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बोले औरंगाबाद : बैंड-बाजा बजाने वालों की स्वास्थ्य जांच के लिए लगे शिविर

डीजे के शोर ने बैंड पार्टी के कलाकारों की आजीविका को खतरे में डाल दिया है। कलाकारों को रोजगार की कमी, स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता और कर्ज में डूबने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। बैंड...

Newswrap हिन्दुस्तान, औरंगाबादSun, 23 Feb 2025 11:17 PM
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बोले औरंगाबाद : बैंड-बाजा बजाने वालों की स्वास्थ्य जांच के लिए लगे शिविर

डीजे के शोर ने अंग्रेजी बाजा, ढोल ताशा, मोर बाजा, बैंजो बजाने वाले बैंड पार्टी के कलाकारों के रोजगार छीन लिए हैं। बैंड पार्टी के साथ उसके कलाकार भी परेशानियों से जूझ रहे हैं। तंगहाली में जी रहे कलाकारों के परिवार चलाने, बच्चों को पढ़ाने, इलाज कराने के लिए मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। इससे जुड़े कलाकार बताते हैं कि अधिकतर लोगों के पास आयुष्मान कार्ड तक नहीं है और ना ही प्रशासनिक स्तर पर इसके लिए कोई कैंप लगाया गया। ऐसे में गंभीर बीमारियों का इलाज करने में उन्हें कर्ज लेना पड़ता है। पहले शादी, विवाह के अलावा अन्य मांगलिक कार्यों में बैंड बाजा के मधुर धुन से अलग ही शमा बंधता था। तुरी और शहनाई की मधुर आवाज के बिना मांगलिक कार्य अधूरा प्रतीत होता था। समय बदला है और आज के नए परिवेश में डीजे की धमाकेदार तेज व कर्कश आवाज के शोर में बैंड बाजा पीछे छूट रहा है। डीजे के दर्जनों लाउडस्पीकर की आवाज के आगे बैंड बाजा की तुरही, कैसिनो, ढोल ताशा, बड़ा ड्रम आदि वाद्य यंत्र की आवाज दबने लगी है। संचालकों और इस कार्य में जुड़े कलाकारों के लिए अशुभ साबित होने के साथ इन पर बेरोजगारी का खतरा मंडराने लगा है। अन्य आधुनिक वाद्य यंत्रों के आगे लोग बैंड बाजा की अनदेखी कर इसकी अहमियत भूलने लगे हैं। डीजे ने इस कारोबार को काफी नुकसान पहुंचाया है। बैंड बाजा वालों की कमाई पहले की अपेक्षा काफी कम होने लगी है। यह बैंड बाजा संचालकों के लिए चिंता का विषय बन गया है। बैंड बाजा की वर्तमान दुर्दशा को देख नई पीढ़ियां इस धंधे में आने से कतरा रही हैं। खासकर बैंड बाजा के साथ बुकिंग कराने वाले लोगों का किसी भी तरह का एकारनामा नहीं होने के कारण कई मौके पर तय रकम समय पर नहीं मिल पाती है। इसके कारण कई बार नुकसान उठाना पड़ता है। कई बार तो बैंड बाजे के साथ शादी-विवाह के मौके पर साथ में गए डांसर के साथ असामाजिक तत्व के लोग गाना बजाने और नाचने को लेकर हंगामा करते हैं। कई बार मारपीट कर उनके वाद्य यंत्रों को तोड़ देते हैं। इसकी जिम्मेवारी सट्टेदारों की ओर से नहीं लेने पर इसकी शिकायत थाना या पुलिस के पास करने में काफी परेशानियों को देख अपने आप को इससे दूर रह नुकसान सहने को मजबूर हैं। बैंड बाजा संचालकों का कहना है कि इन सभी चीजों के लिए सरकार पार्टी के साथ एकरारनामा का प्रावधान बनाए। इससे बुकिंग की शर्तों के साथ तय किए गए रुपए और सुरक्षा की पूरी जिम्मेवारी हो, ताकि भविष्य में शर्त नहीं मानने वाले पार्टी के लोगों पर समय के अनुसार कानूनी कार्रवाई की जाए। ग्रामीण क्षेत्र के बैंड बाजा संचालकों का मानना है कि बैंड बाजा में शामिल लोगों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करने के साथ उन्हें समय पर नाश्ता भोजन नहीं दिया जाता है। इस कारण वाद्य यंत्रों को बजाने वाले लोग जाने से कतराते हैं। वे बताते हैं कि डीजे की कर्कश ध्वनि स्वास्थ्य के लिए अनुकूल नहीं है। तेज आवाज से कई जगह मौत होने की घटनाएं भी हुई हैं इसलिए इस पर रोक लगे। साथ ही बैंड-बाजा बजाने वालों की स्वास्थ्य जांच के लिए शिविर भी लगाया जाये।

