Struggling Cooks Demand Fair Pay and Benefits in Schools बोले औरंगाबाद : विद्यालयों में भोजन परोसने वालीं रसोइया संसाधनों को तरस रहीं , Aurangabad Hindi News - Hindustan
Hindi NewsBihar NewsAurangabad NewsStruggling Cooks Demand Fair Pay and Benefits in Schools

बोले औरंगाबाद : विद्यालयों में भोजन परोसने वालीं रसोइया संसाधनों को तरस रहीं

जिले के प्राथमिक विद्यालयों में रसोइयों की स्थिति दयनीय है। उन्हें 1650 रुपए महीने मानदेय मिलता है, जो महंगाई के हिसाब से बहुत कम है। रसोइयों ने बताया कि उन्हें 12 महीने का मानदेय मिलना चाहिए और उनकी...

Newswrap हिन्दुस्तान, औरंगाबादMon, 28 April 2025 11:39 PM
share Share
Follow Us on
बोले औरंगाबाद : विद्यालयों में भोजन परोसने वालीं रसोइया संसाधनों को तरस रहीं

जिले के प्रारंभिक विद्यालयों में बच्चों को पौष्टिक भोजन कराकर सेहतमंद बनाने वाली रसोइया बदहाल है। नाममात्र के मानदेय की वजह से उनकी खुद की रसोई का चूल्हा बमुश्किल जलता है। रसोइयों को बच्चों की पढ़ाई के लिए कलम, कॉपी खरीदने में भी कठिनाई होती है। बीमारी या हादसे की स्थिति में कर्ज लेना पड़ता है। इसका सूद भरने में परेशानी होती है। रसोईया कहती हैं कि 1650 रुपए महीने मानदेय निर्धारित है, वह भी साल भर में सिर्फ 10 माह मिलता है। महंगाई के इस दौर में इतनी कम राशि से लोग महीने भर चाय पानी भी नहीं कर सकते हैं। फिर भी हम लोगों का पारिवारिक भरण पोषण कैसे होता है, यह सरकार को सोचना चाहिए। रसोईया रीता देवी, शीला देवी, मनवा देवी, कलावती देवी, सुनीता देवी, शांति देवी, सरिता देवी, लक्ष्मी देवी, मीना देवी आदि कहती हैं कि मानदेय बढ़ाने के लिए कई बार आंदोलन कर चुके हैं। हर बार अधिकारियों ने आश्वासन दिया पर कोई पहल नहीं हुई है l उन्होंने बताया कि पिछले पांच वर्षों में सरकार ने सभी कर्मियों के मानदेय में वृद्धि की है। इस बार के बजट पर हम लोगों की आंखें लगी थीं पर रसोइयों के लिए कोई घोषणा नहीं हुई। इससे वह आक्रोशित व दुखी हैं। रसोइयों को जितना काम करना पड़ता है, उसके एवज में न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिल रही है। रसोइयों की गिनती कुशल श्रमिक में होती है। कुशल श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी 577 रुपए निर्धारित है। इसके बावजूद उनका 55 रुपए रोजाना के हिसाब से 1650 रुपए मिलते हैं। उन्होंने बताया कि सरकार रसोइयों की जरूरत व मांग से बेखबर है। प्राथमिक व माध्य विद्यालय में कार्यरत रसोईया कम मानदेय के बावजूद नियत समय पर विद्यालय पहुंच जाती है। निर्धारित मेन्यू के हिसाब से घर की तरह भोजन तैयार करती हैं। रसोईया ने बताया कि भोजन बनाने के साथ मध्यांतर की घंटी बजने पर बच्चों को खिलाने की जिम्मेदारी निभाते हैं। इसके बाद विद्यालय की छुट्टी होने के बाद ही घर जाते हैं। फिर भी मई, जून का मानदेय नहीं दिया जाता है। रसोइया की मांग है कि मानदेय बढ़ाकर 18 हजार रुपए किया जाए। साथ ही स्वास्थ्य व जीवन बीमा योजना का लाभ मिले। रसोइयों ने बताया कि उन्हें मात्र 1650 रुपए महीना वेतन मिलता है, वह भी केवल 10 माह के लिए। शेष दो महीने में उन्हें कोई भुगतान नहीं किया जाता। इससे उनके घर की स्थिति दयनीय बनी रहती है। महंगाई के इस दौर में इतनी कम तनख्वाह में पूरा परिवार चलाना असंभव है। कहीं रसोईया विधवा है या घर में अकेली कमाने वाली सदस्य हैं। इन अकेली कमाने वाली रसोइया को अपना ही घर चलना मुश्किल हो रहा है। आपके अपने अखबार दैनिक हिन्दुस्तान के बोले औरंगाबाद संवाद कार्यक्रम में रसोइयों ने अपनी व्यथा सुनाई। समस्याओं पर चर्चा की। स्कूलों में काम करने वाली रसोइयों से स्कूल प्रशासन के साथ यहां के बच्चों के अभिभावकों को बहुत उम्मीद है। वह अपने बच्चों को लिए पौष्टिक आहार व भोजन चाहते हैं। मीनू के अनुसार थाली में आहार होना चाहिए। इस काम में वह सुबह से लगी रहती हैं ताकि बच्चों को बेहतर भोजन मिल सके। दिन भर वहां काम करने के कारण वह अन्य जगहों पर काम नहीं कर पाती हैं। कम पैसे और समय के अभाव से उन पर शारीरिक और मानसिक दबाव बना रहता है। काम का बोझ बच्चों के सेहत की चिंता और समय पर भोजन देने में ही उनका सारा समय चला जाता है। वह अपने परिवार को समय तक नहीं दे पाती हैं। संवाद के दौरान रसोइयों ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर उनकी मांगों को जल्द नहीं माना गया तो वह फिर से आंदोलन कर सकती हैं। उनका कहना है कि जब तक उनकी आवाज नहीं सुनी जाएगी तब तक वह चुप नहीं बैठेंगी। रसोइयों ने कहा कि जब स्कूलों में पढ़ने वाले शिक्षकों को डेढ़ लाख रुपए तक वेतन मिल रहा है तो दिन भर उन्ही स्कूल में बच्चों की भोजन बनाकर खिलाने वाली रसोइयों को मात्र 1650 रुपए देना कहां तक उचित है। 50 रसोइयों को मिलाकर जितना पैसा दिया जाता है, उससे अधिक तो एक नियमित चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को वेतन मिल रहा है।

