बोले औरंगाबाद : हल्दी के भंडारण की सुविधा मिले तो बढ़ेगी किसानों की आमदनी
किसान हल्दी की खेती कर जीविकोपार्जन कर रहे हैं, लेकिन उत्पादन लागत में वृद्धि और उचित मूल्य न मिलने के कारण उन्हें घाटा उठाना पड़ रहा है। पहले इस क्षेत्र में हल्दी की खेती बड़े पैमाने पर होती थी,...
जिले के विभिन्न प्रखंडों में किसान हल्दी की खेती कर जीविकोपार्जन कर रहे हैं। दो दशक पूर्व मदनपुर प्रखंड क्षेत्र का दक्षिणी इलाका हल्दी की खेती के लिए कभी मशहूर रहा है। इस इलाके में कई किसान बड़े पैमाने पर हल्दी की खेती करते थे। किसानों के पास नगदी फसल के रूप में दो ही विकल्प हुआ करते थे, पहला गन्ना और दूसरा हल्दी। इन दोनों फसलों को तैयार होने के बाद किसान बाजार में बेचकर अपनी जरूरतें पूरी कर लिया करते थे। यहां तक कि इस इलाके की हल्दी की खरीद के लिए जिले सहित अन्य जिलों के व्यापारी यहां आते थे और कच्ची हल्दी खरीद कर ले जाते थे। किसान शुरू से ही हल्दी पर एमएसपी लागू करने की मांग करते रहे लेकिन उसे अनसुना किए जाने से धीरे-धीरे हल्दी से किसानों का मोह भंग हो गया। हालांकि अब सरकार द्वारा इस पर सब्सिडी दी जा रही है। आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान के बोले औरंगाबाद कार्यक्रम में हल्दी किसानों ने कहा कि पहले की तरह हल्दी की खेती जिले में नहीं हो रही है। पहले बड़े पैमाने पर इसकी खेती होती थी लेकिन अब कुछ ही किसान कुछ हेक्टेयर में इसकी खेती कर पा रहे हैं। यानी पहले कि अपेक्षा रकबा 60 प्रतिशत तक कम हो गया है। एक एकड़ हल्दी की खेती करने में किसानों को 35 हजार रुपए तक खर्च करने पड़ते हैं। सरकारी रेट तय न होने से व्यापारी 15 सौ से दो हजार रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से खरीद कर ले जा रहे हैं जो कम है। इस सीजन में व्यापारी दो हजार प्रति क्विंटल के हिसाब से व्यापारी हल्दी ले रहे हैं। किसानों ने कहा कि उन्हें उत्पादन का सही दाम नहीं मिल पाया है। व्यापारी और बिचौलिए कम कीमत पर हल्दी खरीद कर ऊंचे दामों पर बेचते हैं। इससे किसानों को घाटा उठाना पड़ता है। अगर उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ मिले तो वह हल्दी की खेती नगदी फसल के रूप में करने के लिए तैयार हैं। हल्दी की खेती में खाद, बीज सिंचाई और मजदूरी पर खर्च पहले की तुलना में काफी बढ़ गया है। किसान प्रेम कुमार मेहता, रामचंद्र महतो, सत्येंद्र महतो, राजू कुमार, विजय महतो, रामजी महतो, सुनीता देवी, किरण देवी, फगुनी महतो, जितेंद्र महतो, अनिल कुमार, रामजी महतो, कृष्णा महतो आदि ने बताया कि लागत दोगुनी होने के साथ ही बाजार तक सीधे पहुंच ना होने के कारण भी किसान अपनी फसल बिचौलियों को बेचने के लिए मजबूर हैं। किसान अगर सीधे बाजार में हल्दी बेचना चाहे तो परिवहन और भंडारण का खर्च बहुत अधिक हो जाता है। इसका नतीजा यह होता है कि किसानों को उनके मेहनत का पूरा मूल्य नहीं मिल पाता। उन्होंने कहा कि उद्यान विभाग के द्वारा हल्दी प्रसंस्करण यूनिट की स्थापना जिले में की जानी चाहिए ताकि हल्दी उत्पादक किसानों को लाभ मिल सके। एक समय था जब इस इलाके के लोग हल्दी की खेती पर निर्भर थे। यहां बाहर से व्यापारी पहुंचते थे और हल्दी लेकर जाते थे। उस समय भी सरकारी रेट तय नहीं था फिर भी किसान खुशहाल थे। अब ऐसा नहीं है। अब कुछ गिने चुने लोग ही हल्दी की खेती करते हैं। हल्दी उबालने के लिए भट्ठा भी यहां नहीं लगा है। मशीन भी खुद के खर्चे से किसान को लेनी पड़ रही है लेकिन पहले जैसी बात नहीं रह गई। हल्दी को लंबे में समय तक सुरक्षित रखने के लिए विशेष भंडारण सुविधाओं की जरूरत है। हल्दी उत्पादक किसानों ने कहा कि