गौतम बैंड पार्टी के संचालक दालसिंगार ने बताया कि जिला और ग्रामीण स्तर पर मौजूद बैंड पार्टियों में 20 से 35 लोग काम करते हैं। इसमें कुछ लोग सामान आदि उठाकर चलने वाले और बाकी बैंड बाजा में शामिल वाद्य यंत्र बजाते हैं। डीजे में मात्र दो से तीन लोग शामिल रहते हैं जिससे उसकी कमाई बैंड बाजा से ज्यादा होती है। शादी में द्वार पूजा के समय बैंड बाजा में शामिल लोग जगह को गुलजार करने के साथ घर के दरवाजे की शोभा बढ़ाते हैं। डीजे में घर के सदस्य, रिश्तेदार नाच आदि कर उसकी शोभा बढ़ाते हैं। बैंड बाजा में शामिल लोग दूसरे के घरों की शोभा तो बढ़ाते हैं पर मौजूदा स्थिति में खुद घरेलू आदि तकलीफों से भरा है। भरण पोषण करने के साथ बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की भारी कमी है। ग्रामीण स्तर पर उनकी बुकिंग 15 से 20 हजार रुपए में हो रही है। इसमें बाजा बजाने वाले लोगों को पांच सौ रुपए प्रति व्यक्ति मजदूरी के रूप में दी जाती है। इसके अलावा भी कुछ अन्य खर्च होने से इसमें बचत बहुत कम होती है।

दो से तीन महीने की कमाई से सालों भर खाने की मजबूरी

कुछ बैंड बाजा वालों ने बताया कि वह करीब दो से तीन दशक से इस पेशे में हैं लेकिन स्थिति आज भी ऐसी है कि हम कर्ज में डूबे रहते हैं। जब तक कमाए तब तक खाए वरना ऐसे ही रहना पड़ता है। कभी समूह से तो कभी लोगों से कर्ज लेना पड़ता है। दो-तीन महीने की कमाई में सालों भर खाने की मजबूरी होती है। खरमास जैसी स्थिति में काम नहीं मिलने पर घर बैठे रह जाते हैं। यही हालत देखकर हम नहीं चाहते हैं कि हमारे बच्चे भी इसी समस्या से गुजरे। हमने तो जैसे-तैसे अपना कर्ज लेकर जीवन यापन कर लिया लेकिन हमारे बच्चे नहीं कर पाएंगे। सरकार का दायित्व बनता है कि वह हमारे हित का ख्याल रखे। हमारे पास लाइसेंस की सुविधा नहीं है। ग्राहक अग्रिम रुपए देते हैं जिसके बाद हम अपनी सारी तैयारी करते हैं लेकिन कुछ भी कमी होने पर वह हमें पैसे देने से मना करते हैं। इससे हमें तो कुछ नहीं मिलता लेकिन कलाकारों को देना पड़ता है। बताया कि यह धंधा नुकसानदेह साबित हो रहा है। इसमें काम करने वाले लोग कई तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य की समस्या से जूझ रहे हैं साथ ही आमदनी भी नहीं के बराबर हो रही है।

