तापमान में बढ़ोतरी को देखते हुए खेतों में नमी बनाए रखना जरूरीः कृषि वैज्ञानिक
फरवरी के अंतिम सप्ताह में अधिकतम तापमान 30 डिग्री के करीब पहुँच गया है। न्यूनतम तापमान 15 डिग्री होने से गर्मी का एहसास बढ़ रहा है। मौसम में बदलाव के कारण किसान अपनी फसलों की सिंचाई करें। कृषि...
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सिंघौल, निज संवाददाता। फरवरी के अंतिम सप्ताह में ही अधिकतम तापमान 30 डिग्री के करीब पहुंच चुका है। ऐसे में न्यूनतम तापमान 15 डिग्री के करीब है। इस वजह से देर शाम तक गर्मी का एहसास हो रहा है। इस समय मच्छरों का प्रकोप भी काफी बढ़ा हुआ है। हालांकि सुबह व रात में मामूली ठंड का एहसास होने के कारण लोग गर्म कपड़ों से परहेज करने लगे हैं। ऐसे में सर्द-गर्म के प्रभाव से बीमार पड़ने का खतरा भी मंडरा रहा है। ग्रामीण कृषि मौसम सेवा, डा.आर.पी.सी.ए.यू, पूसा, समस्तीपुर एवं भारत मौसम विज्ञान विभाग के सहयोग से अगले चार दिनों के लिए जारी मौसम पूर्वानुमान में उत्तर बिहार के जिलों में आसमान में हल्के बादल आ सकते हैं। हालांकि, मौसम के शुष्क रहने का अनुमान है। इस अवधि में अधिकतम 29 से 31 डिग्री सेल्सियस एवं न्यूनतम तापमान में बढ़ोत्तरी के साथ यह15-19 डिग्री सेल्सियस के बीच बने रह सकता है। पूर्वानुमानित अवधि में पछिया हवा चलने का अनुमान है। सापेक्ष आर्द्रता सुबह में 80 से 90 प्रतिशत तथा दोपहर में 50 से 55 प्रतिशत रहने की संभावना है। किसानों के लिए समसामयिक सुझाव मौसम में हो रहे लगातार परिवर्तन के कारण खेतों में लगी रबी फसल पर भी इसका सीधा असर पड़ सकता है। पूसा स्थिति कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने आने वाले दिनों में तापमान में वृद्धि होने की संभावना को देखते हुए किसानों को अपनी सब्जियों की फसलों की सिंबाई करने की सलाह दी है। विशेष रूप से, मटर, टमाटर, बैगन, मिर्च, प्याज और पत्ता गोभी जैसी सब्जियों की फसलों को पानी की आवश्यकता होती है। इन फसलों में सिंचाई करने से न केवल उनकी वृद्धि और विकास में मदद मिलेगी, बल्कि तापमान में वृद्धि के कारण होने वाले नुकसान से भी बचा जा सकता है। वैज्ञानिकों ने कहा कि किसानों से अनुरोध है कि वे अपनी फसलों की सिंचाई करने के लिए आवश्यक कदम उठाएं। अगात बोयी गई गेहूं की दाना बनने से दुध भरने की अवस्था वाली फसल में पर्याप्त नमी का विशेष ध्यान रखें। इस अवस्था में नमी की कमी रहने से उपज में कमी आती है। बसंतकालीन मक्का की बुआई करें। जुताई से पूर्व खेतों में प्रति हेक्टेयर 15-20 टन गोबर की खाद, 40 किलोग्राम नेत्रजन, 40 किलोग्राम सल्फर एवं 30 किलोग्राम पोटास का व्यवहार करें।
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