डीजे के शोर में दबकर रह गयी बैंडबाजा की आवाज
डीजे के शोर ने बैंड पार्टी के कलाकारों के रोजगार को प्रभावित किया है। कलाकारों को गंभीर आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें इलाज और बच्चों की शिक्षा शामिल है। सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं...
डीजे के शोर ने अंग्रेजी, बैग वाइपर और ढोल ताशा बजाने वाले बैंड पार्टी के कलाकारों के रोजगार छीन लिये हैं। बैंड पार्टी के साथ उसके कलाकार भी परेशानियों से जूझ रहे हैं। तंगहाली में जी रहे कलाकारों को परिवार चलाने, बच्चों को पढ़ाने व इलाज कराने के लिए गंभीर मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। कलाकार बताते हैं कि अधिकतर लोगों के पास आयुष्मान कार्ड तक नहीं हैं और न ही प्रशासनिक स्तर पर इसके लिए कोई कैंप लगाया गया। ऐसे में गंभीर बीमारियों का इलाज कराने में उन्हें कर्ज लेना पड़ता है। ध्रुव पासवान और मुन्ना ने बताया कि बच्चों को आरटीई के तहत निजी स्कूलों में नामांकन नहीं मिलता है। सरकारी स्कूलों में आज भी पढ़ाई की बेहतर व्यवस्था नहीं है। अधिकांश कलाकार ग्रामीण परिवेश से आते हैं। शहरी क्षेत्र में रहने के कारण उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है। आवास, अनाज, समेत अन्य योजनाओं का लाभ नहीं मिलता है। लग्न के समय तक किसी तरह उन्हें काम मिलता है, उसके बाद काम के लिए ये कलाकार तरस जाते हैं। कई बार महीनों तक बेकार बैठना पड़ता है। कभी शादी-विवाह में सबके आकर्षण का केंद्र बनने वाले कलाकारों की अब कोई पूछ नहीं है। एक दशक पूर्व तक इनके बिना शादी समारोह फीका माना जाता था। एक-एक बैंड पार्टी में डेढ़-दो सौ कलाकार होते थे, अब बमुश्किल 25-30 कलाकार ही बैंड पार्टियों में बचे हैं। बचे हुए कलाकारों का लग्न के बाद रोजगार खत्म हो जाता है। वे खेतों और भवन निर्माण में मजदूरों की तरह काम करने के लिए मजबूर हैं। मो.झुन्नू,शिवनाथ शास्त्री, मो. सलाम, मो. इम्तेयाज आदि ने बताया कि अब डीजे लोगों की पसंद बनते जा रहा है। कभी मनोरंजन के लिए उम्दा साधन माने जाने वाले बैंड पार्टी की स्थिति खराब होती जा रही है। स्थिति यह है कि कलाकारों के लिए परिवार का खर्च, बच्चों की फीस, बीमारी का इलाज कराना मुश्किल हो गया है। मुंह से वाद्य यंत्रों को फूंक कर बजाने के कारण कलाकारों को हृदय रोग हो जाता है। कइयों को दमा की बीमारी हो जाती है। फिर उन्हें देखने वाला कोई नहीं होता है। बदलते समय में लोगों की पसंद की व्यवस्था करने के बाद भी बैंड बाजा की बुकिंग 70 से 80 फीसदी तक गिर गई है। एक समय शादी तय होते ही लोग सबसे बैंड-बाजा की बुकिंग करते थे। कई बार तो बैंड उपलब्ध नहीं होने पर शदियों की तिथि तक लोग बदल लेते थे।
एक सीजन में डेढ़ से दो सौ बुकिंग एक-एक बैंड पार्टी वाले की होती थी। तब शहरी क्षेत्र में पांच दर्जन से अधिक बैंड पार्टी वाले थे। इसमें छह से आठ सौ लोगों को रोजगार मिलता था। लग्न में इतनी कमाई होती थी कि पूरे साल परिवार का भरण-पोषण आसानी से हो जाता था। अब समय के साथ ड्रेस व वाद्य यंत्र भी बदल गये हैं। इसपर खर्च बढ़ गया है। साज और वाद्य यंत्रों की कीमत भी काफी महंगी हो गयी है। इनकी खरीदारी करने के बाद कीमत तक निकालना मुश्किल हो गया है। गैर सीजन में प्रैक्टिस के लिए हमें रियाज के लिए उस्ताद को उंची फीस भरनी पड़ती है। हमारे लिए