव में सुनवाई के दौरान वकीलों को घंटों खड़ा रहना पड़ता है। अधिवक्ताओं ने बताया कि जमीन भी देखी गई है लेकिन अधिकारियों की उदासीनता के कारण न्यायालय भवन का निर्माण कार्य अब तक नहीं शुरू किया जा रहा है।

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