सुझाव

1. बैंड बाजे की बुकिंग के दौरान एकरारनामा की व्यवस्था हो ताकि तय रुपए नहीं देने वालो पर कानूनी कार्रवाई हो

सके।

2. ध्वनि प्रदूषण संबंधित जानकारी देने की दरकार

3. बैंड बाजा को बढ़ावा दिए जाने की दिशा में सार्थक पहल होनी चाहिए।

4. लगन समाप्त होने के बाद अन्य खाली दिनों में रोजगार की व्यवस्था हो।

5. असामाजिक तत्वों की ओर से बैंड बजे में शामिल डांसरों के साथ अश्लील हरकत पर रोक लगे।

शिकायतें

1. बुकिंगकर्ताओं के समाज के लोग हमारी परेशानी और समस्याओं पर ध्यान नहीं देते हैं।

2. काम के मुनासिब रुपए नहीं मिलते, इसकी मजदूरी भी तय नहीं है जिससे दिक्कत होती है।

3. ध्वनि प्रदूषण कागजात सुविधाजनक नहीं होने से कानूनी पचड़े में फंसना पड़ता है।

4. बैंड बाजे में शामिल लोगों के साथ अभद्र व्यवहार भी होता है जिससे अपमानित होना पड़ता है।

5. डांसरों के साथ अश्लील हरकत की जाती है। मारपीट की घटनाओं पर रोक लगे।

हमारी भी सुनिए...

हम बैंड बाजे वालों को पूरे दिन के साथ देर रात तक काम करना पड़ता है। इसके बावजूद बुकिंगकर्ता रुपए देने में आनाकानी करते हैं। इस पर समाज को ध्यान देना चाहिए कि उनके परिवार का भरण पोषण इसी से होता है।

बसंत राम

आज के समय में मजदूरी बढ़ गई है। बैंड बाजा में शामिल लोगों को छह सौ से सात सौ रुपए देने पड़ते हैं। कम रुपए मिलने पर संचालक का गुजारा नहीं होता है। इसलिए कम रुपए में साटा में काम करना पड़ता है

पिंटू कुमार मास्टर

मैं लगभग पांच सालों से बैंड बाजा में काम करता आ रहा हूं। लगन के दिनों में थोड़ी बहुत कमाई हो जाती है। बाकी के दिनों में मजदूरी करनी पड़ती है। ऐसे में सीखे गए हुनर की कद्र नहीं रह जाती है

मनोज कुमार

हम परिवार चलाने के लिए बैंड बाजा में काम करते हैं। ज्यादा शिक्षित नहीं रहने के कारण यह कार्य करना पड़ता है। इसके बावजूद मेहनत के अनुसार मजदूरी नहीं मिल पाती है

चंदन कुमार

विगत कई वर्षों से बैंड बाजा का संचालन करते आ रहा हूं। पिछले कुछ समय में इसका कारोबार में काफी बदलाव हुआ है। डीजे के आगे लोग बैंड बाजा की कद्र नहीं करते। उनका उचित मेहनताना भी नहीं मिलता।

दलसिंगार

बैंड बाजा में मजदूरी बहुत कम है। इससे जीवन यापन करने में बहुत समस्या होती है। कुछ ग्राहक समय पर पैसा नहीं देते हैं। बाहर से आए कलाकारों को मुनाफा नहीं होने के बावजूद हमें हर हाल में पैसा देना पड़ता है

गोल्डेन कुमार

बैंड बाजा में शामिल लोगों को देर तक खड़े होकर काम करना पड़ता है। इस वजह से परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हम लोगों के लिए रहने-खाने की व्यवस्था अच्छी नहीं होती ताकि कुछ समय आराम किया जा सके

कशिंदर कुमार

हम लोग विगत तीन पीढ़ियों से बैंड बाजा बजाने का काम करते हैं। वर्तमान समय में डीजे और आर्केस्ट्रा का प्रचलन बढ़ गया है। इस कारण बाजार में बैंड बाजा की मांग कम हो गई है

