पुरोहितों के बच्चों को भी मिले आरटीई का लाभ
पुरोहितों की स्थिति दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है। आर्थिक तंगी, सरकारी नौकरी का अभाव और डिजिटलाइजेशन के चलते उनके रोजगार पर संकट है। शादी-विवाह में पारंपरिक दक्षिणा में कमी से भी परिवार का गुजारा...
समाज का प्रमुख हिस्सा होने के बावजूद पुरोहितों की स्थिति दिनों-दिन खराब होती जा रही है। अधिकतर पुरोहितों की आर्थिक स्थिति खराब है। स्कूलों में इनके बच्चों को आरटीई का लाभ नहीं मिलता है। सरकारी नौकरी में गरीब पुरोहितों के बच्चों को फीस में माफी नहीं मिलती है। बेतिया राज के मंदिरों में पुरोहितों को अल्प वेतन मिलता है। भगवान को भोग लगाने के लिए भी बहुत ही कम राशि मिलती है। इसका भार पुजारियों और पुरोहितों पर अतिरिक्त पड़ता है। अब शादी-विवाह में लोग ऑनलाइन बुकिंग करा ले रहे हैं। इससे स्थानीय पुरोहितों और पुजारियों के रोजगार पर संकट खड़ा हो गया है। उनलोगों को जो कुछ भी आय शादी-विवाह आदि आयोजनों से होती थी, वह भी खत्म होती जा रही है। जहां शादी-विवाह में अन्य चीजों पर लाखों खर्च किये जाते हैं वहीं पुरोहितों को दक्षिणा देने के नाम पर लोग पारंपरिक रूप से कुछ भी दे देते हैं।
आचार्य उमेश तिवारी, आचार्य सुजीत द्विवेदी,अजीत तिवारी, विनोद गिरि आदि बताते हैं कि ऊंची डिग्री रखने के बावजूद हमें शीघ्र कोई नौकरी नहीं मिलती है। हमारे समाज में अधिकतर संस्कृत के शिक्षक हैं, लेकिन इस विषय के प्रति स्कूली बच्चों का रुझान काफी कम है। कई विद्यालयों में तो इसके शिक्षक भी नहीं हैं। इसलिए ऊंची डिग्री रखने के बावजूद भी हमें जल्दी कोई नौकरी नहीं मिलती। पूजा पाठ अथवा मंदिरों के चढ़ावे के भरोसे जीवन यापन करना आज के महंगाई में काफी मुश्किल हो रहा है। बेतिया राज के जितने भी मंदिर हैं उनसे जुड़े पुरोहितों को भी बहुत ही कम मेहनताना मिलता है। संबंधित अधिकारी को इस दिशा में पहल करते हुए बेतिया राज के मंदिरों में कार्यरत पुरोहितों का सेवा शुल्क बढ़ाया जाना चाहिए। ताकि परिवार का गुजर-बसर आसानी से हो सके। पहले के समय में पूजा पाठ व शादी विवाह सहित अन्य आयोजनों के लिए पुरोहितों की उपस्थिति अनिवार्य मानी जाती थी। मंत्र उच्चारण अथवा विधिवत कर्मकांड करने के लिए हमारी शारीरिक उपस्थिति अनिवार्य होती थी। अब समय बदल गया है। लोग बड़े-बड़े शहरों के पुरोहितों की बुकिंग ऑनलाइन कर लेते हैं। इस कारण हमारे यजमानों की संख्या में काफी कमी हो गयी है। बेरोजगारी इतनी बढ़ रही है कि परिवार का गुजर बसर भी मुश्किल हो गया है। हर पुरोहित आर्थिक रूप से संपन्न नहीं होता। कई ऐसे भी पुरोहित हैं जिनको प्रतिदिन की जरूरत को पूरा करने के लिए कठिन परिस्थितियों से भी गुजरना पड़ता है। ऐसे में सरकार ने आरक्षण की पद्धति लाकर हमारे समाज के लोगों के साथ अन्याय किया है। आरक्षण वाले छात्रों को कम या नि:शुल्क फॉर्म भरने की आजादी रहती है, लेकिन हमारे समाज के गरीब बच्चों को फॉर्म भरने में भी ऊंची फीस देनी पड़ती है। नौकरी का अभाव, रोजगार की कमी और संसाधनों के बिना हमारे समाज के बच्चे पुश्तैनी काम करने को विवश हैं। प्रतियोगिता परीक्षाओं में भी हमारे समाज के बच्चों को आरक्षण नहीं मिलता है। शहर के निजी विद्यालयों में भी बच्चों को नामांकन में किसी प्रकार की विशेष सुविधा नहीं मिलती। बेहतर शिक्षण संस्थान में नामांकन नहीं कराने से उनका बौद्धिक