सरकारी स्तर पर संगीत व वाद्य यंत्र के प्रशिक्षण की व्यवस्था नहीं है। समय के साथ बैंड पार्टी में कई बदलाव हुए हैं। बैंड में अब रॉक बैंड भी शामिल हो गया है। लेकिन डीजे का शोर इतना बढ़ गया है कि बैंड की सुरीली आवाज इसमें दब गई है। डीजे के आवाज से कई जगहों पर हार्ट के मरीजों की मौत भी हो चुकी है। प्रत्येक वर्ष दुर्गा पूजा, सरस्वती पूजा समेत कई सार्वजनिक आयोजनों में पुलिस डीजे जब्त करती है। डीजे से ध्वनि प्रदूषण होता है। बावजूद इसके लिए जिला प्रशासन किसी तरह की सख्ती नहीं करता है। गुम होते बैंड पार्टी कलाकारों की आवाज को बचाने के लिए सबसे पहले डीजे पर प्रतिबंध लगना चाहिए। बैंड पार्टी वाले के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था हो। बैंड पार्टी कलाकार की गंभीर बीमारी के लिए आयुष्मान कार्ड से 10 लाख तक का इलाज मुफ्त करने की सुविधा मिलनी चाहिए। प्रस्तुति- एहतेशामुल हक
नियोजनालय में रजिस्ट्रेशन पर मिलेगी तकनीकी ट्रेनिंग
बैंड बाजा बजाने वालोंं को लेबर कार्ड बनवाना चाहिए। इसके अलावा विभाग से उनके लिए लोन की भी व्यवस्था कराई जाती है। अगर वे अपने एजुकेशन सर्टिफिकेट के साथ नियोजनालय में रजिस्ट्रेशन करते हैं तो उनके लिए रोजगार परक तकनीकी ट्रेनिंग की भी व्यवस्था की जाती है।
मुकुंद माधव, जिला नियोजन पदाधिकारी
सुझाव
1. डीजे पर अगर सरकार पूरी तरह से पाबंदी लगा दे तो एक बार फिर बैंड बाजा का कारोबार बढ़ने लगेगा और स्वस्थ मनोरंजन का माहौल बनेगा। इससे बैंड बाजा से जुड़े कलाकारों को राहत मिलेगी।
2. पुराने बैंड बाजा के कारोबारियों को चिहिन्त कर सरकार उनकी आर्थिक मदद करें। इससे बैंडबाजा कलाकारों के परिवार का भरण-पोषण हो सकेगा और उनके बच्चे शिक्षा हासिल कर सकेंगे।
3. डीजे से ध्वनि प्रदूषण होता है। प्रशासन को ऐसे डीजे संचालकों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए सरकार डीजे का मानक तय करे।
4. बैंड बाजा वाले कारोबारियों के बच्चों की बेहतर शिक्षा के लिए निजी विद्यालयों में सुविधा मिलनी चाहिए। फीस की राशि में भी कमी करनी चाहिए।
5. इस कारोबार से जुड़े गरीब तबके के कलाकारों को सरकार की ओर सुविधा आदि देने का प्रावधान होना चाहिए। ताकि कलाकारों का गुजर बसर सही से हो सके।
शिकायतें
1. डीजे का प्रचलन जबतक नहीं था उस समय तक रॉक बैंड की बहुत अधिक मांग थी। लेकिन अब इस पेशे में मंदी का माहौल है। इससे सभी परेशान हंै। कई बार बेरोजगारी झेलने के बाद कलाकारों को दिहाड़ी मजदूर के रूप में भी काम करना पड़ता है।
2. बैंड बाजे की मांग कम होने से आवश्यक वाद्य यंत्र व परिधान की खरीदारी करना भी हमलोगों के लिए समस्या बन गयी है। महंगाई के जमाने में वाद्य यंत्र भी महंगे है और फैशन के अनुसार यूनिफार्म खरीदना भी परेशानी का सबब बनता जा रहा है।
3. आर्थिक परेशानी होने के कारण अक्सर इस पेशे से जुड़े लोग महाजन से ब्याज पर कर्ज लेकर स्टाफ को मेहनताना व दुकान का किराया दे रहे हैं।
4. कम पेमेंट हो जाने के कारण अब बाहर से कलाकार बैंड बाजा कारोबार में शिरकत करने से परहेज कर रहे हंै। इससे रोजगार प्रभावित हो रहा है।
5. शादी ब्याह के अवसर पर अश्लील गाना नहीं बजाने पर हमारी डिमांड कम होती जा रही है, वहीं डीजे पर अश्लीलता परोसी जा रही है। सरकार को इस दिशा में कठोर कदम उठाना चाहिए।
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