पूंजी व प्रशिक्षण की कमी ने पछाड़ा, संकट में ‘हुनर
जिले के हजारों बढ़ई मिस्त्री फर्नीचर बनाने के हुनर के बावजूद बेरोजगारी का सामना कर रहे हैं। काम के अभाव में उन्हें बड़े शहरों की ओर पलायन करना पड़ रहा है। तकनीकी प्रशिक्षण और पूंजी की कमी के कारण वे...
जिले के हजारों बढ़ई मिस्त्री फर्नीचर बनाने के हुनर होते हुए भी बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं। स्थानीय स्तर पर काम के अभाव में उन्हें दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चंडीगढ़ जैसे बड़े शहरों की ओर पलायन करना पड़ रहा है। बेहतर प्रशिक्षण की कमी व पूंजी संकट के कारण वे ब्रांडेड कंपनियों की चुनौतियों से स्पद्र्धा करने में पिछड़ जा रहे हैं। बेतिया शहर में इस समाज के सात हजार से अधिक सदस्य मुफलिसी की जिंदगी जी रहे हैं। ब्रांडेड कंपनियों के आकर्षक फर्नीचर बाजारों में आने से इनके व्यवसाय और आय पर असर पड़ा है। वे बताते हैं कि कंपनियों के उत्पाद को वे स्थानीय स्तर पर बना सकते हैं लेकिन फिनिशिंग की राह में तकनीक की कमी व पूंजी का संकट बड़ी बाधा है। वे स्वरोजगार के लिए ऋण लेना चाहते हैं, लेकिन आसानी से नहीं मिलता है। बाजार में नई मशीनें आ गयी हैं, इससे समय और मेहनत की बचत होती है लेकिन उसे खरीदने के लिए उनके पास साधन नहीं है। अशोक शर्मा, मनोज शर्मा, पिंटू शर्मा, रियाज आलम आदि ने बताया कि किसी भी बैंक में जाते हैं तो सबसे पहले बिचौलियों को खुश करना पड़ता है। बिचौलिये लोन के एवज में 5 से 10 फीसदी राशि मांगते हैं। एक तो ब्याज पर लोन व ऊपर से नजराना देना संभव नहीं है। इस कारण कई लोग खुद का काम छोड़ रोजगार की तलाश में शहर आते हैं लेकिन यहां भी रोज उन्हें काम नहीं मिलता है। नई-नई मशीनों के आ जाने से इनके मेहनताना पर भी बुरा प्रभाव पड़ा है। पहले जो काम दो से तीन दिन में होता था, अब मशीनों के जरिये इसे महज कुछ घंटे में कर लिया जाता है। इससे बढ़ई मिस्त्री को दिहाड़ी के रूप में कम राशि मिल रही है। इससे परिवार का गुजर बसर करना मुश्किल हो रहा है। सबसे अधिक परेशानी काम मिलने को लेकर है। बढ़ई मिस्त्री का कहना है कि उन्हें सालभर काम नहीं मिलता। इस कारण लोगों को आर्थिक तंगी झेलनी होती है।
लोगों ने बताया कि काम की तलाश में बड़े शहरों में जाने वाले अक्सर वहां से बीमार होकर लौटते हैं। दिन-रात कड़ी मेहनत करने के बाद ये लोग अक्सर कई तरह की बीमारी की चपेट में आ जाते हैं। उनकी पीड़ा है कि आयुष्मान कार्ड के जरिये इलाज के लिए अस्पताल जाने पर डॉक्टर अच्छा सलूक नहीं करते हैं। प्रशासन को इसको लेकर सख्ती बरतना चाहिए। इस समाज में शिक्षा की आज भी बहुत कमी है। आज के माहौल में जब उनके बच्चे शहर के निजी विद्यालय में नामांकन के लिए जाते हंै तो अभिभावकों से फीस के नाम पर मोटी रकम की मांग की जाती है। सरकार ने भले ही शिक्षा के अधिकार के तहत गरीबों के बच्चों के नामांकन की सुविधा की घोषणा की है, लेकिन बढ़ई समाज के अधिकांश बच्चे आज भी निजी विद्यालयों में नामांकन से वंचित हंै। नंदू कुमार, अनुज शर्मा, बेचू कुमार, रोहित शर्मा आदि ने बताया कि आजकल फैशन के दौर में लोग भले ही नए नए आकर्षक डिजाइन वाले ब्रांडेड फर्नीचर की खरीदारी कर रहे हैं, लेकिन इन फर्नीचर के अंदर कमजोर लकड़ी लगाकर अथवा कंप्रेस्ड वुड लगाया जाता है। ऐसे फर्नीचर अधिक टिकाऊ नहीं होते हैं। पहले जब घर बनता था तब लोग अपने सामने लकड़ी के चौखट