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जीवन में धर्म और संस्कार का हर संभव पालन करें: संत, पेज 4 बॉटम

श्री रूद्र चंडी महायज्ञ व श्री राम कथा में बह रही भक्ति की गंगा वाचन करते संत संकर्षण जी महराज फोटो- 5 मार्च एयूआर 92 कैप्शन- बुधवार को कथा सुनने पहुंचे श्रद्धालु औरं

Newswrap हिन्दुस्तान, औरंगाबादThu, 6 March 2025 12:22 AM
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जीवन में धर्म और संस्कार का हर संभव पालन करें: संत, पेज 4 बॉटम

मनुष्य को जीवन में धर्म और संस्कार का हर संभव पालन करना चाहिए। क्योंकि धर्म और संस्कार ही मानव जीवन का मूल आधार होता है। ये बातें संत संकर्षण जी महराज ने बुधवार को जिला मुख्यालय स्थित दानी बिगह बस स्टैंड के समीप आयोजित श्री रूद्र चंडी महायज्ञ व श्री राम कथा के दौरान कही। प्रवचन के दौरान उन्होंने कहा कि क्रोध को कभी भी प्रेम से जीता जा सकता है। क्रोध को जीतने का दूसरा कोई साधन नहीं है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में भगवान राम के जीवन चरित्र का अनुसरण करना चाहिए। चरित्र और विचार से ही व्यक्ति जीवन में महान बन सकता है। श्री राम चंद्र हमेशा मर्यादा का पालन करते रहे और अपने अनुज लक्ष्मण को भी मर्यादा में रहने का हर संभव सिख दिया। राम कथा के चौथे दिन उन्होंने श्रीराम-लक्ष्मण के जनकपुर पहुंचने का वर्णन किया। बताया कि जनक मतलब जानने वाला या जन्म देने वाला और पुर मतलब नगरी। अर्थात जिस नगर में सभी ज्ञानी हो वही जनकपुर है। ज्ञानी नगर होने के कारण ही वहां देवी सीता का निवास स्थान था। उन्होंने श्रीराम को ब्रह्म और जनकपुर के लोगों को जीव की संज्ञा दी। उनका कहना था कि ब्रह्म की कोई इच्छा नहीं होती, इच्छा तो जीव मात्र में उत्पन्न होती है। एक प्रसंग का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि जनकपुर की नारियां राम और लक्ष्मण को देखने के लिए ललाईत थी। परंतु वह अपना सर नीचे झुका कर चल रहे थे। इस दौरान जनकपुर की नारियों ने छत से जल, पुष्प व अक्षत की वर्षा की। इसीलिए भगवान को जल, पुष्प और अक्षत चढ़ाया जाता है। इन सारी चीजों को चढ़ाने से भगवान आकर्षित और प्रसन्न होते हैं। उन्होंने कहा कि राम को देखकर जनकपुर की नारियां आकर्षित हो गई थी। सबों के मन में यह विचार आ रहा था कि राजा जनक को धनुष यज्ञ का हठ छोड़कर इसी राजकुमार से सीता का विवाह कर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि भगवान राम का विवाह अगहन महीने में हुआ था, लेकिन उस समय भी पुष्प वाटिका में बसंत ऋतु की तरह शोभा बन रही थी। मतलब जहां ब्रह्म हैं वही बसंत है। उन्होंने कहा कि मर्यदा पुरुषोत्तम हर समय ब्रह्म मुहूर्त में जगा करते थे। उसी तरह प्रत्येक व्यक्ति को ब्रह्म मुहूर्त से पहले जागना चाहिए और नित्य क्रिया से निवृत्त होकर माता-पिता एवं गुरूजनों की चरण वंदना करनी चाहिए। माता-पिता और गुरु को चरण की सेवा करके ही सुलाना और जागना चाहिए। इस मौके पर संयोजक व संरक्षक राम प्रसाद सिंह, संगठन प्रभारी रमेश दुबे, जिला प्रभारी गौतम सिंह, स्वच्छता प्रभारी अमरेंद्र सिंह, आशुतोष द्विवेदी, धर्म प्रमुख रविरंजन कुमार, उपाध्यक्ष आशुतोष, कोषाध्यक्ष अनिल कुमार, सतीश कुमार शर्मा आदि थे। महायज्ञ के मंत्रोच्चारण से आसपास का माहौल भक्तिमय बना है। इस आयोजन में स्थानीय लोगों का भी सहयोग मिल रहा है। बड़ी संख्या में भक्त महायज्ञ स्थल को पहुंच रहे हैं।

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