रामस्वरूप कुमार

लग्न के दिनों में अच्छी कमाई हो जाती है पर बाकी के दिनों में दूसरे काम या मजदूरी कर परिवार का भरण पोषण करना पड़ता है। ऐसी व्यवस्था हो कि लगन से इतर भी उनका और उनके परिवार का गुजारा हो सके

गणेश कुमार

इस धंधे में आमदनी और मान मर्यादा कम है। आने वाली पीढ़ियों को इस धंधे में आने के लिए मना करते हैं। वर्तमान डीजे के युग में इस पारंपरिक कला की पूछ भी कम हुई है

राजन कुमार

अक्सर समाज में मांगलिक कार्यों के अवसर पर उचित सम्मान नहीं मिलता है। अपने समाज में बैंड बाजा सदस्यों के प्रति सम्मान में कमी देखने को मिलती है। इस पर समाज को सोचना होगा कि हम भी मेहनत करते हैं।

ललन कुमार

कई वर्षों से बैंड बाजा बजाने का काम करता हूं। इसमें कम आय होने से कई लोग इस धंधे से अपना मुंह मोड़ रहे हैं। सरकार और प्रशासन को हम कलाकारों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाना चाहिए।

भरत कुमार

लग्न नहीं रहने पर बेरोजगार रहना पड़ता है। इस दौरान परिवार का भरण पोषण करने में काफी परेशानी होती है। एक वक्त के भजन के लिए सोचना पड़ता है। ऐसी स्थिति में कैसे घर चलाया जाए, यह बड़ा सवाल बन जाता है।

मनदीप कुमार

ग्रामीण क्षेत्रों में बाजा बजाने जाने में काफी परेशानी होती है। कुछ उपद्रवी तत्वों की ओर से द्वार पूजा या शादी की अन्य रस्मों के दौरान बाजा बजाते समय हरकत की जाती है। इस पर पूरी तरह पाबंदी लगनी चाहिए।

राजेंद्र भुइयां

ध्वनि प्रदूषण से संबंधित नियमों की जानकारी नहीं है। प्रशासन और संचालक को समस्या का निदान करना चाहिए। सरकार से मांग करता हूं कि बैंड वालों के लिए कोई लाभकारी योजना चलाएं

बिंदा कुमार

आधुनिक डीजे लाइट और आर्केस्ट्रा के आगे बैंड बाजा का धंधा चौपट हो गया है। लगन के दिनों में बुकिंग मिलती है लेकिन पहले जैसे कमाई नहीं होती। सरकार को उनके हित में कारगर उपाय करना चाहिए

हीरावन चौधरी

बैंड बाजा वालों को तनाव और दबाव का सामना करना पड़ता है। कई लोगों की ओर से गाना की फरमाइश की जाती है। नहीं पूरा करने पर उनके आक्रोश का सामना करना पड़ता है। पार्टियों द्वारा बैंड बाजा वाले लोगों की सुरक्षा की उचित व्यवस्था नहीं है

रामपति भुइयां

हम लोग कम पैसों में बिना रुके घंटों काम करते हैं। थोड़ा आराम करने पर पार्टी की नाराजगी और ताना सुनना पड़ता है। लगन के दिनों में लगातार काम करने से तबीयत खराब हो जाती है। स्वास्थ्य व जीवन बीमा की सुविधा मिलनी चाहिए

सुदेश कुमार

लग्न के मौसम में अच्छी आमदनी हो जाती थी लेकिन अब काम बहुत ही कम हो गया है। नए लोग तो इसमें नहीं आ रहे हैं। पुराने भी इस धंधे को छोड़कर दूसरे राज्यों में पलायन करने को मजबूर हैं।

रामलगन भुइयां

अब काम मंदा हो गया है। परिवार चलाने के लिए मजदूरी करनी पड़ती है। उसमें अगर शादी की बुकिंग मिलती है तब उसे दिन बारात में बजाने चले जाते हैं।

विष्णुपत कुमार

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