हल्दी का रेट सरकारी स्तर पर भी होना चाहिए। उत्पादन लागत में लगातार वृद्धि हुई है खाद, बीज, सिंचाई और मजदूरी की लागत बढ़ने से हल्दी की खेती अब फायदे का सौदा नहीं रही। हल्दी की बुआई में जून महीने में होती है। इसे तैयार होने में 7 से 8 माह का समय लगता है। फरवरी से मार्च तक किसान इसे खेतों से निकाल लेते हैं फिर उसकी सफाई कर सुखाने में जुट जाते हैं। वैसे तो कच्ची हल्दी भी व्यापारी 15 सौ रुपए क्विंटल के हिसाब से खरीदते हैं लेकिन सूखने के बाद तैयार सोठ हल्दी की कीमत से अधिक होती है। यानी सौ किलोग्राम कच्ची हल्दी सूखने के बाद 16 से 17 किलोग्राम तक सोठ होता है। इसकी कीमत 10 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक मिल जाती है। किसानों ने बताया कि हल्दी की खेती में आने वाली समस्याओं के चलते किसान हरी सब्जियों की खेती की प्राथमिकता देने लगे हैं। इन फसलों में लागत कम और मुनाफा जल्द मिलने के कारण किसान इन्हें जायदा लाभकारी मान रहे हैं। किसानों ने कहा कि हल्दी की खेती में बहुत समय लगता है लेकिन पहले की तरह अब इसमें आमदनी नहीं है। हरी सब्जियों की खेती में हमें जल्दी मुनाफा मिल जाता है इसलिए ज्यादातर किसान हल्दी छोड़कर हरी सब्जी फसलों को प्राथमिकता दे रहे हैं।
उत्पादन लागत में वृद्धि से आमदनी घटी
हल्दी की खेती में अब उत्पादन लागत बढ़ गया है। खाद, बीज, सिंचाई और मजदूरी इसमें शामिल है। इससे आमदनी घट गई है। किसानों ने बताया कि एक तो लागत बढ़ी है और उपर से हल्दी में अब सड़न रोग भी पकड़ रहा है। पहले किसी तरह की बीमारी नहीं होती थी। कृषि विभाग द्वारा मिट्टी का समय पर परीक्षण भी नहीं किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हल्दी की खेती करने वाले किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार कदम उठाए। उद्यान विभाग द्वारा किसानों को जागरूक किया जाए ताकि किसान फिर हल्दी को नगदी फसल के रूप में अपना कर अपनी आमदनी कर सके। किसानों की सीधे तौर पर मांग है कि सरकार हल्दी का रेट भी तय करें। उनका कहना है कि सरकार जिले में हल्दी पर संस्करण यूनिट की स्थापना करें जहां महिलाओं को भी रोजगार मिलेगा और वहीं से हल्दी की खरीद और बिक्री भी हो। महिलाएं इस कार्य से जुड़ना चाहती हैं। बड़ी कंपनियों के प्रवेश से छोटे स्तर के कारोबारी और किसान नुकसान झेल रहे हैं।
सुझाव
1. सरकार हल्दी के लिए उचित न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करें ताकि किसान एक बार फिर उसे नकदी फसल के रूप में अपना सके।
2. किसानों को सरकारी मंडी से जोड़ा जाए ताकि वह बिचौलियों से बचकर अपनी फसल को उचित दाम पर बेचकर मुनाफा कमा सकें।
3. हल्दी के लिए आधुनिक भंडारण और प्रोसेसिंग यूनिट बनाई जाए, जिले में एक भी यूनिट नहीं है।
4. सब्सिडी के अलावा हल्दी की खेती के लिए विशेष योजनाएं भी बनाई जाए। समय-समय पर कृषि विभाग मिट्टी परीक्षण भी कराए।
5. किसानों को हल्दी उत्पादन के लिए आधुनिक प्रशिक्षण दिया जाए। आधुनिक कृषि यंत्र के साथ जैविक खाद उपलब्ध कराई जाए।
शिकायतें
1. पहले जैसी बात अब हल्दी की खेती में नहीं रह गई है। बाजार में हल्दी का उचित मूल्य न मिलने से किसानों को घाटा उठाना पड़ता है।
2. किसान सीधे बाजार तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। इससे बिचौलियों का फायदा हो रहा है। वह कम दाम पर खरीद कर ऊंची कीमत में बेचते हैं।
3. हल्दी सुरक्षित रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था नहीं है। हल्दी से किसानों का मोह भंग होने के पीछे यह भी वजह है।
4. सरकार द्वारा हल्दी की खेती करने पर सब्सिडी नहीं दी जा रही है। इसकी पहल होनी चाहिए।
