...गाम के अधिकारी तोहे बरका भइया हे शरीखे गीतों से गुंजायमान रहा सिमरिया का गंगातट
सामा- चकेवा की मूर्तियों का किया गया विसर्जन... दूसरी ओर दोपहर बाद से गंगा तट पर सामा-चकेवा के गीत गूंजते सुनाई पड़ें। गाम के अधिकारी तोहे बरका भ
बीहट, निज संवाददाता। कार्तिक पूर्णिमा पर जहां सिमरिया का गंगा तट हर हर गंगे के जयघोष से गुंजायमान रहा, दूसरी ओर दोपहर बाद से गंगा तट पर सामा-चकेवा के गीत गूंजते सुनाई पड़ें। गाम के अधिकारी तोहे बरका भइया हे, शरीखे गीतों के बीच सामा चकेवा की प्रतिमा को गंगा में विसर्जित किया गया। बिहार के मिथिलांचल में मुख्य रूप में मनाया जाना वाला सामा चकेवा का पर्व (उत्सव) छठ के अगले दिन शुरू होता है। आठ दिनों के इस पर्व के दौरान मिथिलाचंल में चहुंओर सामा-चकेवा से संबंधित पारंपरिक लोकगीत गूंजते रहते हैं। उत्सव के नौंवे दिन बहनें भाई को धान की नई फसल की चुरा व दही खिलाती है। उसके बाद भाई व बहन मिलकर सामा-चकेवा की मूर्ति को गंगा या फिर अन्य पवित्र नदियों में करते हैं। यह उत्सव मिथिला के प्रसिद्ध संस्कृति व कला का प्रतीक है। आठ दिनों तक महिलाएं सामा-चकेवा समेत अन्य मूर्तियों के साथ खेलती हैं और चुगिला (चुगलखोर) के मुंह को जलाती है। दासी चुगिला की चुगलखोरी के कारण ही श्रीकृष्ण अपनी पुत्री सामा को पक्षी होने का श्राप चे दिया था। लेकिन भाई के प्रेम और त्याग के कारण सामा फिर से मनुष्य के रूप में आयी और तभी से भाई व बहन के अटूट रिश्ते के लिए सामा-चकेवा का पर्व मनाया जाता रहा है।
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