सहरसा: सामा गीतों से गूंज रही ग्रामीण गलियां
सामा चकेबा पर्व मिथिलांचल का प्रसिद्ध लोकपर्व है, जो भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है। यह पर्व खरना दिन से शुरू होता है और कार्तिक पूर्णिमा पर समाप्त होता है। महिलाएं मूर्तियों की पूजा करती हैं और...
महिषी । एक संवाददाता गाम के अधिकारी तोहे बड़का भैया हो़, छाऊर छाऊर छाऊर, चुगला कोठी छाऊर भैया कोठी चाऊर तथा साम चके साम चके अबिह हे, जोतला खेत मे बैसिह हे तथा भैया जीअ हो युग युग जीअ हो गीतों से ग्रामीण गलियां गुंजायमान होने लगी है। छठ महापर्व के खरना दिन से शुरू होने वाला सामा चकेबा मिथिलांचल का प्रसिद्ध पारम्परिक लोकपर्व है। यह लोकपर्व भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक पर्व है। रविवार को सामा चकेबा पर्व होने के कारण लगभग सभी परिवारों में महिलाएं सामा चकेबा सहित अन्य मू्त्तितयों को अंतिम रूप देने में व्यस्त हैं। यह पर्व पूर्व मेंं गांव से शहर तक पूरे उत्साह से मनाया जाता था, लेकिन समय के साथ इसमें ह्रास आने लगा है। अब शहरी क्षेत्रों में सामा चकेबा त्योहार कमोवेश ही देखा जाता है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी यह पर्व पूरे उत्साह और श्रद्धा से मनाया जाता है। इसमें बहनें सामा-चकेबा, चुगला आदि की मूर्ति बनाकर उन्हें पूजती हैं। हर दिन पर्व से सम्बन्धित लोक गीत गाया जाता है। इसे मिथिलांचल क्षेत्र में विशेष धूमधाम से मनाया जाता है। पर्व के दौरान बहनें अपने भाई के दीर्घ जीवन एवं सम्पन्नता की मंगल कामना करती है। सामा-चकेबा का पर्व पर्यावरण से संबद्ध भी माना जाता है। ग्रामीण पंडितों के अनुसार कार्तिक मास की पंचमी शुक्ल पक्ष तिथि से सामा-चकेबा की शुरुआत हो जाती है। इसका समापन कार्तिक पूर्णिमा को होता है। आगामी 15 नवम्बर को कार्तिक पूर्णिमा है। पूर्णिमा की शाम को नदियों व खेतों में इन मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है।
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