बगरस में कोरोना ने रोजगार, शिक्षा व व्यवसाय को संकट में डाला
हाल-ए-गांव गुलजार रहने वाला बगरस चौक पर दोपहर होते ही सन्नाटा पसर जाता है। कुछ लोग कोरोना के ख़ौफ से बाहर नहीं...
बखरी। निज संवाददाता
कभी लोगों से गुलजार रहने वाला बगरस चौक पर दोपहर होते ही सन्नाटा पसर जाता है। कुछ लोग कोरोना के ख़ौफ से बाहर नहीं निकल रहे हैं तो कुछ पुलिस की लाठी के डर से दुबके हैं। सीमावर्ती इलाका होने की वजह से बखरी थाना और परिहारा ओपी की पुलिस दोनों यहां गश्त करती है। दोपहर के 12 बजकर 20 मिनट हो रहे हैं। इस चौक पर पूरी तरह से सन्नाटा पसरा है। यहां की दुकानें बंद पड़ी हैं। इस चौक की यह खासियत रही है कि यहां की पान और चाय की दुकानें आसपास के लोगों से दिनभर गुलजार रहा करती थी। लोग बैठकर गप्पे मारते थे, लेकिन कोरोना ने दूरियां इस कदर बढ़ा दी की बैठने की बात तो दूर, लोग घरों से निकलने से भी बच रहे हैं। आलम यह है कि कुछ लोग अगर गलती से बाहर निकल गए तो पुलिस के गाड़ी के सायरन की आवाज सुनकर आसपास के घरों में छुप जाते हैं। यहां का बस पड़ाव पूरी तरह से खाली पड़ा है।
बखरी-खगड़िया रोड पर इस चौक को महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां से बखरी, खगड़िया और नावकोठी प्रखंड मुख्यालय जाने के लिए रास्ता निकलता है। इलाके में बखरी मुख्य बाजार के बाद इसे काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। ग्रामीण इलाकों में इसे काफी महत्वपूर्ण बाजार माना जाता है। यहां हर प्रकार की दुकानें हैं। इतना ही नहीं लोग गांव में भी शादी विवाह, श्राद्ध कर्म में भी जाने से बच रहे हैं।
लॉकडाउन में खेती किसानी भी हो रही प्रभावित
लॉक डाउन की वजह से इसका असर खेती किसानी पर भी पड़ रहा है। लोग पुलिस के डंडे के दर से घरों से बाहर नहीं निकल पाते हैं। सुबह में खेतों में काम खत्म करने के बाद लोग बाजार आकर खाद बीज आदि की खरीदारी करते थे, लेकिन दोपहर होते होते सुबह के 11 बजते बजते दुकानें बंद हो जाती हैं। कोरोना ने किसानों पर भी काफी असर डाला है। बगरस चौक पर वर्षों से दुकानदारी कर रहे भोला कुमार कहते हैं कि उनकी खाद बीज और कीटनाशक दवाओं की दुकान है, जो कि लॉकडाउन से पहले अच्छी चलती थी, लेकिन लॉक डाउन होने के बाद व्यवसाय पूरी तरह से प्रभावित हो गया है। दुकान का सेल आधे से भी कम हो गया है। किसान खेत से वापस आने के बाद 11 बजे के बाद तो बाजार आते ही थे, लेकिन दुकान बंद होने की वजह से उन्हें लौटना पड़ रहा है। हाल ही में अच्छी बारिश हुई थी, खेतों में भदैया फसल, मवेशी का चारा आदि लगाते, लेकिन इस बार यह खेती भी प्रभावित होगी।
सब्जी वालों की मुश्किल से एक से दो घंटों की होती है दुकानदारी
चौक चौराहों पर रेड़ी, ठेले और फुटपाथ पर दुकान लगाकर सब्जी, फल और मछली बेचने वालों का भी व्यवसाय पूरी तरह से प्रभावित हो रहा है। इनकी दुकानदारी मुश्किल से एक से दो घंटे भी नहीं हो पाती है। अगर सामान बच जाता है, तो उन्हें फेकना पड़ता है। बाजार काफी मंदा पड़ा हुआ है। इस कारण सब्जियों की कीमत आधी हो गई है। बगरस चौक पर दुकानदारी कर रहे हैं सुबोध गोस्वामी, रामविलास महतो, नथुनी महतो, योगेंद्र पासवान, घूरन महतो, दिलीप ठाकुर, दीपनारायण महतो आदि ने बताया कि लॉकडाउन के बाद सब्जी की कीमतें काफी