आस्था के पांच फल ऐसे जिससे छठ पर्व पर ही सजते हैं सूप व डाले
बांका। निज प्रतिनिधि।बांका। निज प्रतिनिधि। लोक आस्था का महापर्व छठ लोक संस्कृति और प्रकृति से प्रेम का प्रतिक है। जो लोगों को पौराणिक परंपराओं
बांका। निज प्रतिनिधि। लोक आस्था का महापर्व छठ लोक संस्कृति और प्रकृति से प्रेम का प्रतिक है। जो लोगों को पौराणिक परंपराओं और प्रकृति से जोडे रखता है। यही ऐसा पर्व है आधुनिक युग में भी पाश्चात्य संस्कृति से अछूता है। लोक संस्कृति को अपने दामन में समेटे इस पर्व के हर अनुष्ठान में प्रकृति का समावेश है। जिसमें प्रकृति ही अराध्य देव हैं, जिसकी पूजा की जाती है। इस महापर्व में उपयोग किये जाने वाले सूप व डाले से लेकर फल और प्रसाद भी सीधे तौर पर प्रकृति से ही लिए जाते हैं। इस महापर्व में उपयोग किये जाने वाले पांच ऐसे फल हैं, जो छठ पर्व पर ही बाजारों में दिखाए देते हैं। जिसका उपयोग और सेवन लोग शायद ही रोजमर्रा की जिंदगी में करते हैं। हालांकि, कुछ वैद्य-हकीम इसका इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाईयां बनाने में करते हैं। छठ महापर्व पर सूप व डाले का श्रृंगार बढाने व लोगों की भक्ति से जुडे आस्था के इन फलों में टाबा नींबू, सुथनी, औरा, कचरंगा व पनियाला शामिल है। जिसकी पहचान क्षेत्रीय नामों से ही होती है और इसका उपयोग खाने की बजाय औषधी तैयार करने में की जाती है। लेकिन इन फलों के बिना छठ महापर्व के अनुष्ठानों को पूर्ण नहीं किया जा सकात है। इसके अलावे हल्दी, आदी, आंवला जैसे औषधिय पौधों से भी सूप व डाले सजाये जाते हैं। कुल मिला कर कहे तों ये महापर्व पर हर तरफ लोक संस्कृति और प्रकृति की ही तस्वीर दिखती है। जिससे इसकी महत्ता अन्य पर्व व त्यौहारों से अधिक है।
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