विकास नहीं हो पाता। आरटीई का लाभ भी हमारे समाज के बच्चों को नहीं मिल पाता। पहले के यजमान पीढ़ी दर पीढ़ी किसी खास पुरोहित अथवा उनके परिजनों से पूजा पाठ यज्ञ अनुष्ठान आदि संपन्न करवाते थे, लेकिन डिजिटल समय ने हमें अपने यजमानों से दूर कर दिया है। हमारे साल भर की कमाई पूजा पाठ, अनुष्ठान अथवा यज्ञ में मिलने वाला दक्षिणा ही होता है। लोग शादी विवाह में करोड़ों की राशि खर्च कर देते हैं लेकिन जब पंडितों को दक्षिणा देने की बात होती है तब पारंपरिक रूप में निर्धारित दक्षिणा की राशि ही दी जाती है। इससे पुरोहितों को घर परिवार का खर्च चलाना भी मुश्किल हो गया है। वहीं आयुष्मान कार्ड का लाभ नहीं मिलने से गंभीर बीमारी के समय कर्ज लेना विवशता बन जाती है।
प्रस्तुति : मनोज कुमार राव
आर्थिक आधार पर मिलेगा लाभ
शिक्षा के अधिकार के तहत जाति आधारित वर्गों के साथ-साथ आर्थिक आधार पर भी कमजोर लोगों को इसका लाभ निजी विद्यालयों में नामांकन के समय मिलता है। इसके लिए आर्थिक आधार पर लगने वाले कागजातों को लगाकर यदि वे ऑनलाइन आवेदन करते हैं तो आरटीई के तहत निजी विद्यालयों में 25 फ़ीसदी नामांकन का लाभ भी ले सकते हैं।
मनीष कुमार सिंह, जिला शिक्षा पदाधिकारी
शिकायतें
1. पुरोहितों के समाज का बड़ा हिस्सा गरीबी में जीने को विवश हैं। वर्ष में कई महीने उन्हें अच्छी आमदनी नहीं होती। वे योजनाओं के लाभ से भी वंचित हैं। आर्थिक तंगी में जीने को विवश हैं।
2. पुरोहित समाज के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के बच्चों को कम फीस की राशि पर निजी विद्यालयों में नामांकन नहीं मिलता है जबकि समाज का बड़ा तबका गरीबी में जी रहा है।
3. बढ़ते डिजिटल युग में लोग बड़े शहरों से पुरोहितों की बुकिंग करते हैं, ऐसे में स्थानीय पुरोहितों का काम प्रभावित होता है। वर्ष में कई महीने कोई बड़ा काम भी नहीं मिलता है। सरकार से भी मदद नहीं मिलती है।
4. शादी ब्याह के अवसर पर लोग लाखों करोड़ों की राशि खर्च कर देते हैं। पर दक्षिणा की राशि बढ़ाने में परेशानी महसूस करते हैं।
5. आरक्षण की मार के कारण पुरोहित समाज के युवक-युवतियों को सरकारी नौकरी नहीं मिल रही। सरकार को इस विषय पर कोई चिंता नहीं करती है। गरीबी में जीवन जी रहे पुरोहितों को बच्चों की फीस पर भी मोटी रकम खर्च करनी पड़ी है।
सुझाव
1. पूजा पाठ यज्ञ और अनुष्ठान के लिए पुरोहित समाज के लोगों को अक्सर दूर दराज क्षेत्र में भी जाना पड़ता है। इसे हमेशा भय और संशय की स्थिति बनी रहती है। सरकार को स्वास्थ्य बीमा की व्यवस्था करनी चाहिए।
2. डिजिटलाइजेशन के कारण अब पुरोहितों की बजाय ऑनलाइन सिस्टम से भी बेतिया शहर के यजमान काम ले रहे हैं। ऐसे में सरकार भत्ता और अन्य योजनाओं का लाभ पुरोहितों को उपलब्ध कराये।
3. पुरोहित समाज के आर्थिक रूप से कमजोर स्कूली बच्चों को निजी विद्यालय में नामांकन के लिए सुविधा मिलना चाहिए।
4. पुरोहितों के लिए सरकार स्वास्थ्य बीमा और कम ब्याज पर शिक्षा लोन की व्यवस्था करे। पुरोहितों के बच्चों के लिए बड़े निजी स्कूलों में आरटीई के तहत नामांकन की व्यवस्था होनी चाहिए।
5. पुरोहित समाज के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को भी सरकार की ओर से विशेष पैकेज नहीं मिलता। इससे हमारे उत्थान में बाधा आ रही है। सरकार को इस दिशा में भी चिंता करनी चाहिए।
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