Hindi NewsBihar NewsBanka NewsSafa Dharma The Triumph of Light Over Darkness Founded by Swami Chandra Das

आदिवासी समाज के उत्थान के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया स्वामी चंदर दास ने

मंदार महोत्सवमंदार महोत्सव बौंसी। निज संवाददाता अंधकार पर उजालों की जीत का नाम है सफा धर्म । इस पंथ की नींव मंदार से सटे सबलपुर ग्रा

Newswrap हिन्दुस्तान, बांकाMon, 13 Jan 2025 03:25 AM
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बौंसी। निज संवाददाता अंधकार पर उजालों की जीत का नाम है सफा धर्म । इस पंथ की नींव मंदार से सटे सबलपुर ग्राम के स्वामी चंद्र दास जी महाराज ने 1934 में मंदार पर्वत की तराई में की थी। उनका जन्म सबलपुर गांव में 1892 में साधारण परिवार में भादो मास शुक्ल पक्ष में हुआ था। स्वामी चंदर दास बचपन से ही हिंसा के खिलाफ थे वे बलि प्रथा का पूरजोर विरोध करते थे। युवावस्था आते ही उन्होंने नशाखोरी के खिलाफ भी अभियान छेड़ दिया। स्वामी चंदर दास ने वनवासी बंधुओ को इस धर्म से जोड़कर सबके जीवन को एक सरल मार्ग देकर मुक्ति की ओर अग्रसर किया । अपना पूरा जीवन आदिवासी एवं वंचित समाज के उत्थान के लिए स्वामी चंदर ने समर्पित कर दिया। मांसाहार का त्याग एवं नशा मुक्ति का संदेश मंदार पर्वत से स्वामी चंदर दास दिया था। इस धर्म की स्थापना उस वक्त हुई थी जब भारत अंग्रेजों के हांथों गुलाम था। उस वक्त अंग्रेजों का जुल्म और समाज में कुप्रथाओं का साम्राज्य था। खासकर आदिवासियों की हालत काफी खराब थी। बलि प्रथा एवं मांस मदिरा का प्रचलन जोरों पर था। बलि प्रथा एवं मांस मदिरा का प्रचलन जोरों पर था। धर्म का प्रचार प्रसार स्वामी चंदर दास कर रहे थे। 1974 में 25 वां अधिवेशन भी स्वामी जी के नेतृत्व में हुआ और इसी वर्ष इनका निधन हो गया। तबसे यह ट्रस्ट के माध्यम से संचालित होने लगा। इसके बाद सफाधर्म का आचार्य पद दुःखन बाबा को दिया इसके बाद उन्होंने नशा मुक्त एवं मांसाहार त्याग का प्रचार प्रसार पूरे देश में फैलाया। सफाधर्म बिहार झारखंड बंगालए उड़ीसा छत्तीसगढ़ सहित अन्य मंदार पहुंचते हैं । सफाधर्म की स्थापना करने वाले स्वामी चंदर दास का जीवन मानव की सेवा में ही लगा रहा। हजारों लोगों को इन्होंने अच्छे रास्ते पर लाया। हिंसा के बिल्कुल खिलाफ थे। चांदमारी प्रथा के खिलाफ इन्होने अभियान चलाया और बंद करवाकर ही दम लिया। इन्होने अपने जीवन काल में सफाधर्म ग्रंथ के तीन भागों में रचना की। इसके अलावे कई पुस्तकों का लेखन किया। जिसमें सफाधर्म के निगम विवेक पिण्ड रामायणए गीता अनुवाद ग्रामीण भाषा में किया। संथाली अक्षरों का ज्ञान भी इन्हें था। मुक्त विचारए प्रकाश गुरु स्तुतिए नित्यकर्म पद्धति आदि का लेखन किया। आज भी यहां सफा धर्म के अनुयाई मंदार आते हैं और नशा मुक्ति का त्याग का शपथ लेकर जाते हैं

सफाधर्म मंदिर के प्रबंधक सहदेव पंडित उर्फ सेवक निर्मल दास जी बताया कि सफा धर्म के संस्थापक स्वामी जी महाराज ने सभी धर्म को मिलाकर सफा धर्म की स्थापना की थी। यह ना सिर्फ वनवासी समाज बल्कि सभी समाज को संदेश देता है।

गुरु माता रेखा हेंब्रम ने बताया कि वनवासी समाज प्रकृति की पूजा करते हैं हम लोग आडंबर युक्त पूजन से दूर रहते हैं और यही मार्ग अपनाकर वनवासी आगे बढ़ते हैं आज वनवासियों को एकजुट करने की आवश्यकता है।

वहीं आदिवासी जान गुरु फूलचंद जी ने बताया कि वनवासियों के लिए स्वामी चंदर दास जी ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया ऐसे संत के भूमि पर आकर अपने आराध्य को हम याद करते हैं।

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