लीची फल में कीटों के प्रकोप से बचाव को समय रहते करें प्रबंधन: रीमा
सिंघौल जिले में लीची फल का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है। मौसम में बदलाव के कारण किसान चिंतित हैं। सहायक निदेशक रीमा कुमारी ने कीटों के प्रबंधन के उपाय बताए हैं। दहिया कीट और लीची माइट मुख्य समस्याएं...

सिंघौल। निज संवाददाता। जिले में लीची फल का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है। ऐसे में मौसम में बदलाव को लेकर लीची उत्पादन करने वाले किसान अपनी फसल को लेकर चिंतित हैं। सहायक निदेशक पौधा संरक्षण रीमा कुमारी ने लीची के प्रमुख कीटों की पहचान एवं प्रबंधन के बारे में जानकारी दी है। बताया कि वर्तमान समय में फलदार वृक्षों में खासकर लीची के पौधों को इस मौसम में विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। लीची में लगने वाले प्रमुख कीटों का प्रबंधन किसान भाई सावधानी पूर्वक कर सकते हैं।लीची में दहिया कीट लगने की आशंका रहती है। इस कीट के शिशु एवं मादा लीची के पौधों की कोशिकाओं का रस चूस लेते है। जिसके कारण मुलायम तने और मंजर सूख जाते है तथा फल गिर जाते हैं। इसका आक्रमण पौधों की मुलायम फुनगियों पर होने से पौधों की बढ़वार रूक जाती है एवं ऊपर काले रंग की फफूंद विकसित हो जाती है। जिससे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होती है। बाग की मिट्टी की करें निकाई-गुड़ाई इसके प्रबंधन के लिए बाग की मिट्टी की निकाई गुड़ाई करने से इस कीट के अण्डे नष्ट हो जाते है। पौधे के मुख्य तने के जड़ वाले भाग में 30 सेमी चौड़ी अल्काथीन या प्लास्टिक की पट्टी लपेट देने एवं उसपर कोई चिकना पदार्थ ग्रीस आदि लगा देने से इस कीट के शिशु पेड़ पर चढ़ नहीं पाते हैं। जड़ से तीन से चार फीट तक धड़ भाग को चूना से पुताई करने पर भी इस कीट के नुकसान से बचा जा सकता है। इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एस.एल का 2 मिली प्रति 3 लीटर पानी या थायोमेथाक्साम 25% डब्लू. जी. ग्राम / 5 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। कीट से ग्रस्त पत्तियों व टहनियों को काट दें वहीं लीची माईट में इस कीट के वयस्क एवं शिशु पत्तियों के निचले भाग पर रहकर रस चूसते हैं। जिसके कारण पत्तियां भूरे रंग के मखमल की तरह हो जाती है तथा अन्त में सिकुड़कर सूख जाती है। इसे इरिनियम के नाम से जाना जाता है। ये कीट मार्च से जुलाई तक ज्यादा सक्रिय रहते हैं। इसके प्रबंधन के लिए इस कीट से ग्रस्त पत्तियों एवं टहनियों को काट कर जला देना चाहिए। इस कीट का आक्रमण नजर आने पर इथियॉन 50 प्रतिशत ई.सी. का 2 मिली या प्रोपरजाईट 57 प्रतिशत ई.सी. का 2 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। फूल आने के समय कीट पत्तियों पर देती हैं अंडे लीची का फल एवं बीज छेदक मामले में फूल आने के समय मादा कीट पत्तियों पर अण्डे देती हैं। अण्डे से पिल्लू निकलकर नये फलों में घुस कर उसे खाते हैं। जिसके कारण प्रभावित फल गिर जाते है। फलों की तुड़ाई विलम्ब से करने या वातावरण में अधिक नमी के कारण पिल्लू फल के डंठल के पास छेदकर फल के बीज एवं गुद्दे को खाते हैं जिसके कारण फल में सड़न होता है एवं उत्पादन प्रभावित होता है। इसे लीची का स्टोन बोरर भी कहते है। उपज का बाजार मूल्य कीट से ग्रसित होने के कारण कम हो जाता है। इसके प्रबंधन के लिए बाग की नियमित साफ-सफाई करनी चाहिए। डेल्टा मेथ्रिन 2.8% ई.सी. का 1 मिली०/लीटर पानी या साईपरमेथ्रिन 10% ई.सी.का 1 मिली/ली पानी या नोवाल्यूरॉन 10% ई.सी का 1.5 मिली०/लीटर पानी के घोल बनाकर फलन की अवस्था में छिड़काव करनी चाहिए।
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