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मर्यादापूर्ण जीवन जीने की शैली सिखाती है श्रीराम कथा: दिलीप जी महाराज

मंसूरचक में माता दुर्गा मंदिर के परिसर में दिव्य श्रीराम कथा महायज्ञ का आयोजन हुआ। कथावाचक बाबा दिलीप जी महाराज ने बताया कि भगवान श्रीराम की कथा मानवता और धर्म का प्रतीक है। उन्होंने रामायण और...

Newswrap हिन्दुस्तान, बेगुसरायFri, 25 April 2025 07:41 PM
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मर्यादापूर्ण जीवन जीने की शैली सिखाती है श्रीराम कथा: दिलीप जी महाराज

मंसूरचक, निज संवाददाता। प्रखंड के फाटक चौक स्थित माता दुर्गा मंदिर परिसर में आयोजित दिव्य श्रीराम कथा महायज्ञ के सातवें दिन कथावाचक अयोध्या से आए बाबा दिलीप जी महाराज ने कहा कि धर्म के साक्षात विग्रह भगवान श्रीराम और उनकी कथा मानव को मानव धर्म बताने वाली तथा समाज में मानवता की प्रतिष्ठा करने वाली एक दिव्य चेतना है। वर्तमान समय में परिवारों को आपस में कैसे जोड़ा जा सकता है, मित्रता कैसी होनी चाहिए, स्वामी-सेवक आदि के धर्म का दिग्दर्शन कराने वाली यह दिव्य कथा है। उन्होंने कहा कि महर्षि वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण व गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा संकलित रामचरितमानस जैसे दिव्य ग्रन्थ भगवान श्रीराम के जीवन का दर्पण है। वाल्मीकि रामायण में भगवान श्रीराम के मानवीय चरित्र तथा श्रीरामचरितमानस में मानव चरित्र के साथ श्रीराम के ऐश्वर्य रूप-लीला का भी वर्णन है। सर्वप्रथम श्रीराम कथा, भगवान शंकर ने माता पार्वती को सुनाई, जिसे कौवे के रूप में श्रीकागभुषुण्डिजी ने भी सुना तथा उन्होंने भगवान नारायण के वाहन गरुड़ समेत अनेक भक्तजनों को सुनाई। इसी प्रकार ऋषि याज्ञवल्क ने मुनि भारद्वाज को सुनाई तथा आगे गुरु-शिष्य परम्परा से श्रीराम कथा का प्रचार होने लगा। श्रीराम कथा की सबसे बड़ी सीख यह है कि संघशक्ति द्वारा बुराई पर अच्छाई की व अधर्म पर धर्म की जीत संभव है। श्रीराम कथा हमें प्रत्येक परिस्थिति में जीना सिखाते हुए मर्यादापूर्ण जीवन जीने की सीख देती है। श्रीरामचरितमानस में सात काण्ड क्रमशः बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, लङ्काकाण्ड तथा उत्तरकाण्ड हैं। गोस्वामीजी कहते हैं कि रामायण का अर्थ है राम का मंदिर, राम का घर, जब हम मंदिर जाते हैं तो कई नियम होते हैं। नहाकर, साफ होकर, निश्चित समय पर जाना होता है परन्तु सरोवर में जाते समय कोई शर्त नहीं होती, कोई पाबंदी नहीं होती। व्यक्ति जब मैला होता है, गन्दा होता है, तभी सरोवर में स्नान करने जाता है। इसलिए जो शुद्ध हो चुके हैं, वे रामायण के भवन में प्रवेश करें और जो शुद्ध होना चाहते हैं, वे श्रीरामचरितमानस के सरोवर में स्नान करें।

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