दरवाजा अथवा खिड़की के पल्लों का निर्माण शीशम, सागवान अथवा अन्य मजबूत लकड़ी से कराते थे और हम लोगों को इन सभी का निर्माण करने में महीनों तक रोजगार मिलता था। अब स्थिति बदल चुकी है। घर के निर्माण के समय लोग बाजार से रेडिमेड दरवाजा,चौखट अथवा पल्लों की खरीदारी करते हंै। यह देखने में तो आकर्षक होते है लेकिन इनमें मजबूती नहीं होती। इनमें शीघ्र ही दीमक लगने का खतरा बना रहता है। स्टार्टअप आदि योजनाओं से हमलोगों को भी मदद मिलना चाहिए। ताकि हम भी इस विकट स्थिति से उबर सके। समाज के लोगों की मांग है कि प्रशासनिक स्तर पर तकनीकी प्रशिक्षण, पूंजी की व्यवस्था व बाजार की उपलब्धता पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
प्रस्तुति-मनोज कुमार राव
छोट कारोबारी, छोटे उद्योग व दुकानदारों को कारोबार शुरू करने के लिए 2 लाख की राशि ऋण के रूप में देने की योजना है। ऋण के लिए इच्छुक व्यक्ति को अपना आधार कार्ड,पैन कार्ड सहित सभी आवश्यक कागजात लेकर संपर्क करना होगा।
विजय कुमार,प्रभारी सहायक प्रबंधक सेंट्रल बैंक
इलाज कराने आए आयुष्मान कार्ड धारी व्यक्ति को किसी प्रकार की असुविधा नहीं होगी। इसकी नियमित मॉनिटरिंग की जाती है। इस मामले में शिकायत मिलने पर कार्यवाही की जाएगी।
डॉ विजय कुमार, सिविल सर्जन
सुझाव
1. स्वयं का रोजगार अथवा प्रतिष्ठान खोलने के लिए बैंकों से सुलभ तरीके से ऋण की सुविधा मिलनी चाहिए। ऋण मिलने की सुविधा को दलालमुक्त बनाने के लिए बैंककर्मियों को सक्रियता दिखानी होगी।
2. हमारे समाज के बच्चों को बेहतर शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए शहर के निजी विद्यालयों में कम फीस पर नामांकन की सुविधा मिलनी चाहिए। फीस की मोटी रकम और स्टेशनरी की खरीदारी से हमारी आर्थिक स्थिति गड़बड़ हो जाती है।
3. लगातार काम करने के बाद जब हम बीमार होते हैं तो आयुष्मान कार्ड पर हमें शीघ्र मेडिकल सुविधा मिलनी चाहिए। ऐसी व्यवस्था हो कि कार्डधारी बीमार व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के इलाज की सुविधा मिल सके।
4. प्रतिदिन गांव से शहर काम की तलाश में आने वाले लोग कई बार दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं उनके लिए बीमा की सुविधा होनी चाहिए।
5. दिहाड़ी के रूप में प्रतिदिन मिलने वाले मेहनताना की राशि में बढ़ोत्तरी होनी चाहिए ताकि कम कार्य दिवस पर भी हमें परिवार चलाने लायक पैसा मिल सके।
शिकायतें
1. शहर में फर्नीचर के बड़े-बड़े ब्रांडेड प्रतिष्ठान खुल जाने से बढ़ई समाज के लोगों को अब रोजगार नहीं मिल रहा है। रेडिमेड चौकठ, दरवाजे व खिड़कियों के पल्ले आकर्षक जरूर है लेकिन मजबूत नहीं। इससे हमें रोजगार की कमी हो रही है।
2. नई-नई मशीनों के आ जाने से अब काम मिलने की संभावना में काफी कमी आ गई है। इससे काफी कम मेहनताना मिल रहा है। इससे परिवार का गुजर बसर प्रभावित हो रहा है।
3. काम की तलाश में बड़े-बड़े शहरों की ओर पलायन करना पड़ रहा है जिससे परिजनों से दूरी हो रही है और सही तरीके से उनकी देखभाल भी नहीं हो पाती है।
4. बच्चों की शिक्षा के लिए निजी विद्यालयों में दाखिला लेते समय फीस की मोटी रकम की मांग की जाती है।
5. बेहतर प्रशिक्षण लेने के बाद भी कई बार बैंकों से ऋण की राशि नहीं मिल पाती क्योंकि दलाल अपना कमीशन मांगते हैं। इस मामले को बैंक अधिकारियों को गंभीरता से लेना चाहिए।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।