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टीस: गांधीजी की स्मृतियों को अररिया में सहजने का नहीं हुआ प्रयास

फुलेन्द्र मल्लिक अररिया। वरीय संवाददाता इससे बड़ी दुखद और क्या होगी कि स्वतंत्रता आंदोलन

Newswrap हिन्दुस्तान, अररियाThu, 30 Jan 2025 02:57 AM
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 टीस: गांधीजी की स्मृतियों को अररिया में सहजने का नहीं हुआ प्रयास

फुलेन्द्र मल्लिक अररिया। वरीय संवाददाता

इससे बड़ी दुखद और क्या होगी कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान तीन-तीन बार अररिया भ्रमण करने वाले बापू के स्मृति को सहजने का प्रयास नहीं किया गया। इससे जिलेवासियों में टीस होना लाजिमी है। अररिया वासियों से गहरा लगाव का ही नतीजा है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वे तीन-तीन बार अररिया आ चुके हैं। वर्ष 1925, 1934 व 1942 में इस क्षेत्र का भ्रमण कर न केवल यहां के लोगों को स्वदेशी शिक्षा व स्वराज का पाठ पढ़ाये बल्कि आजादी की लड़ाई में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित भी किये। 11 अक्टूबर 1925 को भ्रमण के दौरान वे अररिया के रामकृष्ण सेवा आश्रम पहुंचे थे। यहां की व्यवस्था से प्रभावित होकर आश्रम की पुस्तिका में अपने हाथों से यह शुभकामना व्यक्त की थी- ‘मैं इस संस्था की उन्नति चाहता हूं। उस समय यह आश्रम पशु चिकित्सालय के समीप पुराने टाउन हाल में चलता था। गांधी जी के भ्रमण की ये स्मृतियां यहां आज भी दर्ज हैं।

अररिया शहर में रात बिताये हैं बापू:

कहा जाता है कि गांधी जी अररिया के वरीय अधिवक्ता तारा प्रसन्नो दास व उनके पुत्र निरंजन दास गुप्ता उर्फ टुल्लो बाबू से उनके चांदनी चौक स्थित घर पर जाकर मिले थे। स्व.टूल्लो बाबू के पुत्र व अधिवक्ता पार्थ सारथी दास गुप्ता उर्फ श्यामदा अकसर अपने दादाजी व पिताजी बापू से जुड़े संस्मरणों को सुनाते थे। श्यामदा ने ‘हिन्दुस्तान को बताया था कि 1934 व 1942 में तो बापू रात्रि उनके यहां ही ठहरे थे। खासकर 1942 में तो शहर की कई महिलाओं ने आजादी की लड़ाई को जारी रखने के लिए अपनी आभूषण गांधी जी को भेंट की थी।

फारबिसगंज के विशाल सभा में भी किये थे शिकरत: 1925 में गांधी जी फारबिसगंज के द्विजदेनी मैदान में आयोजित विशाल सभा में पहुंचकर यहां के लोगों के दिलों में देश की आजादी के लिए चिनगारी सुलगाई थी। इस मौके पर जब पंडित रामदेनी तिवारी द्विजदेनी ने जब स्वरचित गीत—‘...गंगा रे जमुनमा के धार... भारत माता रोए रही.. गाकर सभा की कार्रवाई शुरू की तो गांधी जी भी भावविह्वल हो गये। बताया जाता है कि गांधी जी इस दौरान जोगबनी भी गये और वहां के लोगों स्वतंत्रता आंदोलन के लिए जोश, जज्बा व जुनून भरा।

यहां के लोगों में गांधी के प्रति असीम श्रद्धा:

जिले के एक मात्र स्वतंत्रता सेनानी भृगू नाथ शर्मा व वयोवृद्ध डॉ. केपी सिंहा कहते हैं कि यहां के लोगों में गांधी जी के प्रति असीम श्रद्धा ही थी कि वे तीन-तीन बार यहां आ चुके थे। जयंती व शहीद दिवस पर यहां के लोग उन्हें शिद्दत के साथ याद करते हैं। नरपतगंज के स्वतंत्रता सेनानी रामलाल मंडल के बारे में कहा जाता है कि वे अकसर गांधीजी को अपनी सुमधुर आवाज में रामायण की चौपाईयां सुनाया करते थे। शहीद दिवस के मौके पर यहां के लोग बड़ी शिद्दत के साथ उन्हें याद करते हैं।

बाक्स में:

लोगों को टिस, गांधीजी की स्मृतियों को सहजने का नहीं हुआ प्रयास:

अररिया की जिस धरती पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पैर पड़े थे, जहां बापू ने रातें बिताई थी, जहां आकर महिलाओं ने आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए कीमती आभूषण भेंट की थी, उस जगह को आज तक संरक्षित करने का प्रयास नहीं हुआ। विडंबना ये कि आज वहां बड़ा मार्केट काम्पलेक्स खड़ा है। यही नहीं 11 अक्टूबर 1925 को जिस पुराने रामकृष्ण सेवाश्रम में बापू पहुंचे थे वहां भी भव्य टाऊन हॉल खड़ा है। फारबिसगंज के जिस मैदान में उन्होंने स्वदेशी का नारा दिया, वह भी आज जीर्णशीर्ण अवस्था में तड़प रहा है। स्वतंत्रता सेनानी भृगू नाथ शर्मा, मो मोहसीन, 90 वर्षीय बजुर्ग साहित्यकार भोला पंडित प्रणयी आदि को इस बात को लेकर टिस है कि आज तक गांधीजी के इन स्मृतियों को बचाने का प्रयास क्यों नहीं हुआ।

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