हमारी भी सुनिए
हल्दी की खेती में मेहनत बहुत ज्यादा लगती है लेकिन मुनाफा कम होता जा रहा है। इसलिए हम इसे छोड़कर दूसरी फसल को प्राथमिकता दे रहे हैं।
प्रेम कुमार मेहता
अगर सरकार हल्दी के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य तय कर दे तो हम इसे फिर से बड़े पैमाने पर उगने को तैयार हैं। और भी किसान इससे जुड़ेंगे।
रामचंद्र महतो
बाजार में व्यापारी मनमर्जी से दाम तय करते हैं जिससे लागत निकालना भी मुश्किल हो जाता है। सरकार को एमएसपी लागू कर देना चाहिए ताकि हमें लाभ मिले
सत्येंद्र महतो
हल्दी की खेती कर पाना
अब पहले की तरह मुनाफा वाला नहीं रह गया। भंडारण की सुविधा न होने के कारण हमें कम दाम पर ही हल्दी बेचनी पड़ती है।
राजू कुमार
मदनपुर प्रखंड के दक्षिणी इलाके के वकीलगंज गांव हल्दी की खेती के लिए मशहूर रहा है। यहां की हल्दी की गुणवत्ता अच्छी होती है। बावजूद इसके किसानों को उचित दाम नहीं मिलता है।
रामजी महतो
हमें अपनी फसल को उचित दाम पर बेचने के लिए एक स्थाई बाजार की जरूरत है। सरकार पहले तो रेट तय करें और फिर सरकारी मंडियों में हल्दी की बिक्री के लिए व्यवस्था बनाए।
सुनीता देवी
बीज, खाद और सिंचाई की लागत बढ़ गई है। हल्दी के दाम आज भी तय नहीं हैं। इससे किसानों को नहीं बिचौलियों को फायदा होता है।
किरण देवी
सरकार हल्दी उत्पादन करने वाले किसानों को सब्सिडी देकर पुरस्कृत करें और इसका रेट भी तय कर दे तो काफी सहूलियत होगी।
चंदवा देवी
जिले में हल्दी प्रसंस्करण यूनिट की स्थापना हो। हल्दी की खेती को लेकर जागरूकता अभियान चलाना चाहिए।प्रसंस्करण यूनिट की स्थापना होने से किसान सीधे अपनी हल्दी को भेज सकेंगे।
दिव्या कुमारी
पहले मदनपुर प्रखंड में बड़े पैमाने पर हल्दी की खेती होती थी लेकिन अब इसका आकार लगातार घट रहा है। सरकार किसानों के हित को ध्यान में रखकर न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करे।
कुंती देवी
हल्दी को बाजार तक ले जाने में काफी खर्च आता है लेकिन सही मूल्य नहीं मिलने से किसान हतोत्साहित हो रहे हैं। पहले बाहर के व्यापारी यहां से खरीद करते थे जो अब नहीं आ रहे हैं।
नमिता देवी
बिचौलियों की वजह से हमें सही दाम नहीं मिल पाता है। अगर न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया जाता है तो उनके द्वारा हल्दी की खेती की जा सकती है।
फगुनी महतो
जिले में प्रसंस्करण यूनिट लगाया जाना चाहिए जिससे किसानों को फायदा होगा। किसानों के घर पहुंच कर खरीद की जाए तो लाभ होगा।
जितेंद्र महतो
हल्दी सुरक्षित रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था होनी चाहिए। प्रसंस्करण यूनिट जिले में खुलेगी तो किसानों को सुविधा होगी। इस पर विचार किया जाना चाहिए।
अनिल कुमार
पहले जैसी बात अब हल्दी की खेती में नहीं रह गई है। बाजार में हल्दी का उचित मूल्य न मिलने से किसानों को घाटा उठाना पड़ता है।
रामजी महतो
किसान सीधे बाजार तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। इससे बिचौलियों को फायदा हो रहा है। वह कम दाम पर खरीद कर ऊंची कीमत में बेचते हैं।
कृष्णा महतो
सरकार द्वारा हल्दी उत्पादक किसानों को सब्सिडी देने की व्यवस्था की जानी चाहिए और एक सही रेट भी तय किया जाना चाहिए।
उमेश महतो
उत्पादन लागत में लगातार वृद्धि हुई है। खाद, बीज, सिंचाई और मजदूरी की लागत बढ़ने से हल्दी की खेती अब फायदे का सौदा नहीं रही।
मुकेश कुमार
हल्दी के लिए आधुनिक भंडारण और प्रोसेसिंग यूनिट बनाई जाए। जिले में एक भी प्रसंस्करण यूनिट नही है। सरकार को हल्दी उत्पादक किसानों के लिए योजना बनाने की जरूरत है।
विजय महतो
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।