कम हो गई है। लोग बाजार आने से भी कतरा रहे हैं। सबसे बड़ी समस्या है कि सुबह में उन्हें थोक मंडी से सब्जी खरीद कर लाना पड़ता है, फिर उसे बेचने की जद्दोजहद होती है। सुबह के 11 बजते बजते दुकाने बंद करनी पड़ती है। इतने कम समय में मुश्किल से एक से दो घंटे भी दुकानदारी नहीं हो पाती है। अगर सब्जी बच जाता है, तो उसे फेंकना पड़ जाता है। उन्होंने बताया कि लॉकडाउन से पहले परवल की कीमत 50 से 60 रुपया किलो था जो कि अभी 20 से 25 रुपया किलो बिक रहा है। वहीं भिंडी 30 से 35 की जगह 20 रुपया किलो और झींगा 20 की जगह 10 रुपया किलो बिक रही है। ऐसे में सब्जी की कीमतें भी काफी कम हो गई है। किसानों को भी काफी परेशानी होती है, उन्हें एक दिन पहले देर शाम तक सब्जियों को खेतों से तोड़ना होता है, और सुबह-सुबह मंडियों में भेजना पड़ता है।
गांव में भी मजदूरों को नहीं मिला सुकून
लॉकडाउन और बेरोजगारी को देखते हुए दूसरे प्रदेशों में काम कर रहे मजदूर अपने घर को किसी तरह लौट तो आए हैं, लेकिन यहां भी उनकी मुश्किलें कम नहीं हो रही है। कुछ दिनों में ही इनकी आर्थिक स्थिति काफी दयनीय हो गई है। गांव में कोई रोजगार का साधन मिल रहा है ना ही कोई काम धंधा चल रहा है। राटन गांव निवासी नितीश ठाकुर, मुकेश तांती, रामजपो तांती, सुरज तांती, चुनचुन तांती, अमित तांती, प्रवीण महतो, राजीव महतो, चंद्रहास महतो, नीरज पंडित, धन्नू पासवान, दीवाना पासवान, कैला पासवान, साजन संजीत शर्मा, नंदन शर्मा, कुंदन शर्मा आदि ने बताया कि वे लोग दिल्ली, मुंबई, देहरादून, कोलकाता, लुधियाना आदि जगहों पर काम करते थे। कोरोना के बढ़ते फैलाव और लॉक डाउन के बाद यह लोग गांव आ गए। लेकिन यहां भी उन्हें सरकार की तरफ से कोई रोजगार नहीं मिला। यदा-कदा कभी दिहाड़ी मजदूरी में काम अगर मिल जाता है, तो किसी प्रकार एक दिन का खर्च निकल जाता है। लेकिन बाकी के दिनों उन्हें घरों में बैठकर ही गुजारना पड़ता है। हालात ऐसे हो गए हैं कि लोगों से कर्ज लेकर परिवार का लालन पालन करना पड़ रहा है। जिंदगी काफी कठिन हो गई है। खेतों में भी काम नहीं मिल पा रहा है। सरकार की ओर से मिलने वाला राशन भी नहीं मिल पा रहा है।
ग्रामीण बच्चों की शिक्षा पर लगा ग्रहण
शहरी इलाकों में रह रहे लोगों के बच्चों को किसी प्रकार ऑनलाइन शिक्षा का फायदा तो मिल जाता है। हालांकि ऑनलाइन की व्यवस्था सभी प्राइवेट स्कूलों में नहीं है। कुछ प्राइवेट स्कूलों में इस प्रकार की व्यवस्था की गई है, लेकिन जिनके पास लैपटॉप और महंगे मोबाइल फोन हैं, वैसे ही बच्चे इस शिक्षा का लाभ ले सकते हैं। हालांकि ऑनलाइन में भी ऐसी शिकायतें मिलती है कि बच्चे ठीक से समझ नहीं पाते हैं। पढ़ाई का समय काफी कम होता है। वहीं ग्रामीण स्तर पर बच्चों के लिए यह लॉकडाउन किसी बुरे सपने से कम नहीं है। पिछले साल भी इनकी पढ़ाई पूरी तरह से चौपट हो गई। इस वर्ष भी स्थिति ठीक नहीं है। खासकर सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों के लिए कोई भी विकल्प नहीं है। सामाजिक कार्यकर्ता जितेंद्र जीतू ने बताया कि बच्चे को घर पर रखना काफी मुश्किल हो गया है। गांव में रहने वाले लोगों के लिए लैपटॉप और एंड्रॉयड फोन पर बच्चों को पढ़ाना आज भी एक सपना ही है।
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