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मां कात्यायनी की पूजा से नष्ट होते हैं रोग, शोक व संताप

गढ़पुरा। संवाददाता था। इसीलिए उन्हें कात्यायनी कहा जाता है। मां कात्यायनी को व्रज की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। पौराणिक...

Newswrap हिन्दुस्तान, बेगुसरायThu, 22 Oct 2020 06:31 PM
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शारदीय नवरात्र के छठे दिन मां दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की भक्तों ने पूजा की। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता कात्यायनी की उपासना से रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। हरिगिरिधाम मां दुर्गा मंदिर के पुजारी नंदन झा के मुताबिक मान्यता है कि महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसीलिए उन्हें कात्यायनी कहा जाता है। मां कात्यायनी को व्रज की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए यमुना नदी के तट पर मां कात्यायनी की ही पूजा की थी।

कहते हैं कि मां कात्यायनी ने ही अत्याचारी राक्षस महिषासुर का वध कर तीनों लोकों को उसके आतंक से मुक्त कराया था। इधर, शुक्रवार को जागरण की रात निशा पूजा पश्चात प्रतिमा के दर्शन पूजन के लिए मंदिर के पट खोल दिए जाएंगे। निशा पूजा मध्य रात्रि में होगी। परंपरा के मुताबिक पूजा पश्चात ईख, शीशकोहरा आदि की बलि के रूप में प्रदान की जाती है। इधर, मंदिर परिसर की सजावट अंतिम चरण में है। प्रतिमा का रंग रोगन भी पूरा कर लिया गया है। बाबा हरिगिरि धाम में भव्य पंडाल बनाए गए हैं।

सुजानपुर की वैष्णवी दुर्गा मंदिर में गूंजते हैं नगाड़े, बजती है शहनाई

गढ़पुरा। निज संवाददाता

प्रखंड मुख्यालय से चार किलोमीटर दूर सुजानपुर के वैष्णवी दुर्गा की महिमा निराली है। इस मंदिर की स्थापना वर्ष 1955 में की गई थी। ग्रामीणों का कहना है कि माता वैष्णवी की पूजा शारदीय नवरात्र में भक्ति भाव से होती है। नवरात्रा के दौरान माता के दरबार में नगाड़े और शहनाई बजने से एक अलग ही मनोहारी माहौल कायम हो जाता है।

ग्रामीण कमल किशोर झा बताते हैं कि अष्टमी और नवमी के दिन माता के दरबार में अपार भीड़ जुटती है। यहां पंडालों के निर्माण और सजावट पर हजारों खर्च नहीं होते। यहां सादगी से मां की पूजा करने की परंपरा है। बुद्धिजीवियों का मानना है कि अपनी वैदिक परंपरा, आध्यात्म और लोक संस्कृति को सही मायने में यहां सुरक्षित और संरक्षित रखा जा रहा है। सप्तमी से लेकर दसवीं तक तो यहां मंदिर में प्रवेश तक की जगह नहीं रहती।

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