कविता द्विवेदी के ओडिसी नृत्य की प्रस्तुति पर झूमे दर्शक
फोटो नंबर: 11, भारद्वाज गुरुकुल मं ओडिसी नृत्य को प्रस्तुत करतीं कविता द्विवेदी। ओडिसी नृत्य की प्रस्तुति भारद्वाज गुरुकुल में की गई। इनके संगत में मर्दल पर मानस सारंगी थे एवं वायलिन पर प्रदीप महा

बेगूसराय, हमारे प्रतिनिधि। स्पिक मेके के सहयोग से सोमवार को विदुषी कविता द्विवेदी की ओर से ओडिसी नृत्य की प्रस्तुति भारद्वाज गुरुकुल में की गई। इनके संगत में मर्दल पर मानस सारंगी थे एवं वायलिन पर प्रदीप महाराणा थे। गायन नारायण जेना ने किया। नृत्य के माध्यम से शृगार रस, वीर रस, करुणा रस, रौद्र रस, हास्य रस एवं भक्ति रस की प्रस्तुति हाथ और शरीर के संकेतों और मुद्राओं से दी गई। हाथ और शरीर के भावों का प्रयोग करके नृत्य मूर्तियां की प्रस्तुति दी गई। हाथ के हाव-भाव, शरीर की गति और चेहरे के भावों का संयोजन बेहतरीन था।
यह भावुक अभिव्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण है। कार्यक्रम की शुरुआत बुद्ध पूर्णिमा के पवित्र अवसर पर भगवान विष्णु को समर्पित नृत्य से हुई। इसमें भक्ति भाव देवदासियों से ली गई एवं तकनीक गोटिपुआ से ली गई है। ओडिसी नृत्य का सारा गहना चांदी से बना होता है। क्योंकि यह शीतलता देता है। सिर पर चांदी के मुकुट के रूप में पुष्पचूड़ा पहना जाता है। कमर पर चांदी से ही बनी बेंगापतिया पहनी जाती है।दूसरी शताब्दी से यह नृत्य परंपरा रही है। पूरी के जगन्नाथ मंदिर में ग्यारहवीं शताब्दी से यह प्रस्तुति दी जा रही थी। आक्रांताओं के कारण यह परंपरा रुकी और फिर महिला वेश में बच्चों के द्वारा गोटिपुआ के रूप में मंदिर से बाहर पंद्रहवीं शताब्दी में इसकी शुरुआत हुई।
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