21 साल का संघर्ष फिर भी हो रही अनदेखी

रसोइयों का कहना है कि वर्ष 2004 से इस काम में लगी हैं। जिला में विभिन्न स्कूलों में रसोईया योगदान कर रही हैं लेकिन आज भी उनकी हालत नहीं बदली है। समय-समय पर इन 21 सालों में कई बार संघर्ष व आंदोलन हुए लेकिन इसका कोई खास असर अब तक नहीं पड़ा है। वर्ष 2014 में वेतन वृद्धि के लिए बड़े स्तर पर आंदोलन हुआ था। इसके बाद सरकार ने उस वर्ष 25 फ़ीसदी वेतन बढ़ाया था। उसके बाद इसमें कोई वृद्धि नहीं हुई है। उनका सवाल है कि जब सरकारी कर्मचारियों का वेतन हर साल बढ़ता है तो उन्हें इससे दूर रखना कहां तक उचित है। उनके मानदेय के हिसाब से इसमें भी इजाफा होना चाहिए। कई बार सरकार ने वेतन बढ़ाने का वादा किया। छह हजार रुपए वेतन देने की घोषणा भी हुई थी लेकिन आज तक इसे लागू नहीं किया गया। सरकार हर बार उन्हें आश्वासन देकर शांत कर देती है। कम से कम सम्मानजनक राशि तो उन्हें मिलनी ही चाहिए। रसोइयों ने कहा कि हमें सुरक्षा चाहिए ताकि निडर होकर हम बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण भोजन बना सकें। कहा कि इनमें अधिकतर वैसी महिलाएं हैं जिनके पास आजीविका का दूसरा साधन नहीं है। यही कारण है कि कम मानदेय के बावजूद काम कर रही हैं। उन्होंने बताया कि मानदेय समय पर नहीं मिलता है जिससे उनकी आर्थिक मुश्किलें बढ़ जाती हैं। सरकार को रसोइयों की स्थिति पर विचार करना चाहिए। विद्यालयों में तैनात रसोइयों पर कई जिम्मेवारियों का बोझ है। अधिकतर प्राथमिक व मध्य विद्यालय का ताला खोलने और बंद करने का काम रसोइयों के हवाले है। रसोइयों को साफ-सफाई से लेकर भोजन को तैयार करने और झाड़ू लगाने का काम भी करना पड़ता है।

सुझाव

1. मध्यान भोजन योजना से एनजीओ को अलग किया जाए

2. अन्य कर्मियों की तरह रसोइयों को भी पीएफ, पेंशन और सामाजिक सुरक्षा की सुविधा दी जानी चाहिए।

3. साल में 10 महीने की बजाय 12 महीने का मानदेय लागू किया जाना चाहिए।

4. विद्यालय में सेवा दे रहे रसोइयों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिया जाना चाहिए।

5. विभाग की ओर से रसोइयों को भी अन्य कर्मचारियों की तरह सभी तरह के अवकाश की सुविधा दी जानी चाहिए।

शिकायतें

1. सरकारी विद्यालयों में काम करने के बाद भी कर्मचारी का दर्जा नहीं मिला

2. रसोइयों को पीएफ, पेंशन और सामाजिक सुरक्षा जैसी कोई भी सुविधा सरकार की ओर से नहीं दी जा रही है।

3. रसोईया के बीमार पड़ने पर या अन्य किसी काम के लिए अवकाश की सुविधा नहीं दी गई है।

4.12 महीने के काम के बाद भी साल में 10 महीने का ही मानदेय दिया जाता है।

5. मध्यान भोजन में भी एनजीओ को घुसा दिया गया है जिससे रोजगार छीन रहा है।

हमारी भी सुनिए

रसोईया कम मानदेय में किसी तरह काम कर रही हैं। इस पर भी नौकरी सुरक्षित नहीं है। हर साल नवीनीकरण होता है। उन्हें समय से मानदेय नहीं मिलता है। सरकार इन्हें स्थाई कर्मी की तरह वेतन दे।

रीता देवी

हर साल नवीनीकरण की व्यवस्था बंद होनी चाहिए। साथ ही खाना बनवाने के अलावा रसोइयों से और कोई काम नहीं लिया जाए। हम लोगों का काम बच्चों को भोजन करने के बाद खत्म हो जाता है।

शीला देवी

रसोइयों को एक शिक्षण सत्र में सिर्फ 10 माह का मानदेय दिया जाता है जबकि अन्य कर्मियों को पूरे 12 माह का वेतन मिलता है। रोजाना आठ घंटे काम के बाद भी भेदभाव हो रहा है। 1650 रुपए में कैसे घर चलेगा।

रीता देवी

रसोइयों को मानदेय महीने की पहली तारीख को मिलना चाहिए। 1650 रुपए मानदेय के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता है। इसे सरकार बढ़कर 18 हजार करे तभी रसोइयों का जीवन संवरेगा।

मनवा देवी

भोजन बनाने के दौरान हादसे की आशंका बनी रहती है। सुरक्षा, संसाधन व ऐपरान भी रसोइयों को नहीं मिला है। वर्ष में दो बार साड़ी मिलती थी, वह भी पिछले कई वर्षों से बंद है। इसे पुनः शुरू करना चाहिए।

प्रेमनी देवी

स्कूल खुलने से लेकर स्कूल बंद होने तक रसोईया अपना योगदान देते हैं। इसके बदले उन्हें सम्मानजनक मानदेय मिलना चाहिए। कई बार आंदोलन के बावजूद कोई पहल नहीं हो रही है।

शीला देवी

बीमार होने पर रसोइयों को अपना इलाज खुद कराना पड़ता है। किसी रसोइया की मौत हो जाती है तो उनके आश्रितों को कोई मदद नहीं मिलती और ना ही नौकरी दी जाती है। प्रावधान में बदलाव होना चाहिए।

कलावती देवी

शिक्षकों के वेतन की तुलना में हमारा वेतन नहीं के बराबर है। कम से कम जीवन यापन भर पैसे तो मिलने ही चाहिए। सरकार रसोइयों की परेशानियों को गंभीरता से नहीं ले रही है। इससे रसोईया वर्ग में काफी आक्रोश है।

सुनीता देवी

दिन भर बच्चों के लिए खाना बनाने के बावजूद हमारा वेतन गरीबी की ओर ले जाता है। गांव वालों को छोड़िए, परिवार वाले भी कभी कभार ताना मारते हैं। इतनी देर कहीं अन्य जगहों पर काम करे तो अधिक पैसे मिलेंगे।

शांति देवी

सरकार द्वारा किए गए वादों का पालन नहीं होता है। हमें तुरंत वास्तविक बदलाव चाहिए ताकि हम सम्मानजनक जीवन जी सकें। यहां काम करने के कारण परिवार वालों को भी समय नहीं दे पाते हैं।

कुलवंती देवी

जब अन्य सरकारी कर्मचारियों का वेतन बढ़ता है तो हमें क्यों इतना कम दिया जाता है। हमारा मानदेय बढ़ना चाहिए। शिक्षकों की तरह पूरे साल भर का मानदेय दिया जाना चाहिए।

सरिता कुमारी

हमारी मेहनत का सही मूल्य नहीं मिल रहा है। बहुत उम्मीद के साथ इसमें आए थे लेकिन अब तक सिर्फ शोषण हुआ है। सम्मान तभी मिलेगा जब वेतन में नियमित वृद्धि की जाएगी। सरकार को इस विषय पर गंभीरता से सोचना चाहिए।

लक्ष्मी देवी

हमारी आर्थिक स्थिति में सुधार किए बिना हम अपने बच्चों को शिक्षा और अपने जीवन को आगे नहीं बढ़ा सकेंगे। सरकार ना तो हमारे बच्चों के प्रति कुछ सोच रही है न ही वेतन बढ़ा रही है।

मीना देवी

नौनिहालों का भविष्य संवारने वाली रसोइया अपने ही बच्चो भविष्य नहीं संवार पा रही है। हमारी मेहनत को देखते हुए हमें उचित सम्मान और बेहतर वेतन मिलना चाहिए।

इंदू देवी

हमें केवल उचित वेतन ही नहीं बल्कि सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का भी लाभ मिलना चाहिए। सभी रसोइयों को आयुष्मान भारत से जोड़ा जाना चाहिए ताकि उनके परिवार के सदस्यों की सेहत बनी रहे।

दुलारी देवी

अगर हमारी आवाज नहीं सुनी गई तो हम मजबूरी में आंदोलन करेंगे। बिना आंदोलन के सरकार कुछ भी नहीं सुनती। आखिर दिन भर काम करने वाली रसोइयों को इतना कम मानदेय क्यों दिया जा रहा है।

फुलमतिया देवी

सरकारी वादे केवल शब्दों तक सीमित नहीं रहने चाहिए। इस पर तत्काल कार्रवाई होनी चाहिए। हमें अपनी मौजूदा स्थिति से उबारने के लिए उचित वेतन और सुविधाएं उपलब्ध कराई जाए।

प्यारी देवी

बच्चों की सेवा करते हुए हम अपना दर्द भूल जाते हैं लेकिन सरकार व अधिकारियों को हमारा दर्द नहीं दिखता। इसे नजर अंदाज किया जाता है। हमारे दर्द को भी समझा जाए।

गीता देवी

हमारे परिवार की स्थिरता के लिए एक सुनिश्चित आय का होना बहुत जरूरी है। इस महंगाई के दौर में मानदेय बढ़ाने की आवश्यकता है। जिम्मेवारों को इस पर गंभीरता से सोच विचार कर उचित फैसला लेना चाहिए।

मंजू कुंवर

सरकारी कर्मचारी का दर्जा मिलने से हमें न केवल सुरक्षा मिलेगी बल्कि सामाजिक सम्मान भी बढ़ेगा। एक तो बहुत कम पैसे मिलते हैं, उस पर सम्मान भी नहीं मिलता है।

आशा देवी

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।